राजनीति

भाजपा के दलित प्रेम से सभी दलों में बैचेनी

उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं। प्रदेश में राजनैतिक दलों व नेताओं की हर गतिविधियों को अब चुनावी नजरिये से देखा जाने लगा है। अभी तक राजनैतिक विश्लेषक बार-बार यह कह रह थे कि भाजपा अपनी चुनावी तैयारियों में लगातार पिछड़ती जा रही है। भाजपा ने अपना अध्यक्ष नहीं घोषित किया है, चेहरा नहीं है आदि-आदि। साथ ही साथ सपा व बसपा से भाजपा मुकाबला कैसे कर पायेगी यह एक चिंता का विषय है। लेकिन इधर कुछ दिनों से प्रदेश भाजपा में गतिविधियां एकदम से बढ़ गयी हैं वह भी एकदम चैंकाने वाले अंदाज में, जिसके कारण दलित-पिछड़ों के सहारे अपनी राजनीति चमकाने वाले दलों व नेताओं के अंदर साफ तौर पर बैचेनी देखी जा रही है।
उत्तर प्रदेश मंें होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा व सभी दलों के लिए एक गंभीर चुनौती हैं तथा किसी भी दल के लिए आसान नहीं होने जा रहे हैं। यह चुनाव सबसे अधिक पीएम मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की लोकप्रियता के लिए एक लकीर खींचने वाले साबित हो सकते हैं। यही कारण है कि सरकार के दो साल के विकास पर्व के बहाने केंद्र सरकार के 45 मंत्रियों ने उप्र में डेरा डाल दिया है।

लोकसभा चुनावों के पूर्व जब अमित शाह को यूपी का चुनाव प्रभारी बनाकर भेजा गया था तब भी प्रदेश भाजपा के बहुत ही बुरे हालात थे। किसी भी चुनावी सर्वे में भाजपा को 20 से अधिक सीटें नहीं दी जा रही थीं, लेकिन जब चुनाव परिणाम सामने आये तब सभी चैंक गये थे, जनता भी और विश्लेषक भी। अब यूपी को लेकर उसी प्रकार का मंथन फिर से किया जा रहा है। लेकिन इस बार परिस्थितियां कुछ भिन्न अवश्य हुई हैं। सभी दल सत्ता में फिर से वापसी के लिए बैचेन दिख रहे हैं। भाजपा व संघ भी अपनी ताकत झोंक रहे हैं। संघ के लिए भी यूपी चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं। यही कारण है कि दलितों, अति पिछड़ों, पिछड़ों में अपनी पैठ को बढ़ाने के लिए एक के बाद एक सामाजिक समरसता के कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है जिससे राजनैतिक खलबली मचना स्वाभाविक है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अब अपनी रणनीति के माध्यम से सभी दलों को चारों ओर से घेरना चाह रहे हैं। वे उसमें कितना सफल हो पायेंगे यह तो आने वाला समय ही बता पायेगा।

सबसे पहले अमित शाह ने सिंहस्थ महाकुम्भ के दौरान संतों और दलितों के साथ स्नान करके बड़ा संदेश दिया, वहीं दूसरी ओर भाजपा के राज्यसभा सांसद तरुण विजय ने उत्तराखंड मे दलितों के मंदिरों में प्रवेश का मुददा उठाकर राजनीति को गर्माने का प्रयास किया। यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के 65 वर्षों के बाद भी दलितों को मंदिरों में प्रवेश नहीं मिल पा रहा है। जब एक भाजपा सांसद ने दलितों को मंदिर में प्रवेश करने का बीड़ा उठाया तो उनके साथ मारपीट की गयी तथा वे घायल और अस्पताल में भर्ती भी हो गये। तब भी देश में सहिष्णुता और असहिष्णुता का नाटक रचने वाले टीवी मीडिया तथा सोशल मीडिया का एक बड़ा वर्ग मौन साध गया। केवल बसपा नेत्री मायावाती ने ही सांसद तरुण विजय पर हमले की निंदा की। सांसद तरुण विजय ने यह मुददा संसद में भी उठाया था, लेकिन तब भी इस खबर को मीडिया में अधिक प्रसारित नहीं किया गया। संभवतः यदि यह खबर जोर-शोर से प्रसारित की जाती ओैर दलितों का मंदिरों में प्रवेश सुनिश्चित हो जाता तो दलितों के वोट बैंक पर जिंदा रहने वाले दलों का अस्तित्व समाप्त हो जाता। जरा सोचिये, अगर अभी यही हादसा किसी कांग्रेसी या अन्य पार्टी के नेता के साथ हुआ होता तो हंगामा मचा होता।

