कविता

प्यारी माँ

तीरथ  माँ  बाप  को कभी  करा न सका

कभी श्रवण  कुमार  कहला न सका।

छाती  सुखा ली उसने मुझे पिलाकर

मैं बकरी का दूध भी  दिला  न सका।

गीले  बिस्तर  पर करवटे ली रात भर

मैं टूटी  खाट भी  उसे सुला न  सका।

भूखी  रहकर  मुझे  खिलाये  व्यंजन

मैं उसे जी भरके भी अफरा न सका।

आशियाना भी बेचा पढ़ाने के खातिर

अधिकारी बनके भी काम आ न सका।

छटपटाती रही बीमारियो के चंगुल में

मैं  कमबख्त  दवा  भी दिला न सका।

मैं सोचकर गर्वित हूँ उसकी वीरता

पर बेदर्द जमाना  भी  उसे  डिगा न सका।

— दीपक गांधी

दीपक गाँधी

नाम - दीपक गांधी पिता का नाम - टी आर गांधी पद - विकास खण्ड अकादमिक समन्वयक (उच्च श्रेणी शिक्षक) निवास - ग्वालियर म. प्र. रूचि - साहित्य , लेखन ( कविता, गजल) साहित्यिक सफर - 120 कविता, 80 गजल लिख चुका हूँ