कविता

रोको अब यह अत्याचार…

रोको अब यह अत्याचार
काटे पेड हजार हजार
खंडित धरती घटता पानी
और प्रदूषित हुई बयार
मानव कुछ तो सोच विचार…
रोको अब यह अत्याचार….

फ्लैटों के ये उगते जंगल
त्राहि त्राहि करते जंगल
बुला रहे हो घोर अमंगल
धरती संग कर रहे दंगल
क्यूँ करते हो यह प्राहार…
रोको अब यह अत्याचार…

सूख रहे नदियाँ तालाब
तलहटी में पहुँची आब
ताकत की ये कैसी दाब
मत देखो जहरीले ख़्वाब
करो न जीवन से खिलवार….
रोको अब यह अत्याचार…..

धूल धुँवा है चारो और
शोर शोर है केवल शोर
घट रही नित जीवन की डोर
हुए सभी कर्तव्य चोर
जीवन करता हाहाकार…..
रोको अब यह अत्याचार…

कुछ तो समझो कुछ तो सोचो
आने वाली नस्लों का
तुले हुए हो जाने क्यूँ तुम
बीज मिटाने फसलों का
बचा सको तो बचा लो अपने
जीवन के तीनों आधार
मिट्टी पानी और बयार….
मिट्टी पानी और बयार….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

3 thoughts on “रोको अब यह अत्याचार…

  • अर्जुन सिंह नेगी

    बहुत सुन्दर कविता बंसल साहब

  • अर्जुन सिंह नेगी

    बहुत सुन्दर कविता बंसल साहब

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर !

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