धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

पञ्चांग

जैसा कि हमेशा से होता आया है, हरतालिका तीज के ऐन दो दिन पहले हमारे पुरोहित घर पर आए और बताया कि भादों की शुक्ल पक्ष की तृतीया कब से शुरू हो रही है और कब खतम होगी।  सदियों से हम अपने तीज त्योहार, व्रत, अनुष्ठान आदि की तारीख पंडितजी से पूछते और बरतते आए हैं। क्या कभी यह जिज्ञासा उपजी कि आखिर पंडितजी को इन तारीखों का ज्ञान कहाँ से होता है, चंद्र और सूर्य ग्रहण का इतना सटीक समय वो कैसे जान लेते हैं ?

कुछ लोगों को पंचांग के बारे में ज्ञात होगा, पर वो क्या है, कैसे तिथियों की गणना में सहायक होता है, यह ज्ञान, इसी विज्ञान में शिक्षित ज्योतिषियों को छोड़कर, शायद ही किसी को मालूम हो।। है न यह विचित्र सी बात, कि सदियों से हम एक ऐसे ‘एप्लीकेशन’ का इस्तेमाल करते आ रहे हैं जो वस्तुतः हमारे दिमाग रूपी कम्प्यूटर का एक अनूठा साॅफ्टवेयर है और जिसे अपडेट करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। आज का यह, प्रकाश की गति से बढ़ता हुआ, कम्प्यूटर विज्ञान भी अभी तक ऐसा कोई साॅफ्टवेयर नहीं बना पाया है जिसे कभी अपडेट करने की आवश्यकता ही न पड़े।

पंचांग, जैसा कि शब्द से विदित है, पाँच अंगों को आपस में गूँथ कर बनाया हुआ ज्योतिषीय गणित है जिसके द्वारा तमाम खगोलीय पिंडों की चाल को समझा जाता है। यह पाँच अंग हैं – दिवस (day), नक्षत्र (constelations), तिथि (date), योग (union) और कर्ण (diagonal projection)। यह सारी गणित सूर्य चक्र और उसके द्वारा नक्षत्रों में विहार की, चंद्र कैलेन्डर के सापेक्ष प्रदर्शित, स्थितियाँ हैं। मैं जानता हूँ कि आम आदमी के लिये इसे समझना आसान नहीं है, पर यह गणित है और आम आदमी के लिये बनी ही नहीं है। यह गणित, जिसे हम ज्योतिष विद्या कहते हैं, अंक गणित और ज्यामिति का अनूठा योग है। आम तौर से लोग अंग्रेजी का ज्यूलियन कैलेंडर या सूर्य कैलेंडर और चंद्र कैलेंडर के बारे में जानते हैं परन्तु ज्योतिष में सभी नौ ग्रहों के कैलेंडर हैं। आम तौर से लोग, खास कर जिनका सूर्य पश्चिम से उदय होता है, इसे लोगों को मूर्ख बनाने का तरीका समझते हैं। ऐसा वे नादानी में, तथ्यों को जानने की कोशिश किये बग़ैर, करते हैं और तब अचंभित होते हैं जब कोई सच्चा जानकार उन्हें उनके जीवन का कोई राज़ बता देता है।

