संस्मरण

मेरी कहानी 128

भारत में बैठे लोगों को बहुत बातों का पता नहीं होता कि बिदेस में भारतीय कैसे रहते हैं और उन के मन में अपने देश के प्रती कितना लगाव होता है। सही बात तो यह है कि देश प्रेम क्या होता है, यह देश से बाहर आकर ही पता चलता है। एक बात तो सही है कि जैसे किसी लड़की की शादी हो जाने के बाद उस को मायके की याद बहुत आती है, इसी तरह परदेस में आये भारतीओं को भारत की याद बहुत आती है। दूसरे देशों से आये लोगों के साथ भी ऐसा ही होगा लेकिन मैं बात सिर्फ भारतीओं की ही करूँगा। जैसे जैसे साल गुज़रते जाते हैं वैसे वैसे परदेस में लोग अपने पैर जमाते जाते हैं, बच्चे हो जाते हैं, बड़े हो जाते हैं, उन कि शादीआं हो जाती है, फिर उन के बच्चे हो जाते हैं, बूड़े हो जाते हैं लेकिन आख़री दम तक अपना देश याद आता है। इस के साथ ही अपनी मातर भूमि में हो रही घटनाओं को बहुत गंभीरता से लेते हैं। हर छोटी से छोटी बात को ले कर बातें होती रहती हैं। आज तो मीडीया इतना तेज़ हो गिया है कि कुछ भी बुरा या अच्छा हुआ हो, कुछ मिनटों में ही खबर हमारे पास पहुँच जाती है।

अब मैं फिर से उस ज़माने में चला जाता हूँ, जब 1962 में इंग्लैण्ड में आया था। बहुत पहले मैं लिख चुक्का हूँ कि मैं और बहादर बहुत घूमा करते थे, एक तो काम पर लग गए थे और पैसे हमारी जेबों में होते थे, दूसरे जवानी की उम्र और तीसरे यहाँ खाने पीने के लिए बहुत चीज़ें होती थी। हम इंडिया में अपने दोस्तों को ख़त लिखा करते थे और कुछ बड़ा चड़ा कर बताते थे। इंडिया में तो हम पड़ाई करते थे लेकिन यहाँ आ कर हम कुछ आज़ाद महसूस करने लगे थे लेकिन इंडिया की याद हर दम आती थी लेकिन उस समय एक बात खटकती थी कि कोई इंडिया का अखबार नहीं होता था, रेडिओ ऐसे थे जिन पर इंडिया का कोई भी स्टेशन नहीं आता था। इंडिया के रेडिओ स्टेशन और सीलोन रेडिओ के गाने बहुत मिस करते थे। फिर कुछ दोस्तों ने बताया कि एक रशियन ट्रांज़िस्टर रेडिओ दुकानों में मिलता है, जिस पर इंडिया के गाने सुने जा सकते हैं। एक दोस्त से हम वोह रेडिओ भी ले आये लेकिन शौर्ट वेव पर बड़ी मुश्किल से एक्सटर्नल सर्विसज़ ऑफ ऑल इंडिया रेडिओ ही सुन सकते थे, वोह भी कभी आती कभी नहीं। फिल्मों के गाने भी जब कोई इंडिया जाता तो वोह रिकार्ड करके ले आता और सभी दोस्त उसके घर जाते रहते और गाने रिकार्ड करते रहते। अखबार भी हम डेली टेलीग्राफ, गार्डियन या टाइम्ज़ लेते थे ताकि हमें कोई इंडिया की खबर मिल सके। यह सारे पेपर मह्न्घे होते थे लेकिन हम यही लेते थे। आम गोरे तो डेली मेल सन या इंडीपेंडेंट ही लेते थे जिन में फ़ौरन नीऊज कम और सपोर्ट या गोरी मॉडलों के पोज़ ज़्यादा होते थे। कई दफा इंडिया के मुतलक छोटी सी न्यूज़ भी होती तो हम एक दूसरे को दिखाते और जो पड़े लिखे भाई नहीं थे, उनको ख़बरें सुनाते।

