उपन्यास अंश

*देवम बगीचे में*

स्कूल की पढ़ाई और होम-वर्क के बाद, देवम को जब भी फुर्सत मिलती तो वह बगीचे में जरूर जाता। बगीचे के एक-एक पौधे के बारे में वह पूरी जानकारी रखता।

बगीचे में पहुँच कर तो, उसे ऐसा लगता जैसे वह अपने ही परिवार के बीच में है और गार्डन में बैठ कर, न जाने क्यूँ, उसे एक अजीव सा सुकून भी मिलता और अपनापन भी।

यूँ तो उसके ढेर सारे दोस्त हैं, सोसायटी में भी और स्कूल में भी। पर गार्डन में पहुँच कर तो वह गार्डन-गार्डन ही हो जाता।

वह कहता-“पेड़-पौधों से अच्छा कोई दूसरा मित्र तो हो ही नहीं सकता। पेड़-पौधों के बिना हम अपने जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते। वे हमारे सच्चे मित्र ही नहीं बल्कि हमारे जीवन-दाता भी हैं।”

इसीलिए वह सदैव उनके साथ मित्रता का व्यवहार करता और उनके साथ इस प्रकार बात-चीत करता जैसे कि वे पेड़-पौधे नहीं, बल्कि उसके मित्र हों और उसकी सभी बातों को वे भली-भाँति समझते भी हों।

कभी गुड़हल के फूल के पास जाकर, उनके हाल-चाल पूछता और कभी खुश हो कर गेंदे के गमले के पास जा कर बड़ी आत्मीयता से गुड-मोर्निंग कह कर उससे पूछता-“कैसे हो, गेंदालाल जी! सब कुछ ठीक-ठाक है ना और कोई परेशानी तो नहीं है तुम्हें? तुम भी क्या, सारे दिन गमले में बैठे-बैठे हँसते ही रहते हो। अरे भाई, कोई काम-धाम है या नहीं, तुम्हारे पास में ?”

खैर कोई बात नहीं, गमले में बैठे-बैठे सब के गम लेते रहना और हँसते-हँसते सब को खुशियाँ बाँटते रहना भी तो, कोई आसान काम नहीं है। धन्य हो तुम और धन्य है तुम्हारा जीवन।

और फिर गेंदालाल जी भी तो मंद-मंद बहती शीतल सुगन्धित पवन से प्रभावित हो कर, हल्की सी सौम्य-मुस्कान को बिखेरते हुये हिल-हिल कर देवम की गुड-मोर्निंग को स्वीकार कर अपने आप को भाग्यशाली होने का गर्व अनुभव करते।

इसी तरह वह चम्पा, चमेली, वेला, मनी-प्लान्ट आदि के हाल-चाल पूछता और फिर सन-फ्लावर के पास जा कर कहता-“तुम तो हमेशा ही सूरज दादा की ओर ही देखते रहते हो, कभी तो हम लोगों की ओर भी देख लिया करो। कैसा है? सब ठीक है ना ?” और फिर आगे बढ़ जाता।

गुलाब के फूल को देख कर तो देवम खुश-खुश हो जाता, और फिर कहता-“अरे भाई, तुम ने ही तो मुझे हँसना सिखाया है। हर परिस्थिति में, हर पल, हर घड़ी, हँसते ही रहना तो कोई तुमसे सीखे।”

काँटों के बीच में रह कर, अपने आप की चिन्ता किये बिना, सदा ही मुस्कुराते रहना तो अच्छे-अच्छों के वश की बात नहीं होती है।

मन में गम और अधरों पर मुस्कान, बस ये ही तो तुम्हारी पहचान है। न जाने कितने गम समेटे हो तुम अपने अंतस् में? कितने दुखों के अम्बार लिये हो तुम? भीगी-भीगी पलकें और बोझिल मन, फिर भी हँसते रहते, उपवन-उपवन। धन्य हो तुम और तुम्हारा जीवन ! सच में गुलाब, तुम तो महान हो। तुम्हें सलाम है।

