गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

खूबसूरत नही, रहगुजर चाहिए
दूर तक साथ हो ,हमसफ़र चाहिए

झोपडी में मेरे पूरे सपने कई
गैर के महल में क्यों वसर चाहिए

टूट गए सारे ताल्लुक आपसे
दुश्मनी की सही पर, लहर चाहिए

आप का हर दर्द दूर हो जानम
बरसती रहमतो की कदर चाहिए

मान घट जाए ना वतन का, सोचना
देश की आबरू पर प्रहर चाहिए।

धर्मेन्द्र पाण्डेय

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी गजल !

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