मैं और बहादर जून 1962 में आये थे और इसी वर्ष अक्तूबर में चीन ने इंडिया पर हमला कर दिया था। उस वक्त इंगलैंड में टैलिवियन पर सिर्फ दो चैनल ही आते थे, बीबीसी और आईटीवी। जब ख़बरें आतीं तो बड़ी उत्सुकता से हम सुनते देखते और देख देखकर दहल जाते कि हमारे कितने जवान शहीद हो रहे थे। शनिवार और रविवार को सभी पब्ब भरे होते थे और टीवी पर ख़बरें देख देखकर डर जाते। बहुत बातें होतीं। फिर कोई इंडिया से आता और वह हमारे जवानों की बहादरी के किस्से सुनाता तो अपने जवानों की बहादरी की बातें होती रहतीं। एक जवान हमारे नज़दीक के गाँव का ही था जो आठ चीनियों को मारकर शहीद हुआ था। इंडिया से आया शख्स बताता था कि रेडिओ जालंधर पर रोज़ सुबह शाम इस जवान की चरचा होती रहती थी और इनकी बहादरी पर देश प्रेम के गाने बजते थे ।

दरअसल जब हम इंडिया में कालज में पड़ते थे तो 1959 में तिबत के लोगों ने चीनियों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था जिस को चीनियों ने बहुत सख्ती से कुचला था और दलाईलामा भाग कर इंडिया आ गया और साथ ही बहुत तिबती लोग आ गए थे। जवाहर लाल नेहरू ने दलाईलामा को शरण दी थी। बस यही झगडे का कारण था वर्ना पहले भारत चीन की दोस्ती तो बहुत थी और जब चउिंलाई भारत आया था तो उस को बहुत वेलकम किया गया था और चीनी हिन्दी भाई भाई के नारे पीकिंग रेडिओ पर सुनाई देते थे। जब चउिंलाई भारत आया था, मैं तो उस वक्त बहुत छोटा था लेकिन बाद में कभी सिनिमा घर में पुरानी न्यूजरीलें दिखाया करते थे जिस में पंचशील समझौते के बारे में बताया करते थे जो इंडिया और चीन के दरमयान हुआ था। इस झगडे का किया कारण था, मैं इस के बारे में नहीं लिखूंगा, मैं तो उस समय जो हम बाहर रहते भारती महसूस करते थे, वह ही लिखूंगा।

कुछ लोग पब्बों में जा कर लोगों से पैसे इकठे करते। इंडिया के हाई कमिश्नर की तरफ से एक वार फंड कायम कर दिया था जिस में लोग चैक भेजते। बहुत लोगों ने सारी की सारी तन्खोआह ही दान में दे दी। यह भी सुना था कि बहुत लोगों ने ठग्गी भी की थी और पैसे इकठे करके किसी को दिए नहीं थे। पाकिस्तानी लोग इस लड़ाई से खुश थे क्योंकि चीन और पाकिस्तान के समबंद बहुत अच्छे थे। कुछ समय बाद 1962 की लड़ाई के बारे में इंडिया में एक फिल्म बनी थी, जिस का नाम था हकीकत। मैं और बहादर इसे देखने के लिए बर्मिंघम के मौसली इलाके के रीगल सिनिमे में देखने गए थे। वहां कुछ पाकिस्तानी बैनर ले कर खड़े थे जिस पर लिखा था “इस तरह की बोगज फिल्म देख कर आप अपना समय मत्त बर्बाद कीजिये” और लोगों को फिल्म देखने से रोक रहे थे। एक सिंह उनके साथ झगड़ने लगा और उस पाकिस्तानी ने उसको चाकू मार दिया। उस के खून निकल रहा था और जल्दी ही एक पुलिस मैंन वहां आ गया और उस ने एम्बुलेंस मंगवा ली और उस पाकिस्तानी को पकड़ कर ले गए।

इस लड़ाई के तीन साल बाद ही पाकिस्तान कश्मीर में गुरीलों के भेस में रैगुलर फौजी भेजने लगा था क्योंकि पाकिस्तानी जेनरल अयूब खान ने सोचा होगा कि चीन से हार कर भारत कमज़ोर हो गया होगा और वह कश्मीर को आसानी से हासल कर लगा लेकिन अयूब खान ने भारत को अंडरएस्टीमेट कर लिया था और उन के भेजे बहुत से फौजी भारती फ़ौज ने पकड़ लिए और 1965 में यह लड़ाई शुरू हो गई। उस समय भारत के प्रधान मंत्री लाल बहादर शास्त्री थे किओंकी 1964 में जवाहर लाल नेहरू परलोक सिधार गए थे। मुझे याद है टीवी की एक खबर में लाल बहादर शास्त्री बोल रहे थे ” OUR CITIES MAY BE BOMBED “. इसके दूसरे दिन ही लड़ाई शुरू हो गई। मैं इस लड़ाई की डीटेल में नहीं जाऊँगा, मैं तो सिर्फ यह ही लिखूंगा कि उस समय हम लोग किया महसूस कर रहे थे। सब इंडियन पाकिस्तानी दो वक्त का न्यूज़ पेपर खरीदते और बसों पर जब भी वक्त मिलता, पड़ते लेकिन कोई इंडियन पाकिस्तानी आपस में लड़ाई की बात न करता।