ज्योतिष शास्त्र के उल्लेख हमारे पुराणों तक में, जो कि हमारी संस्कृति का इतिहास हैं, मिलते हैं। आज, जब कि हमारे ऐतिहासिक ज्ञान की सीमा प्रत्यक्ष साक्ष्यों को आधार मानने के कारण बाधित है,  हम पाँच-छः हजार साल से पहले की कल्पना भी नहीं कर पाते, ऐसे में इस विद्या का पाँच हजार साल पुराना होना भी अपने में आश्चर्यचकित करने वाला ही है क्योंकि तब तक दूरदर्शी यंत्र का अविश्कार ही नहीं हुआ था और पश्चिमी मान्यता के अनुसार पृथ्वी चपटी थी और चंद्र-सूर्य इसका चक्कर लगाते थे। हमारे ज्योतिष शास्त्र में जो पृथ्वी को स्थाई माना जाता है, और जिसका उदाहरण दे कर दूसरे धर्म के अनुयायी हमें मूढ़ और पिछड़ा हुआ बताते नहीं थकते, वह खगोल पिंडों की पृथ्वी के सापेक्ष सामुद्रिक (अंतरिक्षीय) स्थिति की गणना हेतु मात्र एक मानक है। हजारों साल पहले हमारे पूर्वज जानते थे कि पृथ्वी गोल है और सूर्य का चक्कर लगाती है। सूर्य एक नक्षत्र है और चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। पृथ्वी ही नहीं सारा ब्रह्मांड गोल है इसीसे उसका नाम ब्रह्मांड, अर्थात अंडे की तरह गोल आकार वाला पड़ा। वे यह भी जानते थे कि खगोलीय पिंडों में एक आकर्षण शक्ति होती है जिसके कारण वे आपस में बँधे हुए हैं और समस्त ब्रह्मांड को इसी की वजह से आकार मिलता है। ये आकर्षण शक्ति पृथ्वी में भी है जिस वजह से इसका एक नाम धरा या धरती भी है क्योंकि जो भी वस्तु इससे दूर फेंकी जाती है, ये अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा उसे पुनः धारण कर लेती है। आर्यभट्ट ने इस शक्ति को मापा भी है और अपने एक सूत्र में इसका मान भी दिया है जिसे अगर हम आज के पैमाने में पढ़ना चाहें तो वो 31.2679 पौंड/फुट प्रति सेकंड/प्रति सेकंड आता है जब कि आइज़ैक न्यूटन, जिन्हें गुरत्व का अविष्कारक माना जाता है, द्वारा प्रतिपादित सूत्र से इसका मान तकरीबन 32.174पौंड/फुट/सेकंड/सेकंड आता है ( मीटरिक प्रणाली में यह न्यूटन में नापा जाता है)। और, आर्यभट्ट न्यूटन से हजारों साल पहले हुए थे।

कहने का तात्पर्य इतना है कि जिन अविष्कारों पर आज गैलीलियो, न्यूटन आदि का नाम लिखा हुआ है, उसे हमारे महीषियों ने तब जान समझ लिया था जब पश्चिम में सभ्यता का आविर्भाव भी नहीं हुआ था और आदमी जंगलों में रहता था। मुसलमानों ने अपने आधिपत्य में मंदिर और मूर्तियाँ आदि तोड़ी हों पर उन्होंने हमारी सांस्कृतिक धरोहर को नष्ट करने की कोशिश कभी नहीं की। परन्तु अंग्रेज़ों ने मैकाॅले के दिशा निर्देश में ऐसी शिक्षा व्यवस्था रची कि हम उनके इतिहास को प्रमाणित मानने लगे और अपने इतिहास को, अर्थात पुराणों को कपोलकल्पित कह कर भूल गये। महर्षि भारद्वाज का वैमानिकी शास्त्र, जिसमें अनेकों प्रकार के विमानों के गुण धर्म और उनकी रचना का तरीका बताया गया है, तब रचा गया था जब पश्चिम वाले पतंग भी उड़ाना नहीं जानते थे। पर अफसोस कि यह अविष्कार भी राइट ब्रदर्स के नाम है। महर्षि सुश्रुत ने तरह तरह की शल्य क्रियाओं को, जिसमें रूप सज्जा (प्लास्टिक सर्जरी) भी सम्मिलित है, आज से तकरीबन छः हजार साल पहले संभव किया था जो सुश्रुत संहिता के रूप में उपलब्ध है।

विज्ञान के भी पाँच अंग होते हैं। जिज्ञासा, पिपासा, अंवेषण, अविष्कार और प्रतिपादन। जिज्ञासा की प्रखरता ही पिपासा है जो अंवेषण के लिये प्रेरित करती है। अंवेषण अविष्कार की जननी है और अविष्कार का सत्यापन प्रतिपादन है। काश कि हम अपनी खोज का विषय अपने शास्त्रों में निहित दैवीय ज्ञान को बना पाते तो हमारे अन्वेषकों को अपने ज्ञान की प्रतिभा को बढ़ाने और परखने के लिये विदेश गमन न करना पड़ता। आज हमारे प्रधानमंत्री को बाहर गयी प्रतिभा को देशोन्मुख करने के लिये अथक प्रयास करना पड़ रहा है। इससे अच्छा तो यह होगा कि विदेशियों को संस्कृति सिखाने के बजाय देश में ही हम ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों को धन और संसाधन से युक्त करें और अपने शास्त्रों को खोज का विषय बनाएँ। बाहर गये लोग स्वतः वापस आ जाएँगे। बस हमें अपने आप में विश्वास पैदा करना होगा और मैकाॅलीय मानसिकता को अंग्रेजी राज के समान भूल जाना होगा। भारत का प्राचीन गौरव स्वतः वापस आ जाएगा ।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

2 thoughts on “पञ्चांग

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सरल ढंग से अच्छी जानकारी मिली
    धन्यवाद आपका

    • मनोज पाण्डेय 'होश'

      धन्यवाद बहन

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