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सरकारी अस्पताल यमदूत या मसीहा

भारतीय संविधान में भारत की जनता को अपनी पसंद से जीने के मौलिक अधिकार प्राप्त हूए हैं। रंज होता है ऐसी घटना को पढ़ कर – दस दिन के छोटे मासूम बच्चे को चूहों ने कुतर-कुतर के मार डाला। इस घटना ने न केवल दिलों को झकझोर दिया बल्कि इससे एक मां की गोद सूनी हो गई और घर की सारी खुशियां  नौ दो ग्यारह हो र्गइं।

एक मां ने अपने जिगर के टुकड़े की तबियत ठीक न होने के कारण उसे गंुटूर के सरकारी चिकित्सालय में इस उम्मीद के साथ भर्ती किया कि वो उचित चिकित्सा से ठीक हो जाए। वहां उसे चिकित्सा तो मिली किन्तु डाॅक्टरों से नहीं, चूहों से। चूहों ने उस बच्चे को कुतर-कुतर के इतना अच्छा इलाज किया कि सुबहा होते होते वो मासूम चल बसा। इस दौरान मां ने डाॅक्टरों को जानकारी दी किन्तु इसे डाॅक्टरों ने नज़र अंदाज़ किया। यह जानते हुए भी कि एक मासूम आपदा में है। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या उस मासूम को बचाना डाॅक्टरों की ज़िम्मेदारी नही हैं? इस से ज़्यादा खेद की बात तो यह है कि उस चिकित्सालय के अधीक्षक ने अपने बयान में कहा – शिशु के मौत के अनेक कारण हैं। इस बात ने लोगों को अश्चर्यचकित कर दिया कि चिकित्सक के होते हुए चिकित्सालय में एक मासूम की मृत्यु हो गई। मैं तो यूं कहूंगा कि ’हत्या हो गई’।

इस घटना के तुरंत बाद चिकित्सालय में से 100 चूहों को निकाला गया, और पिछले वर्ष 1200 चूहों को निकाला गया था। प्रतिवर्ष चिकित्सालय की सफाई पर लाखों रूपये खर्च करने पर भी कुछ हासिल नहीं होता इस का कारण सिर्फ ज़िम्मेदारों की ही आलसीपन है। चूहे कीमती चीज़ों को ही नहीं बल्कि मनुष्य को भी हानि पहुंचा रहे हैं। इस के चलते मरीज़ों में भय का वातावरण निर्माण हुआ है। सरकार ने इस घटना का कारण बताकर दो परिचारिकाओं को निलंम्बित और दो डाक्टरों का तबादला कर इस घटना से अपने हाथ झाड़ लिये हैं। क्या निलंम्बन और तबादलों से उस मासूम की जान लौट आयेगी?

सरकारी चिकित्सालयों में ऐसी घटना पहली बार नहीं हुई है। पहले आवारा कुत्ते नवजात अर्भकों को नोंच कर खाते थे, आज चूहों ने बाजी मारी। और साबित कर दिया कि हमारे मसीहा आदरणीय चिकित्सक अपने कर्तव्य के प्रति कितने लापरवाह और गैरज़िम्मेदार हैं। क्या चिकित्सक के लिए पिछले वर्ष कि घटना काफी नहीं थी जागरूक रहने के लिए?

चाहे कहीं के भी चिकित्सक हों, सरकारी मुलाज़िम हों या गैरसरकारी वे अपना वेतन या और कुछ जो उसे कहते हैं सभी प्रजा के धन ही से पाते हैं। क्या प्रजा की प्राणों की रक्षा करना उनका कर्तव्य नहीं? जब ये लोग वेतन आदि के लिए एक जुट होकर आंदोलन कर सकते हैं, तो प्रजा के प्राणों की रक्षा में ये लापरवाही क्यों करते हैं?

सय्यद ताहेर

सय्यद ताहेर

सय्यद ताहेर पीएच डी शोधार्थी तेलंगाना विश्वविद्यालय डिचपल्ली, निज़ामाबाद संपर्क : 9391764590

One thought on “सरकारी अस्पताल यमदूत या मसीहा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख ! चिकित्सकों और उनके सहायकों को अधिक मानवीय होना चाहिए। केवल पैसे कमाना उनका ध्येय न हो।

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