कविता

अचरज होता है मुझे

अचरज होता है मुझे

जब धारावाहिकों पर टेसूँ बहाने वाले

देख नहीं पाते अपनों के दिलों पर छाले

अचरज होता है मुझे

 

अचरज होता है मुझे

जब लोग मंदिरों की देहरी पर माथा पटकते हैं

और घर के बड़े-बूढ़ों को धूल सा झटकते हैं

अचरज होता है मुझे

 

अचरज होता है मुझे

जब अनाथों पर लाखों लुटानेवालों के घर में

बचपन तरसता हो प्रेम के दो बोल लिए अधर में

अचरज होता है मुझे

 

अचरज होता है मुझे

हाथ बाँधे जो खड़ा हो बास के दफ्तर में

और छोड़ता हो हाथ पल-पल अपने घर में

अचरज होता है मुझे

 

अचरज होता है मुझे

जब मुस्कुराना बन गया हो मात्र एक गहना

तब जानता हो कोई सच में मुस्कुराते रहना

अचरज होता है मुझे

 

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*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल n30061984@gmail.com