काँटे तो तुम्हारे अपने ही हैं और अपने ही जब पीड़ा दें, तो फिर शिकवा किससे करें? जब अपने ही आहत करें तो यह पीड़ा और भी ज्यादा दुखदायी हो जाती है, असहनीय कष्टदायक हो जाती है।

वैसे भी अपने ही तो हर पल, काँटों की तरह चुभते रहते हैं। कितने भाग्यशाली होते हैं वे लोग, जिनके अपने, अपने होते हैं। अपनापन होता हैं जिनमें, आत्मीयता होती है जिनके रोम-रोम में। जो अपनों का हित पहले और अपना हित बाद में सोचते हैं। मन गद्-गद् हो जाता है, ऐसी आत्मीयता को देख कर। आँखें भर आतीं हैं।

पर यहाँ तो उल्टी ही गंगा बहती है। यहाँ तो अपने ही पराये हैं और सिर्फ पराये ही नहीं, वल्कि पल-पल नोचते रहते हैं। दुख देने के नये-नये आविष्कार होते रहते हैं जिनके मन में। तो फिर, कैसा शिकवा? कैसा गिला? किससे? और क्यों?

परायों को तो, एक बार को फिर भी दया आ जाती है और वे सहानुभूतिवश, काँटों से मुक्ति दिलाने के लिये, तुम्हें डाल से तोड़ कर अपने पास में रख लेते हैं। और काँटों से हमेशा-हमेशा के लिये मुक्ति दिला देते हैं।

पर यह क्या? काँटों से मुक्ति, और वह भी जीवन की कीमत पर? अरे! यह तो सरासर सरेआम, हत्या है, कत्ल है, खुल्लम खुल्ला मौत है, ये कैसी मुक्ति?

वाह ! क्या मजाक है? कैसी है मानसिकता? अगर डाल से तोड़ना ही था तो काँटों को तोड़ कर अपने पास में रख लिया होता या फिर फैंक दिया होता और फूलों को निर्भय हो कर डाल पर खिलने दिया होता।

पर नहीं, स्वार्थ जो है ना? मानव स्वभाव है, कुछ करने की, वह भी तो कुछ कीमत चाहता है। बिना स्वार्थ के आजकल, इस स्वार्थी संसार में, कौन मुँह खोलता है? कौन कुछ करता है, दूसरों के लिये? और करे भी, तो क्यों?

काँटों और फूलों में से, अगर आपको ही चुनाव करना पड़े, तो शायद आप भी तो फूलों को ही प्राथमिकता देंगे? काँटों को तो कौन अपने पास में रखना पसन्द करेगा? खैर जाने भी दो न। संसार है, सब चलता है।

और तुलसी के गमलों के सामने पहुँच कर तो देवम नत-मस्तक ही हो जाता। बचपन में उसने किसी किताब में पढ़ा था कि तुलसी के पौधे में कीटनाशक शक्ति और वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता होती है।

जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहाँ बीमारियाँ भी कम होती हैं। वैसे भी घर में तुलसी के पौधे का होना अत्यन्त शुभ माना जाता है और धार्मिक  दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व होता है।

उसे मालूम है कि मम्मी रोज़ सुबह पूजा करने के बाद एक लोटा जल का तुलसी को अर्ध्य चढ़ाना कभी नहीं भूलतीं और वह भी स्कूल जाने से पहले तुलसी के दो पत्ते तो खा कर ही स्कूल जाता। ऐसा उसे उसके पापा ने बताया था।

उसके मन में ईश्वर के प्रति अपार आस्था और श्रद्धा है। संस्कार तो आखिर बच्चों को उनके माता-पिता, आसपास के समाज और वातावरण से ही मिलते हैं। जैसी संगत, वैसी रंगत। अच्छी संगति ही अच्छे संस्कारों के निर्माण की आधार-शिला होती है।

