लघुकथा

लघुकथा : दरकते रिश्ते

कमला के पति का लंबी बीमारी के बाद देहावसान हो गया , पति की बीमारी में बहुत व्यस्त रहती ,पर अब बिलकुल खाली हो गई। कोई काम ही नही रह गया सिवाय सोचने के |ओरते चाहे दादी नानी बन जाये पर मायके का मोह नही छूटता , कमला का भी ये ही हाल था पर मायके में सिवाय एक पिता सामान भाई साहब के और कोई नही था , वे भरे पूरे परिवार के धनी थे ,पर बीमार रहते थे , तो कमला की दुःख की घड़ी में नहीं आ सके |

कमला ने खुद ही भाई साहब को देखने जाने की इच्छा बेटे बहु को बताई ,अँधा क्या चाहे दो आँखें। फौरन टिकट करवा दिया। बहु ने राहत की साँस ली कि चलो कुछ दिन फ्री , जाते हुवे कह दिया कि अब राखी में ज्यादा दिन नही हैं। आप राखी कर के ही आना। मांमा जी बीमार हे अगली राखी क्या भरोसा , कमला को भला क्या एतराज था | भाई साहब से मिली ४-५ दिन भतीजे भतीजो की बहुवो ने आव भगत की ,फिर एक दिन भाई ने पूछ लिया कि कमला क्या विचार है और भतीजे भी बोले की हा भुआ जी बता दे कब का रिजर्वेशन करवा दे |कमला निरुत्तर बोली देखले जब भी आप भेजे पर मन में बहु को क्या कहेगी की चिंता | बहु और भाई के दरकते रिश्तो के भवर में फंसी बेचारी कमला |

गीता पुरोहित

गीता पुरोहित

शिक्षा - हिंदी में एम् ए. तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा. सूचना एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिस से अवकाशप्राप्त,

One thought on “लघुकथा : दरकते रिश्ते

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    गीता जी , लघु कथा अच्छी लगी . हम किसी को भी पूछ लें ऐसी ही कहानी सुनाएगा ,बाहर से बेछक समान्य दीखते हों . मैंने भी जिंदगी में बहुत कुर्बानी की , पुरखों की जायदाद का अपना हिस्सा फ्री में दे दिया लेकिन अब वोह बदल गए हैं और हम से दूर रहना ही पसंद करते हैं . कहने को लोग बहुत धर्मी हैं ,धार्मिक आस्थानों पर माथे रगड़ते हैं लेकिन कर्म इस के उल्ट हैं .

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