मुझे याद है , एक पाकिस्तानी जिस को कोई शरीरक प्रॉब्लम थी और उस को नींद बहुत आती थी और बैठा बैठा ही खुर्राटे मारना शुरू कर देता था, वह बस में खड़ा खड़ा इंडिया पाकिस्तान की लड़ाई की खबर पढ़ रहा था और वह खड़ा खड़ा ही खुर्राटे मार रहा था और अखबार के पेजेज़ धीरे धीरे नीचे गिर रहे थे और हम उसको देख कर हंस रहे थे। कई फैक्टीओं में इंडियन पाकिस्तानिओं की लड़ाई भी हुई थी। इंडियन और पाकिस्तानी अपने अपने देश के लिए पैसे इकठे कर रहे थे। एक फैक्ट्री में इंडियन पाकिस्तानिओं का झगड़ा हो गया तो लोग बता रहे थे कि एक सिंह जो बहुत तगड़ा था, ऊंची आवाज़ में ज़मीन पर एक लकीर खींच कर बोला, ” लो बई, इधर है इंडिया और उधर है पाकिस्तान, तुम इंडिया की तरफ आ कर देखो और मैं तुझे बताऊंगा कि बॉर्डर क्रॉस करने की क्या सजा होती है “. कुछ लोगों ने समझा कर झगड़ा बंद करा दिया किओंकी मैनेजमेंट दोनों को काम से निकाल सकती थी।

इस लड़ाई में पाकिस्तान का बहुत नुक्सान हो गया था और इंडिया ने बहुत सा पकिस्तान का इलाका अपने कब्ज़े में ले लिया था क्योंकि भारती फ़ौज तो लाहौर में घूम रही थी । उस वक्त एक खतरा यह भी हो गया था कि यह लड़ाई कहीं बढ़ ना जाए जिसमें बड़ी ताकतों का शामिल हो जाने का भय था। जब लड़ाई खत्म हुई तो रूस के प्रीपीअर कोसीजिन ने ताशकंद में अयूब खान और लाल बहादर शास्त्री के दरमयान सुलह सफाई के लिए बहुत काम किया । अयूब खान और लाल बहादर शास्त्री अखबारों के फ्रंट पेज पर हाथ मिला रहे थे। अचानक लाल बहादर शास्त्री ताशकंद में ही परलोक सिधार गए, क्या हुआ, कोई साजिस थी या कुछ और, किसी को कोई समझ नहीं आ रही थी। सारे भारती यहां बहुत दुखी थे और गोरे भी हमारे लोगों से हमदर्दी कर रहे थे। इस लड़ाई में एक बात और भी हुई थी कि ब्रिटिश प्रैस पाकिस्तान की स्पोर्ट कर रहा था और लाल बहादर शास्त्री को लिटल स्पैरो कह कर लिखते थे। लंडन में हमारे लोगों ने मुजाहरे किये थे और बैनरों पर लिखा हुआ था, ” STOP BRITISH PROPAGANDA “.

इस लड़ाई के छै साल बाद ही 1971 में भारत पाकिस्तान की अब तक की सब से बड़ी जंग शुरू हो गई। इस लड़ाई में तो यहां रहते हमारे भारती जैसे खुद इस जंग में शामिल हो गए हों। रोज़ टीवी पर देखते थे की बांग्ला देश से रिफ्यूजी आ रहे थे। पाकिस्तानी फ़ौज को जैनरल टिक्का खान ने खुली छूट दे दी थी और वह सभी बांग्ला देशी पड़े लिखें लोगों को घरों से निकाल निकाल कर मार रही थी। यूनिवर्स्टीओं में घुस कर लड़किओं का बलात्कार हो रहा था, हिन्दुओं को ख़ास कर मारा जा रहा था। याहिया खान ने फ़ौज को कह दिया था कि ” I WANT LAND, NOT BENGALIES “. यह आम कत्लेआम हो रहा था। इंडिया में धड़ा धड़ लोग उजड़ कर आ रहे थे। भारत का बिदेश मंत्री स्वर्ण सिंह सब देशों का दौरा कर रहा था लेकिन उस की यह बिदेश यात्रा का कोई फर्क नहीं पड़ा था। इस को डीटेल में ना लिखता हुआ यह ही कहूंगा कि इंडिया के पास अब कोई चारा नहीं रह गया जब पाकिस्तान की एअर फ़ोर्स ने भारत के कई शहरों पर बम्बार्ट्मैंट शुरू कर दी।