रातरानी, मोगरा और लिली से हाय-हलो कर, जैसे ही वह छुईमुई की ओर आगे बढ़ता, वैसे ही वह मुर्झाने लगती।

तो वह कहता-“अरे भाई, तुम मुझसे क्यों डरते हो? मुझसे डरने की कोई जरूरत नहीं है। मैं तो तुम्हारा दोस्त ही हूँ तो फिर डरना कैसा? और फिर अपनों से क्या शर्माना? हमेशा खुश रहा करो। जीवन में सदैव हँसते रहो और खिलखिलाते रहो।

फिर कहता-“अच्छा, शायद तुमको बड़े जोर से भूख लगी है। किसी ने तुम्हें पानी तक के लिये भी नहीं पूछा। ठीक है ना।”

वह फिर बोला-“अच्छा तो चलो, अब मैं तुम्हारे लिये खाने-पीने का इन्तजाम करता हूँ। कल पापा तुम्हारे लिये बड़ी अच्छी सी खाद ले कर आये हैं, मैं अभी लाता हूँ। पेट भर कर खा लेना। फिर नहीं कहना कि भूख लगी है।

तुम भी कैसे हो? चुप चाप भूख-प्यास सब कुछ सहते रहते हो। कितने भोले भण्डारी हो? भूख लगी हो तो भी कुछ नहीं बोलते। अरे भाई, बोलोगे नहीं तो कैसे खबर पड़ेगी कि तुम्हें भूख लगी है।”

और फिर देखते ही देखते चालू हो जाता, देवम का बगीचे में सेवा-अभियान। हर गमले में वह थोड़ी-थोड़ी खाद डालता।

साथ ही साथ एक-एक गमले और पेड़-पोधों से पूछता भी, बोलो, और खाद चाहिये क्या? और अगर भूल से भी कोई पत्ता या टहनी हिल गई तो बस समझो, हाँ। खाद के वितरण में देवम जरा भी कंजूसी नहीं करता।

खूब पेट भर कर खाओ। अरे, अगर खाओगे पिओगे नहीं तो काम कैसे करोगे। पूरी सृष्टी और जीवन को जीवित रखने का बेहद जरूरी काम जो तुमको करना होता है। सारे ब्रह्माण्ड को ऑक्सीजन जो देनी है तुमको।

इस प्रकार पूरे बगीचे में उसने सभी गमले और पेड़-पौधों में खाद डालने का काम पूरा किया।

खाद डालने के बाद फिर चालू हुआ पानी पिलाने का कार्यक्रम। बगीचे में लगे नल में पाइप को लगा कर सभी पौधों और गमलों में पानी डाला फिर लॉन में भी पानी का छिड़काव किया। पानी को छाँटने का काम तो देवम का फेवरेट काम है। और इसमें उसे मजा भी आता।

काफी देर से काम करते-करते देवम आराम करने के लिये लॉन में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। फिर उसे याद आया कि कल तो रविवार है और माली अंकल आने वाले हैं। वे मशीन से घास की कटिंग करने वाले हैं।

देवम ने घास से कहा-“कल तो माली अंकल आने वाले हैं। आपके बाल बहुत बड़े हो गये हैं। आपके बालों की कटिंग होने वाली है। और फिर आपके बालों को नया लुक मिल जायेगा। आपका हेयर स्टाइल ही बदल जायेगा। अभी भारी-भारी सा लगता है फिर अच्छा हो जायेगा। हल्का-हल्का और मजेदार भी। इससे कोमलता भी बढ़ जायेगी। और फिर सब कुछ अच्छा-अच्छा।”

और सुबह छोटी-छोटी हरी घास पर ओस की बूँदों पर नंगे पाँव चलने में तो मजा ही आ जायेगा। सुबह में तो ऐसा लगेगा जैसे कि हरी घास पर किसी ने सफेद चादर ही बिछा दी हो।

