कविता

दिल है कोरे कागज समान

ये दिल है कोरे कागज के समान।

इसमें कुछ बचपन की यादें लिखी है
इसमें जीवन की कुछ वादें लिखी है
इसमें छुपी है कुछ रंगीन नजारे
इसमें कुछ दर्द भरी बातें लिखी है
इसके पन्नों में सिमटा है ये जहान,
ये दिल है कोरे कागज के समान।

किसी कोने में बनाता है प्यार की तस्वीर
किसी कोने में लगाता है नफरत की जंजीर
किसी कोने से सुख-दुख की गठरी खोलता है
किसी कोने में छुपा लेता है अपनी हर पीर
दिलवाले इस पर लिखते हैं अपनी दस्तान,
ये दिल है कोरे कागज के समान।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।