कविता

तेरी राह में

हम तेरी राह में फूल बनकर खिले ।

हम जो तुमसे मिले बन गए सिलसिले ।

तेरी इक हसी हम तो यु मर मिटे ।

जैसे आवारा भवरे हैं गुल से मिले ।

खुश्बे महकी हवाओ से आने लगी ।

तुमसे मिलकर के तन्हाई गाने लगी ।

दिल के गुलशन के तुम बादशाह बन गए ।

तुम ही सजदा हो तुम ही खुदा बन गए ।

लाख शिकवे हुए और शिकायत हुई ।

रूठने और मनाने की आदत हुई ।

कुछ ना तुम कह सके कुछ ना हम कह सके ।

नैना दोनो के जैसे जुबा बन गए ।
मैं जो शम्मा हुई तुम परवाने हुए ।

सारी रैना जले और कहानी हुए ।

— अनुपमा दीक्षित मयंक

अनुपमा दीक्षित भारद्वाज

नाम - अनुपमा दीक्षित भारद्वाज पिता - जय प्रकाश दीक्षित पता - एल.आइ.जी. ७२७ सेक्टर डी कालिन्दी बिहार जिला - आगरा उ.प्र. पिन - २८२००६ जन्म तिथि - ०९/०४/१९९२ मो.- ७५३५०९४११९ सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन छन्दयुक्त एवं छन्दबद्ध रचनाएं देश विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओ मे रचनाएं प्रकाशित। शिक्षा - परास्नातक ( बीज विग्यान एवं प्रोद्योगिकी ) बी. एड ईमेल - adixit973@gmail.com

One thought on “तेरी राह में

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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