सवेरे-सवेरे तो बगीचे की शोभा देखते ही बनती है। चहचहाती हुईं चिड़ियाँ, कोयल की कुहु-कुहु और मन को मोह लेने वाली सुगंधित मन मोहक फूलों की सुगंध। और तो और मंद-मंद बहती शीतल सुगंधित शुद्ध पवन के तो कहने ही क्या? और इन सबके अनुभव मात्र से ही उसका मन गार्डन-गार्डन हो जाता।

ओस की छोटी-छोटी बूँदों की कल्पना मात्र से ही देवम का मन सिहर उठता। सुबह पाँच बजे उठ कर नंगे पाँव हरी घास पर चलना देवम को बहुत ही अच्छा लगता। उसे सुबह का तो हमेशा इन्तज़ार ही रहता।

वह सोचता, कब सुबह हो और वह छोटी-छोटी हरी घास पर, ओस की बूँदों के ऊपर नंगे पाँव टहले। नंगे पाँव हरी घास की ओस की बूँदों पर टहलना आँखों के लिये लाभ दायी होता है। ऐसा उसे उसके दादा जी ने बताया था।

चाँदनी रात में दादा जी के सान्निध्य में अन्त्याक्षरी की प्रतियोगिता का होना, बगीचे की अविस्मरणीय घटना है। अन्त्याक्षरी, जिसमें केवल रामचरित मानस, सूर, कबीर, तुलसी, जायसी, रहीम, रसखान आदि के दोहे, श्लोक, मुक्तक और कविताएँ ही होतीं। बाकी का फालतू कुछ भी नहीं।

फिल्मी गानों के लिये तो प्रतिबन्धित क्षेत्र होता। देवम के लिये तो यह सबसे अधिक प्रिय खेल होता। और इसी खेल का ही तो परिणाम है कि आज देवम को ढेर सारे दोहे, मुक्तक, कविताएँ और रामचरित मानस की चौपाइयाँ रटी पड़ी हैं।

मम्मी-पापा का साथ में होना तो देवम में उत्साह और ऊर्जा भरने के लिये पर्याप्त होता। असली ऊर्जा-स्रोत तो वे ही हैं। प्रेरणा-पुंज हैं वे देवम के।

और फिर शाम को चिड़िया-बल्ला, घास पर बैठ कर कैरम, लूडो, साँप-सीढी आदि खेलना, दादा जी के साथ गपशप करना, कहानियाँ और ज्ञान-वर्धक बातें सुनना कितना अच्छा अनुभव। और फिर लोट-पोट का तो मजा ही अलग है।

और फिर लौकी की वेल के पास जा कर धीरे से कहता, “ सुनो, आज शाम को मम्मी आपको लेने के लिये आयेगी, सभी दोस्तों से मिल लेना। फिर बाद में यह नहीं कहना कि बताया नहीं। ठीक है ना। अच्छा, तो अब मैं चलता हूँ। शाम को घर पर मिलेंगे।”

बगीचे का काम पूरा करने के बाद देवम घर जा कर मम्मी को सब बातें बताता और मन ही मन खुश भी होता। मम्मी भी देवम की बातों को बड़ा ध्यान से सुनतीं और सदैव उसके मौलिक चिन्तन के लिये उसे प्रोत्साहित भी करती रहतीं।

मम्मी ने देवम की सभी बातें बड़े ध्यान से सुनी और फिर बोलीं-“अच्छा अब चल हाथ-मुँह धो ले और थोड़ा बहुत नाश्ता तू भी तो कर ले। सुबह से भूखा है कुछ खाया नहीं। सब की चिन्ता करता फिरता है, कुछ अपनी भी तो चिन्ता कर लिया कर।”

देवम ने हाथ-मुह धोकर मम्मी के हाथ का बना गरमा गरम नाश्ता किया और फिर अपना स्कूल का होम-वर्क करने  में व्यस्त हो गया।

और आज रविवार का दिन, देवम के लिये तो जैसे कुछ खास दिन ही होता है। सप्ताह भर के ढेर सारे काम जो हो जाते हैं, ऊपर से स्कूल का होमवर्क तो अलग।