दूसरी ओर अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने वाराणसी के जोगियापुर गांव में गिरिजा बिंद और अकबाल बिंद के घर में जमीन में बैठकर भोजन किया और इसे समरसता भोज का नाम दे दिया गया। जब अमित शाह जोगियापुर गांव पहुंचे तो वहां पर उत्सव का माहौल था। शाह करीब 45 मिनट तक वहां पर रहे। यहां पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने स्पष्ट रूप से राजनैतिक संदेश देने का काम किया कि अब भाजपा ने सपा, बसपा और कांग्रेस सहित सभी दलों की राजनैतिक काट खोज ली है।

उधर बिंद समाज को भी भाजपा से नयी आस जग गयी है। बिंद समाज का भोज पर मानना था कि जब भाजपा अध्यक्ष उनके समाज के प्रति लगाव दिखा रहे हैं तो उनकी लड़ाई में बिंद समाज भी कदम से कदम मिलाकर चलेगा। बिंद समाज के नेता और भाजपा के मंडल महामंत्री सुनील कुमार बिंद कहते हैं कि काफी समय से बिंद समाज के लोग दलित समाज में शामिल होने की लड़ाई लम्बे समय से लड़ रहे हैं। यह लड़ाई सरकारों से अब न्यायालय तक पहुंच गयी है। ऐसे में हमारे समक्ष भाजपा के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचता।

इस समरसता भोज के बाद अमित शाह ने इलाहाबाद में भीषण गर्मी के बीच खचाखच भीड़ को किसान महासम्मेलन के नाम पर संबोधित भी किया। इस किसान महासम्मेलन में उमड़ी भीड़ से भाजपा में उत्साह का नया संचार हुआ है। भाजपा के सफल कार्यक्रमों व रैलियों में आ रही भीड़ से सभी दलों में बैचेनी होना स्वाभाविक है। अभी भाजपा व संघ की ओर से सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए ऐसे कई कार्यक्रमों का आयोजन प्रस्तावित है जिसके राजनैतिक निहितार्थ टी.वी. बहसों में अवश्य निकाले जायेंगे व उसके संदेश भी दूर तक जायेंगे। दूसरी ओर प्रदेश भाजपा अब दूसरे दलों के नेताओं को भी भाजपा में फिर से तेजी से शामिल करने का अभियान चलाने जा रही हैं। अभी हाल ही सपा व बसपा के कई नेता सैकड़ों समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो चुके हैं तथा कई कतार में लगे हैं जिसमें कई नाम चौंकाने वाले हो सकते हैं। इलाहाबाद में भाजपा की प्रस्तावित कार्यसमिति की बैठक में मुख्य एजेंडा उप्र सहित आगामी विधानसभा चुनाव ही होने वाले हैं। उक्त बैठक में पीएम मोदी भी रहेंगे तथा बाद में इलाहाबाद में ही विशाल रैली को संबोधित करेंगे।

इसी कारण सभी दलों में बेचैनी दिखलायी पड़ रही है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के समरसता भेाज पर बसपा नेत्री मायावती का कहना है कि वे नाटकबाजी कर रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है कि दलितों के घर खाना खाने से कुछ नहीं होता। उन्होंने राहुल गांधी का हवाला देते हुए कहा कि पहले भी एक नेता दलितों के घर खाना खा चुके हैं। उनका हाल पूरा देश जानता है। लेकिन समाजवादियों और बसपा जैसे दलों को इस बात का पता होना चाहिये कि भाजपा व संघ के सभी संगठन समाज में सामाजिक समरसता व दलितों पिछड़ों में चेतना जगाने के लिए इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन सदा करते रहते हैं। अब उनका राजनीतिकरण किया जा रहा है जो कि वर्तमान में स्वाभाविक है।

ज्ञातव्य है कि उ.प्र., उत्तराखंड और पंजाब में दलितों और अति पिछड़ों की तादाद अच्छी खासी है। यही कारण है कि सभी दलों की पसंद भी यही मतदाता वर्ग बन गया है। वहीं अब भाजपा में यह भी अभियान चलाया जा रहा है कि इस बार के विधानसभा चुनावों में इसी वर्ग के किसी चेहरे को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करके दलित, अति पिछडा, पिछड़ा कार्ड खेला जाये। यह सभी विषय अब इलाहाबाद में होने वाली भाजपा की कार्यकारिणी में ही तय होंगे लेकिन फिलहाल सभी दलों में घबराहट और बेचैनी उत्पन्न होने लगी है। दूसरी ओर खबर है कि प्रदेश के समाज को आकर्षित करने के लिए केंद्र सरकार कुछ और बढ़े कदम उठा सकती है। जिसमें मान्यवर कांशीराम जैसी हस्तियांें को भारत रत्न आदि भी दिया जा सकता है व कुछ अन्य ऐतिहासिक घोषणायें की जा सकती हैं। यही कारण है कि बसपा नेत्री मायावती रोज-रोज पीएम मोदी के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर रही हैं तथा उनके निशाने पर केंद्र सरकार भी है।
मृत्युंजय दीक्षित