राजनीति

पंचायत चुनावों के परिणाम सभी दलों को दिखा रहे आईना

जिला पंचायत चुनावों के अधिकांश परिणाम आ गये हैं और इन परिणामों के बाद उनकी समीक्षा और दावे तथा प्रतिदावे अने लग गये हैं। कई राजनैतिक दलों में अपने हिसाब से उमंग और उत्साह भी है तो कुछ का मनोबल भी बढ़ा है। सभी राजनैतिक दल इन चुनावों को मिशन-2017 की तैयारी के रूप में देख ओर लड़ रहे थे। यह चुनाव काफी अफरा-तफरी असमंजस के माहौल में संपन्न हुए। चुनावों में पुरानी मतपत्रों वाली व्यवस्था ही लागू रही। इन चुनावों सें जहां कई प्रश्नचिन्ह खड़े हो रहे हैं वहीं इन परिणामों से पता चल रहा है कि यदि इन चुनावों को भी स्वतंत्र व निष्पक्ष ढंग से एवं लोकसभा तथा विधानसभा की तर्ज पर इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन और उन्हीं नियमों के अनुरूप कराया जाये तो हमारी जिला पंचायतें भी स्वतंत्र व निष्पक्ष ढंग से निर्वाचित मानी जायेंगी तथा पंचायत स्तर पर विकास कार्यों का निष्पादन भी उसी प्रकार से संभव हो सकेगा।

इन चुनावों में धनबल, बाहुबल ,जातिवाद व वंशवाद की परम्परा का बोलबाला था। दबंगई का बोलबाला था। इन चुनावों में हर दल के दागी और बागी उम्मीदवार मैदान में थे। कई प्रत्याशी तो केवल एक दूसरे को हराने के लिए चुनावी मैदान में उतर पडे़ थे। चुनावों के दौरान यह चर्चा जोरों पर रही कि सत्ता पक्ष के समर्थक उम्मीदवार सत्ता का दुरूपयोग कर चुनाव हर हाल में जीतना चाहेंगे। लेकिन प्रदेश की जनता साधुवाद की पात्र हेै कि उसने इस बार इन चुनावो में काफी शराब और धन बांटे जाने की खबरों के बीच समाजवादी सत्ता से जुडे़ वंशवादी लोगों को बाहर का रास्ता दिखा ही दिया है। सपा नेताओं के रिश्तेदारों को इन चुनावों में मुुह की खानी पड़ी हैं । अधिकांश मंत्रियों के नाते, रिश्तेदार, बहू-बेटियां, भतीजियां व दामाद, भाई आदि चुनाव हार गये हैे। यह वंशवाद व जातिवाद का जहर घोलने वाली समाजवादी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका हैं। यह चुनाव यदि थोड़े और ईमानदारी से हुए होते तो समाजवादी पार्टी के इतने उम्मीदवार भी न जीत पाते।

यह भी कहा जा रहा है कि इस बार के जिल पंचायत चुनावों में जिस प्रकार की आरक्षण व्यवस्था लागू की गयी थी वह समाजवादी पार्टी के अनुरूप थी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में यह बात चल रही थी कि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को हर हाल में जिताने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है तथा प्रशासनिक अधिकारियों को भी मौखिक आदेश दिये गये थे कि जिला पंचायत चुनवों में समाजवादी पार्टी समर्थित अधिकांश उम्मीदवारों की जीत हो। फिर भी अधिकांश मंत्रियों व संगठन से जुडे़ उम्मीदवारों को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है। वही दूसरी ओर सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी दावा कर रहे हैं कि पंचायत चुनावों में सपा की ऐतिहासिक जीत हुई है तथा लगभग 60 प्रतिशत उम्मीदवार जीतने में सफल रहे हैं।