इसके अलावा मम्मी-पापा के साथ भी रहने का समय भी तो उसे रविवार को ही तो मिल पाता है। बाकी दिनों में तो बस, आया राम, गया राम ही होता रहता। ये करो वो करो और बस इसी में पूरा सप्ताह कब खिसक जाता, पता ही नहीं चलता।

और आज तो माली अंकल भी आने वाले हैं। लगभग आठ बजे तक आ जायेंगे। कुछ नये पौधे भी ले कर आने वाले हैं और गार्डन की घास की कटिंग भी तो होनी है।

सुबह उठकर देवम नहा धोकर, नाश्ता कर ही पाया था कि माली अंकल की आवाज सुनाई दी।

“आओ अंकल, बस आपका ही इंतज़ार कर रहा था।”  देवम ने कहा।

“हाँ, मुन्ना भैया हम आय गये। चलो बताओ का का काम करना है?” माली ने कहा।

माली सदैव देवम को मुन्ना भैया कह कर ही पुकारता। जब माली अंकल काम करते तो देवम उनका हर तरह से ख्याल रखता और बिना चाय नाश्ता कराये वह कभी भी जाने नहीं देता।

क्या-क्या करना है, देवम के पापा ने माली को बुला कर समझा दिया। वैसे तो माली देवम की मम्मी के कॉलेज में माली का काम किया करता है सप्ताह में एक दो बार माली की जब जरूरत होती तब वह यहाँ आकर बगीचे की देखभाल भी कर जाता है।

और फिर आनन-फानन में बगीचे का काम शुरू हो गया। आदेश पापा का होता और सब काम देवम की देख-रेख में होता।

लगभग दो घण्टे तक गार्डन में काम चलता रहा। और देखते ही देखते गार्डन का हुलिया ही बदल गया। अब गार्डन अच्छा लगने लगा। जैसे पूरी काया ही पलट गई हो। माली अंकल ने नये-नये पौधे भी लगा दिये।

और काम पूरा होने के बाद देवम ने माली अंकल को चाय-नाश्ता कराया। देवम खुश था उसकी इच्छा के अनुसार उसका बगीचा तैयार हो गया था। माली अंकल के जाने के बाद देवम रविवार के अपने शेष कामों में व्यस्त हो गया।

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आनन्द विश्वास

 

 

 

 

 

 

आनन्द विश्वास

जन्म की तारीख- 01/07/1949 जन्म एवं शिक्षा- शिकोहाबाद (उत्तर प्रदेश) अध्यापन- अहमदाबाद (गुजरात) और अब- स्वतंत्र लेखन (नई दिल्ली) भाषाज्ञान- हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती। प्रकाशित कृतियाँ- 1. *देवम* (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2012) डायमंड बुक्स दिल्ली। 2. *मिटने वाली रात नहीं* (कविता संकलन) (वर्ष-2012) डायमंड बुक्स दिल्ली। 3. *पर-कटी पाखी* (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2014) डायमंड बुक्स दिल्ली। 4. *बहादुर बेटी* (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2015) उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ। PRATILIPI.COM पर सम्पूर्ण बाल-उपन्यास पठनीय। 5. *मेरे पापा सबसे अच्छे* (बाल-कविताएँ) (वर्ष-2016) उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ। PRATILIPI.COM पर सम्पूर्ण बाल-कविताएँ पठनीय। प्रबंधन- फेसबुक पर बाल साहित्य के बृहत् समूह *बाल-जगत* एवं *बाल-साहित्य* समूह का संचालन। ब्लागस्- 1. anandvishvas.blogspot.com 2. anandvishwas.blogspot.com संपर्क का पता : सी/85 ईस्ट एण्ड एपार्टमेन्ट्स, न्यू अशोक नगर मेट्रो स्टेशन के पास, मयूर विहार फेज़-1 नई दिल्ली-110096 मोबाइल नम्बर- 9898529244, 7042859040 ई-मेलः anandvishvas@gmail.com