बाल कविता

बचपन का जमाना

बचपन का जमाना
कितना प्यारा होता था
साथियों संग रहना
साथियों संग लडना
फिर उसे मना लेना
कितना प्यारा लगता था
सुबह मॉ की एक पुकार पर
झट से उठ जाना
नहा धोकर स्कूल के लियें
तैयार होना
कितना प्यारा लगता था
शाम को खेलने जाना
तितलियों को फसाना
फिर उसे छोड देना
कितना प्यारा लगता था
पापा की डॉट
मॉ का प्यार
दादी नानी की कहानी
कितना प्यारा लगता था
चॉद का लोरी
दूध का कटोरी
मिठी मिठी बोली
कितना प्यारा लगता था
आज सिर्फ यादों में
सिमट कर रह गया
यह बचपन का जमाना
जो बहुत प्यारा लगता था
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४