कविता

लेखनी उठा ले नारी

अबला और लाचार नहीं तू मत कह किस्मत की मारी।
खुद अपनी तकदीर लिख लेखनी उठा ले नारी।।

खुद पर तू विश्वास कर तू है दुर्गा की अवतार,
अपने आँसू पोंछकर अब जान अपना अधिकार,
लेखनी से कोरे कागज पर मत गुस्सा उतार,
लेखनी को मजबूत कर अब बना उसे तलवार,
सबकी किस्मत सँवारनेवाली अब है तेरी बारी…

खुद पर शोषण करती है तू दिल में दर्द छुपा के,
खुद को कमजोर बना लिया आँखों से नीर बहाके,
नारी ने क्या-क्या किया देख इतिहास उठाके,
तमस का सीना चीर दे खुद ही दीप जलाके,
माँ-बेटी-पत्नी बनी अब बन खुद की अधिकारी…

तुम बिन दुनिया नहीं रहेगी तुही है इसकी धड़कन,
समाज का रुप देनेवाली तू है समाज की दर्पण,
दूसरे के लिए खुद को करती रहती है अर्पण,
खुद को तू पहचान कर अनमोल है ये जीवन,
उड़के देख मुक्त गगन में मत बन बेबस-बेचारी।
अपनी तकदीर खुद लिख लेखनी उठा ले नारी।।

– दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।