फिर इंद्रा गांधी ने बयान दिया कि, ” WE HAVE BEEN ATTACKED AND WE DECLARE WAR “. लड़ाई शुरू हो गई इंग्लैण्ड में लोगों ने धड़ा धड़ पैसे इक्कठे करने शुरू कर दिए। यह लड़ाई 13 दिन रही थी और जिस दिन ढाका में जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पाकिस्तान के जेनरल A K NIAZI ने हथिआर डाले तो उस दिन सब पब्ब भरे हुए थे और लोग बहुत खुश थे। सुबह और शाम के दोनों अखबार हम लेते और उन में इंडियन न्यूज़ की कटिंग रखते। एक पेपर के फ्रंट पेज पर इंद्रा गांधी की फोटो थी जिस में वह इंडियन फ़ौज को बोल रही थी,” WHOLE COUNTRY BEHIND YOU “. एक पेपर पर न्याजी को सरेंडर करते समय का कार्टून बना हुआ था, नीचे लिखा था ” I WILL FIGHT TO THE LAST MAN AND OF COURSE I WILL BE THE LAST MAN .

शायद 1975 के करीब ही भारत के सिआसी हालात बहुत बिगड़ गए थे और इंद्रा गांधी ने एमरजैंसी लगा दी थी। आपोजीशन के बहुत एमपी जेल भेज दिए गए थे और इन्हीं दिनों में इंद्रा गांधी के बेटे संजय गांधी ने स्टैरालाइजेशन का काम शुरू कर दिया था ताकि भारत की आबादी पे कंट्रोल हो सके लेकिन इस का असर बहुत बुरा हुआ क्योंकि पंजाब में बहुत लोगों के साथ ज़्यादती की गई। बहुत घरों में एक ही बेटा था, सुना जाता था कि कुछ सम्बन्धिओं ने ज़मीन हड़प्प कर लेने की गरज से पुलिस को घूस दे कर लड़कों को निपुन्सक बना दिया था। इस समय भी लोग बहुत डरे हुए थे। इस के जल्दी बाद ही इंद्रा गांधी इलेक्शन हार गई और मुरार जी देसाई परधान मंत्री बन गए थे। ब्रिटिश प्रैस मुरार जी देसाई को बहुत सपोर्ट कर रही थी और लिख रही थी कि बेछक मुरार जी देसाई बूढ़ा हैं लेकिन शेर की तरह चलता है। बिदेशी लोगों से सपोर्ट लेने की गरज से इंद्रा गांधी बहुत देशों की यात्रा कर रही थी और हमारे यहाँ बर्मिंघम में भी आई थी। मैं और बहादर भी इंद्रा गांधी का लैक्चर सुनने के लिए गए थे। इंद्रा गांधी के साथ दरबारा सिंह और कुछ अन्य लोग आये हुए थे। हाल भरा हुआ था। पहले दरबारा सिंह ने लैक्चर दिया और फिर इंद्रा गांधी बोलने लगी। हाल में ही एक पाकिस्तानी उठ कर नारा मारने लगा KASHMIR FOR KASHMIRIES , लोगों ने उसी वक्त उसको पीटना शुरू कर दिया लेकिन पुलिस ने उसे बचा लिया। फिर इंद्रा गांधी हंस कर बोली,” इन को शायद यह नहीं पता कि मैं भी कश्मीरी हूँ “.

हालाँकि उस वक्त हमें इतनी नीऊज नहीं मिलती थी लेकिन जितनी भी मिलती, उस को लेकर पब्बों में बहुत बातें होतीं। मुझे उस साल का तो याद नहीं लेकिन एक स्थिति भी पैदा हो गई थी। डाक्टर जगजीत सिंह चुहान खालिस्तान की बातें कर रहा था लेकिन किसी भी गुर्दुआरे ने उसे सपोर्ट नहीं किया था । हमारे टाऊन वोल्वरहैंपटन के कैनक रोड गुर्दुआरे में वह एक हाथ लिखत ग्रन्थ साहब की बीड़ ले कर आ रहा था लेकिन लोगों ने बहुत मुजाहरे किये थे और उसको सम्बोधन करके कहा था, TRAITOR GO BACK और यह बैनर शाम के पेपर EXPRESS & STAR के फ्रंट पेज पर था। एक पब्ब में मैंने एक लड़के के हाथ में खालिस्तान का नक्शा भी देखा था जिस में पाकिस्तान का पंजाब भी शामिल था। आम सिख इस लहर को स्पोर्ट नहीं करते थे लेकिन इंडिया की सिआसत का यहां असर बहुत होता था। यहां तक कि जरनैल सिंह भिंडरावाले का भी यहां के लोगों पर कोई ख़ास असर नहीं था।

