गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सम्भलना है तुझे ज्यादा ये हिंदुस्तान है प्यारे ।
बहुत सस्ता यहां बिकने लगा ईमान है प्यारे ।।

वतन मजहब वफादारी की उम्मीदे हैं नाजायज।
चन्द टुकड़ों पे है पलता वहाँ अरमान है प्यारे ।।

जहाँ बस्ती हो चोरों की वहीँ गन्दा लहू होगा।
रहा तू मुल्क से कैसे यहां अनजान है प्यारे ।।

हुए जयचन्द है जिन्दा तेरे कुनबे की महफ़िल में ।
तरक्की तोड़ कर लिखते नया उनवान है प्यारे ।।

तुम्हारी हर बुलंदी से निकल जाता है दम उनका ।
तुम्हारे नाम से क्यों आ रहा तूफ़ान है प्यारे ।।

बहुत मायूस है वो पाक का नापाक मंसूबा ।
सियासतदां लगे बनने वहां मेहमान है प्यारे ।।

है जाहिल जंगली को सिर्फ जंगलराज से मतलब।
देखता कौन अब तेरा कहाँ एहसान है प्यारे ।।

न ठग बन्धन कोई लूटे बचाना फर्ज है तेरा ।
तुम्हारी जुस्तजूं से बन रहा हर शान है प्यारे ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com