लघुकथा

~~इज्‍जत~~

“काकी,ओ काकी कहाँ हो ?”
“अरे बिटिया आओ-आओ बईठो | बड़े सालों बाद दिखी | ये तेरी बिटिया है न कित्ती बड़ी हो गयी हैं | सुना ही होंगा तेरे काका और भाई ..| सुंदर मेहरिया जमाने में कैसे जियेगी, बदसूरत को तो अकेले देख भेड़िये झपट ही पड़ते | मैं कब तक रहूंगी | आज गयी की कल |” कह सुबकने लगी काकी |
“काकी क्या कहूँ इस दुःख की घड़ी में | सुनी तो दौड़ी आई |”
“पहाड़ सी जिनगी कैसे काटेगी अकेली, वह भी इस दुधमुहें के साथ |”
“मैं कुछ कहूँ काकी ?”
‘हा बोल बिटिया !!”
“इसकी शादी मेरे बेटे से करवा दो | मेरा बेटा कुंवारा हैं और ये एक बच्चे की माँ ,पर किस्मत को शायद यही मंजूर हैं |”
” पर….!!”
“पर-वर छोड़ काकी कोई कुछ न कहता | कित्ता दूर का रिश्ता है अपना | कोई नजदीकी रिश्ता तो हैं न की समाज बोलेगा | और समाज का क्या हैं ,कुछ न कुछ बोलता ही हैं | और दूजी बात हम यहाँ कौन सा रहते ,रहते तो शहर में न | कुछ कहेंगा भी तो कौन सुनने आ रहा |”
“बहू से पूछ लूँ |”
थोड़ी देर में ही काकी लौटकर अपनी सहमति की मुहर लगा दीं |
बेटी लौटते हुय माँ से बोली “मम्मी, ये क्या कर रही हैं आप |एक तो ये वैसे ही दुखी है ऊपर से आप काँटों का ताज पहना रही हैं |”
“चुप कर मुई |कोई सुन लेगा | समाज में इज्जत बनी रहें इसके लिय बहुत कुछ करना होता | और फिर मैं तो उसे एक छाँव दे रही हूँ | मर्द के नाम की छाँव | उसकी भी इज्जत ढकी रहेगी और अपनी भी |”
“मम्मी ,मर्द न, पर भैया तो समsss..|”

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|