बलू स्टार ऑपरेशन ने सिखों के दिलों में इंद्रा गांधी के खिलाफ नफरत पैदा कर दी और सिख महसूस करने लगे कि स्वर्ण मंदर पर हमला करके इंद्रा गांधी ने बता दिया था कि सिखों के लिए भारत में कोई जगह नहीं। इंद्रा गांधी के अपने ही बॉडी गार्डों ने जब उन को मार दिया तो राजिव गांधी का इशारा कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है ने हज़ारों सिखों का कत्लेआम कर दिया, उन को घरों से निकाल निकाल कर मार दिया गया, उन की प्रॉपर्टी जला दी गई। इन में बहुत लोग जो यहां से भारत आये हुए थे, बहुत लोग उन में भी मारे गए क्योंकि दिली से जब हरयाणा से ट्रेन गुज़रती थी तो उन को ट्रेन से निकाल निकाल कर मारा गया, बहुत माताओं ने अपने बच्चों को बचाने के लिए उन के सरों के बाल काट दिए थे ।

इन सब बातों का असर हम बिदेसी लोगो पर पड़ता है। कौन दोषी होते हैं, कौन निर्दोष, यह मेरा विशा नहीं है बल्कि यह ऐसी बातें हैं, सच्ची या झूठी, बाहर बैठे लोगों को इन के साथ जीना पड़ता है।

चलता. . . .

6 thoughts on “मेरी कहानी 128

  • Man Mohan Kumar Arya

    आपने सन १९६२ से बाद तक की प्रमुख राष्ट्रिय एवं सियासी घटनाओं का रोचक एवं ज्ञानवर्धक वर्णन किया है। वेदों के अनुसार कोई भी देश वहां के लोगों की माँ होता है। देशवासिओं का अपने देश से प्रेम होना स्वाभाविक है। व्यक्ति अच्छे बुरे हो सकतें हैं देश नहीं। जो देश के पक्ष में सोचता है वह देशभक्त और जो देश के विरुद्ध बाते व काम करता है वह गद्दार होता है। आज हमारे देश में गद्दार बढ़ रहें हैं। अनेक राजनीतिक दलों के लिए अपने दल का महत्व देश से अधिक है। इसे देख कर चिंता होती है। मोदी जी से उम्मीदें हैं। आज की किश्त बहुत अच्छी लगी। हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। सादर।

    • धन्यवाद मनमोहन भाई . इसी लिए तो मात्रभूमि शब्द का इस्तेमाल होता है किओंकि जैसे हम अपनी माँ के साथ लगाव रखते हैं, इसी तरह उस धरती से हमारा मोह रहता है जिस में हम ने जनम लिया हो . अँगरेज़ भी इतने वर्ष राज करके आखर में अपने देश ही वापस गए .

      • Man Mohan Kumar Arya

        जहाँ हम जन्म लेते हैं उसका मन पर इतना गहरा असर होता कि कभी हमें कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पद जाए तो बार बार घर की याद आती रहती है और हम चाहतें हैं कि हम उड़ कर अपने घर जहाँ हमारे माता पिता भाई बहिन और मित्र आदि होते हैं] उनके पास पहुँच जाएँ। शायद इसी को होम सिकनेस कहते। हैं सादर धन्यवाद।

        • मनमोहन भाई ,सही कहा आपने .घर चाहे झौंपडी भी क्यों ना हो ,बस इस जगह पर आ कर एक सकूं सा अनभव होता है .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने तो हमारे-आपके ज़माने का पूरा इतिहास ही याद करा दिया. यह सच है, कि विदेश में अपने देश की याद करके बहुत बेचैनी होती है. एक और उम्दा एपीसोड के लिए आभार.

    • लीला बहन , धन्यवाद . आप भी तो परदेस में ही हैं और आप से ज़िआदा कौन जान सकता है .

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