रही बात बसपा की तो वह जितने भी निर्दलीय जीते हैं और सभी को अपना मान रही हैं। बसपा नेत्री मायावती का मानना है कि जिला पंचायत चुनावों में बसपा नंबर एक पार्टी बनकर उभरी है और उन्होनें अभी से अपने कार्यकर्ताओं को मिशन-2017 के लिए जुट जाने का निर्देश दिया है। वहीं देश का तथाकथित सेकुलर मीडिया इन चुनावों की अलग ही तस्वीर पैदा कर रहा है। वह इन चुनावों कीे इस प्रकार से समीक्षा कर रहा है कि जैसे मानो भाजपा लोकसभा और विधानसभा चुनाव अभी से हार गयी हो। यह बात सही है कि प्रदेश में लोकसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी अपने 73 सांसदों को पहुंचाने में कामयाब रही लेकिन उसे भी इन चुनावों में काफी शर्मनाक पराजय देखने को मिली है। यह भाजपा के सासदों के लिए अभी से खतरे की घंटी हैं। सबसे अधिक खतरे की घंटी उमा भारती और कलराज मिश्र जैसे कद्दावर सांसदों के लिए बज गयी है।

इन चुनाव परिणामों से यह साफ संकेत जा रहा है कि ये सांसद अपने संसदीय क्षेत्र की जनता व कार्यकर्ताओं से दूर हो रहे हैं। यदि विधानसभा चुनाव जीतना है और अपने आप को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का दावा मजबूत रखना है तो अब भाजपा को गांव के सबसे निचले स्तर तक संगठनात्मक नजरिये से काफी मजबूत बनाना होगा। भाजपा के दावों के नजरिये से देखा जाये तो भाजपा पहली बार इन जिला पंचायत चुनावों में अपने दमखम को परखने के लिए चुनावी मैदान में उतरी थी तथा उसे पहले से ही इस प्रकार के परिणामों की उम्मीद थी। इन चुनाव परिणामों पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का कहना है कि, ‘भाजपा की संख्या 58 से बढ़कर 531 तक पहुंच गयी है तथा उनके सदस्यों की अभी और बढ़ेगी। वहीं उनका मत है कि इन चुनावों में सत्तारूढ समाजवादी पार्टी ने लोकतंत्र की खुलेआम धज्जियां उड़ाई हैं।

चुनावी प्रक्रिया को अलोकतांत्रिक ढंग से कब्जिायाने का प्रसास किया तब भी प्रदेश की जनता ने समाजवादी पार्टी को नकार दिया हैं। वहीं वह यह भी दावा कर रहे हैं कि यह सभी दल जिन निर्दलीयों को अपना बताने का दावा कर रहे हैं वे सभी अपने समर्थकों की सूची सार्वजनिक करें तभी सही तस्वीर साफ हो सकेगी। उन्होनें बसपा के नबर वन के दावे को भी खारिज किया है। वहीं दूसरी ओर भाजपा आलाकमान ने इन चुनाव परिणामों में हुई्र पराजय को गंभीरता से लिया है प्रदेश प्रभारी ओम माथुर काफी कडे़ तेवरों के साथ समीक्षा करने के लिए आ गये हैं। इन चुनाव परिणामोें के बाद कई नेताओं पर गाज गिर सकती है और कुछ बड़ें सांगठनिक परिवर्तन तथा रणनीतिक फेरबदल हो सकते हैं।

इन चुनावों मेे छोटे दलों की दृष्टि से देखा जाये तो भाजपा के सहयोगी अपना दल को जबर्दस्त लाभ हुआ है वहीं पश्चिमी उप्र के रालोद को पीने का पानी तक नहीं मिल सका है। सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण खबर यह रही है कि हैदराबाद के ओवैसी की पार्टी को जमीन मिल गयी है वह भी सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के गढ़ में। यह एक जबर्दस्त परिवर्तन है। इसे नकारा नहीं जा सकता और औवेसी का प्रदेश के मुसलमानों के बीच उभर यदि सबसे अधिक खतरे की घंटी है तो वह है समाजवादी पार्टी। अब बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद उप्र में भी राजनीति के नये चित्र देखने को मिल सकते हैं।

— मृत्युंजय दीक्षित