“दोहा”
“दोहा”
नहि पराग कण पाखुडी, कलियन मह नहि वास
कब वसंत आयो गयो,***चित न चढें मधुमास ||१
सोन चिरैया उड़ चली, ****पिंजरा रखे सजाय
चुंगा दाना बिखर गया, अब कस निकसत हाय ||२
कई मंजिला घर मिला, ***मिली जगह भरपूर
भूल गये स धिरे धिरे , ***जीवन जग दस्तूर ||३
निर्धन मरा जुआरिया, *****धनी मरा संताप
मानवता पल में मरी,***मरि-मरि जिए अनाथ ||४
लोभी क्रोधी धूतरा, *****दिख सज्जन बड वेष
उतराए दिन रात है, ****कतहु न मिले निमेश ||५
महातम मिश्र
बहुत सुंदर दोहे
सादर धन्यवाद आदरणीया शशी शर्मा उर्फ़ ख़ुशी जी, सादर स्वागत है महोदया…..
उत्कृष्ट दोहे साहब
सादर धन्यवाद श्री वैभव दुबे जी, आभार सर
सुंदर रचना
सादर धन्यवाद आदरणीया विभारानी श्रीवास्तव जी