कविता

जी हां- मैं मोहब्बत हूं

जी हां- मैं मोहब्बत हूं

रब के पैरों कि आहट हूं,बेचैन दिलों की राहत हूं!
मैं हर पाकीज़ा रिश्ते के, अस्सास में बसी जरूरत हूँ!

कुदरत की एन हकीकत हूँ, मंदिर की एक इबादत हूँ!
रूहों की पाक अमानत हूँ,मै हर तायत की लज़्ज़त हूं!

दिलवर की जुस्तजू में हूं, मैं फूलों की ख़ुशबू में हूं!
और मैं औजेगर्दूं में हूँ, मैं ही आबे जेहूँ में हूँ!

जी हाँ मैं मोहब्बत हूँ

मैं गुलों में और गुलज़ारों में, मैं पायल की झंकारों में!
मैं मेहरो –माह सितारों में कुदरत के हसीं नजारों मैं

सदियों से बादल से मिलकर, मैं दमक रही बिजली बनकर
और बनकर जिया सितारों की, मैं चमक रही हूं अम्बर पर

सब ऋतुओं में मधुमास हूं मैं भँवरे के दिल कि प्यास हूं में!
नाज़ुक दिल का अहसास हू मैं इक टूटे दिल की आस हूं मैं!

जी हाँ मैं मोहब्बत हूँ

आगाज़ हूं मैं अंजाम हूं मै आरज़ू हूं मैं, अरमान हूं मै!
इखलाक भी मैं ईमान भी मैं इकरार भी मैं इत्माम भी मैं!

वारिस शाह के फरमान में हूं और बुले शाह के गान में!
मैं गुरुग्रन्थ के ज्ञान में हूं, मैं गीता और कुरान में हूं!

मैं शमा में और परवानो में, मैं हूँ मुरली की तानो में!
मैं आशिक के अरमानो में, मैं इश्क के सब अफ़सानों में!

जी हां मैं मोहब्बत हूं

में हीरों के दिल में बस ती, रांझे की बंसी में बजती!
बेवा के बैनो में रोती, शादी के गीतों में हँसती!

जूलियट की हर पुकार में हूं, रोमिओं के ऐतबार में हूं!
कोहकन के मैं इकरार में हू, लैला के मै एतबार में हूं!

कातिब भी हूं, किताब भी हूं शागिर्द भी हूँ उस्ताद भी हूँ!
हँसते दिल की आवाज़ भी हूं शीरीं भी हूं, फरहाद भी हूं!

जी हां मैं मोहब्बत हूं

मैं इश्क भी हूं और आशिक भी, आलम भी हूं आराईश भी!
अल्लाह की हंसीं इनायत भी, प्यासी रूहों की हूं जरूरत भी!

मैं ही मकीन मैं ही मकान, मैं ही धरती और आस्मान!
और देख जरा इतिहास में भी, थे बादशाह मेरे गुलाम!

पर आज मेरा क्या हाल हुआ, हर दिल से मुझे निकाल दिया!
मैं रह गयी सिर्फ किताबों में, गीत औ नगमों में ढाल दिया!

जी हां मैं मोहब्बत हूं

मैं आ पहुंची व्योपारों में, पैसों में और दीनारों में!
सिक्कों में मुझको तोल रहे, मैं बिक गयी आज बाज़ारों में!

दिल से जो मुझे मिटाओगे, इख्लास से जो गिर जाओगे!
तब एक बात लाज़िम जानो, तुम सुकूं कभी न पाओगे!

जो मुझको भूल गया इन्सा, तू पारसाई को तरसेगा!
इस ज़ोर-औ-सितम की दुनिया में फिर मेहरो-वफ़ा को तरसेगा

जी हां मैं मोहब्बत हूं

जो रही चमन में ऐसी हवा, सब गुंचे खुशबू खोयेंगे!
फिर देखेगा सुनामी कई, चारों उन्सर तब रोयेंगे!

तस्कीने आलम जो चाहो, बस रस्मे वफ़ा निभाओ तुम!
इस जुल्म जफ़ा सबको छोडो, बस मुझको गले लगाओ तुम!

है मेरा तुमसे वादा यह, आलम में खुशिया भर दूँगी!
मुस्काएगा गोशा गोशा, और हुस्ने बहाराँ कर दूँगी

जी हाँ मैं मोहब्बत हूं

प्रेम लता शर्मा

इत्माम=सम्पूरणता ,सिद्धि
तायत = आराधना
जेहूँ (दरिया)
औजेगर्दूंमेंहूँ=आकाश का शिखर
मेहरो -माह =चाँदसूरज

प्रेम लता शर्मा

नाम :- प्रेम लता शर्मा पिता:–स्व. डॉ. दौलत राम "साबिर" पानीपती माता :- वीरां वाली शर्मा जन्म :- 28 दिसम्बर 1947 जन्म स्थान :- लुधियाना (पंजाब) शिक्षा :-एम ए संगीत, फिज़िकल एजुकेशन परिचय :-प्रेमलता जी का जन्म दिसम्बर 1947 बंटवारे के बाद लुधियाना के ब्राह्मण परिवार मैं हुआ। 1970 से 1986 तक शिक्षा विभाग में विभिन्न स्कूलों और कॉलेज में पढ़ाया उसके बाद यु.एस.ए. चले गएँ वहां आई.बी.एम. से रिटायर्ड हैं । छोटी सी उम्र में माता-पिता के साये से वंचित रही हैं । पिता जी अजीम शायर व भाई सुदर्शन पानीपती हिंदी लेखक थें । अपने पिता जी की गजलों को संग्रह कर उनकी रचनाओं की एक पुस्तक ‘हसरतों का गुबार’ प्रकाशित कर चुकी हैं ।भारत से दूर रहने पर भी साहित्य के प्रति लगन रोम रोम में बसा है।