लघुकथा

लघुकथा : निश्छल अनुराग

आठ वर्ष का प्यारा सा, भोला सा चन्दन भी उन बच्चों के बीच आचार्य जी से संगीत सीखना चाहता था ! पर वह तो बिन पिता का, एक गरीब माँ का बेटा था ! उसकी माँ न जाने कैसे तो छोटे मोटे काम करके घर का और चन्दन की पढाई का खर्च पूरा करती थी ! चन्दन को जन्म से ही संगीत से प्रेम था, जो उपहार स्वरूप ईश्वर ने उसे प्रदान किया था ! आस-पड़ोस में जब कभी वह संगीत सुनता तो उसका रोम-रोम पुलकित हो उठता ! वह चिड़ियों की चहचहाहट में, पेड़ों की सरसराहट में तो कभी जुगनुओं की झिलमिलाहट में भी संगीत के सुर लय ताल को ढूढ़ लेता था !

रोज की तरह चन्दन आज शाम को भी नुक्कड़ के पास वाले मकान के चबूतरे के कोने पर चुपचाप जा बैठा ! और अन्दर आचार्य जी से संगीत सीख रहे बच्चों के संग स्वर मिलाकर गुनगुनाने लगा ! अचानक वह खुद को भूलकर, संगीत में डूब गया और खुलकर गीत गाने लगा ! उसके मधुर कंठ को सुनकर आचार्य जी गदगद हो उठे और उन्हौने बाहर आकर चन्दन को तुरन्त अपने गले से लगा लिया ! दोनों की आँखों से निश्छल अनुराग की धारा बह निकली ! आचार्य जी ने चन्दन को अब अपना शिष्य मान लिया और उसे संगीत का प्रशिक्षण देने लगे ! उनका निश्छल अनुराग अमर हो गया !

प्रेरणा गुप्ता, कानपुर

प्रेरणा गुप्ता

१- नाम - प्रेरणा गुप्ता २- जन्म तिथि और स्थान - ५ फरवरी १९६२, राजस्थान ३ -शिक्षा - स्नातक संगीत ४ - कार्यक्षेत्र - संगीत ,समाज सेवा ,आध्यात्म और साहित्य ५ -प्रकाशित कृतियाँ - कुछ रचनाएँ पत्र - पत्रिकाओं एवं वेब पर प्रकाशित ६ - सम्मान व पुरस्कार - गायन मंच पर ७ - संप्रति - स्वतंत्र लेखन ८ - ईमेल - prernaomm@gmail.com