कविता

ज़ख्मी जूतों का अस्पताल

ज़ख्मी जूतों का अस्पताल
उसमें बैठे हैं डॉ. रामजी लाल,
ओ.पी.डी. सुबह नौ बजे से एक बजे तक,
दोपहर एक से दो है भोजनकाल.
दो बजे से रात आठ बजे तक पुनः आइए,
अपने ज़ख्मी जूतों को साथ लाइए,
ज़ख्मी जूतों का होता यहां तसल्लीबख्श इलाज,
तसल्ली होने पर ही दाम चुकाइए.
छः महीनों की गारंटी भी साथ में मिलती है,
इससे पहले अगर इसकी सिलाई अगर हिलती है,
दुबारा कर देंगे हम इसकी सिलाई मुफ़्त में,
दुर्घटना के केस में गारंटी की गारंटी नहीं मिलती है.
में बाज़ार इंद्रपुरी में बैठता हूं,
सर्दी-गर्मी-बारिश टाट पर बैठकर ऐंठता हूं,
इनकी किसे परवाह है यहां,
बस मरीज़ों के साथ खुश होकर काम में पैठता हूं.
ध्यान रखिएगा, यह नहीं है मनुष्यों या पशुओं का अस्पताल,
उनको ले जाइए किसी और जगह तत्काल,
यहां तो बस जूतों का इलाज ही होता है,
खम ठोंककर कहते हैं डॉ. रामजी लाल.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “ज़ख्मी जूतों का अस्पताल

  • हा हा डाक्टर राम जी लाल के हस्पताल की भी जरुरत पड़ती ही रहती है और इन का इलाज तो होता ही गारंटीशुदा है.

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपकी हंसी बहुत अच्छी लगी. ऐसे ही हंसते रहिए.

  • हा हा डाक्टर राम जी लाल के हस्पताल की भी जरुरत पड़ती ही रहती है और इन का इलाज तो होता ही गारंटीशुदा है.

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