उपन्यास अंश

नई चेतना भाग –१२

अमर के सर से रक्त की धार बह निकली । उसकी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा लेकिन हिम्मत नहीं हारी । इधर सरजू पहले धनिया और अब अमर के बहते खून को देख घबरा गया । उसका सारा जोश ठंडा पड़ चूका था । अमर पर और हमले करने की उसकी हिम्मत नहीं हुयी ।

बाबु सारे हंगामे को देखते हुए धनिया की हालत के लिए खुद को जिम्मेदार मानकर फुट फुट कर रो रहा था । सरजू आनन फानन घर में घुसा और फिर थोडी ही देर में घर से बाहर निकल पगडण्डी की तरफ दौड़ पड़ा ।

थोड़ी ही देर पहले का उत्सव का माहौल अब अफरातफरी में बदल चूका था । कुछ लोग दूर खड़े दर्शक बने हुए थे । उनकी तरफ इशारा करते हुए बाबु बार बार उनसे धनिया की जान बचाने के लिए मदद की गुहार लगा रहा था लेकिन उनमें से न किसी को पसीजना था न पसीजा । लगभग पांच मिनट तक बाबु सबके पास जा जाकर मदद की गुहार लगाता रहा उनके आगे हाथ जोड़ता रहा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । उनकी मदद को कोई आगे नहीं आया ।

अमर अपने आपको सँभालते हुए धनिया को दोनों हाथों में उठाने की कोशिश करता है लेकिन उसे लेकर वह खड़ा नहीं हो पाया । सर से रक्त की धार अभी भी बह रही थी हाँ उसकी गति अवश्य कम हो गयी थी । वैसे ही धनिया के सर से भी बहने वाला रक्त अब जम कर थक्के का रूप ले चुका था । दोनों के कपडे बुरी तरह खून से लथपथ थे । धनिया का अभी तक होश में न आना चिंताजनक था । उसकी हालत को लेकर अमर मन ही मन चिंतित था और बड़े जतन से आंसुओं को आँखों से दूर रखे हुए था ।

अचानक भारी शोरगुल सुनकर अमर ने घूम कर आवाज की तरफ देखा । सामने ही पतली पगडंडी से लगभग तीस चालीस लोगों का समुह उन्हीं की तरफ बढ़ता आ रहा था । इतने लोगों के लिए पगडंडी अपर्याप्त होने की वजह से कुछ युवक खेतों से ही फसलों के बीच से होते हुए आ रहे थे ।

दो युवकों की गिरफ्त में सरजू को आगे आगे आते देख कर अमर सारा माजरा समझ गया । सरजू भागते हुए शायद गांववालों के हत्थे चढ़ गया होगा ‘ अमर ने अनुमान लगाया और अब उसे मदद मिलने की उम्मीद बढ़ गयी थी । सरजू को पकडे दो युवकों के पीछे ही बुजुर्ग चौधरी रामलाल ‘ भोला और कुछ अन्य ग्रामवासी आते दिख रहे थे । दोनों युवकों की गिरफ्त में सरजू आगे आगे बेबसी से चल रहा था । कभी कभार चलते चलते दोनों युवक सरजू को पीछे से लात घूंसे भी चला देते । सरजू की प्रतिकार करने की भी हिम्मत नहीं थी । चुपचाप सर झुकाए मार खाते और भीड़ के लोगों की गालियाँ सुनते सरजू आगे आगे चल रहा था । कदम सुस्त होते ही उसे पीछे से धकेला जाता । शीघ्र ही भीड़ सरजू के घर के सामने पहुँच गयी जहां अभी भी अमर बेसुध धनिया के जिस्म को अपनी गोद में लिए बैठा था ।

किसीने वहीँ समीप ही पड़ी एक टूटी सी खटिया लाकर बीछा दिया । चौधरी रामलाल और उनके साथ ही दो बुजुर्ग खटिये पर बैठ गए । भोला उनके समीप ही खड़ा था । अन्य सारे ग्रामवासी चौधरी के पीछे खड़े हो गए । चौधरी के सामने ही कुछ दुरी पर सरजू सर झुकाए हाथ जोड़े नीचे जमीं पर ही बैठ गया था । आश्चर्य की बात थी की इतनी भीड़ के बावजूद वहाँ बला की शांति छाई हुयी थी । अचानक चौधरी रामलाल की प्रभावशाली आवाज गूंजी ” भोला ! इ पंचमवा का लड़का है न ? फिर उ कहाँ है ? बुलाओ उसको ! ”

भोला ने अदब से आदेश स्वीकार करते हुए अपने बगल में खड़े युवक को इशारा किया । इशारा समझ के वह युवक वहां से हिलने ही वाला था कि न जाने कहाँ से पंचम तेजी से आते हुए चौधरीजी के कदमों में गीर पड़ा ।

” माफ़ कर दीजिये मालिक ! उससे गलती हो गयी । आपका ही बच्चा है मालिक ! नादान है ‘ शहर में रहकर इसका दिमाग ख़राब हो गया है । हम अभी इसको समझाते हैं । बस एक बार माफ़ कर दीजिये मालिक । ” पंचम रामलालजी के कदमों में गिरते हुये गिडगिड़ा उठा था ।

चौधरी रामलाल ने उससे अपना पैर छुडाते हुए उसे सरजू के साथ बैठने का हुक्म दिया । पंचम सहमते हुए सरजू के बगल में ही जाकर बैठ गया । बैठते ही पंचम ने सरजू से चौधरी से माफ़ी मांगने का इशारा किया जिसे सरजू ने अनसुना कर दिया ।

यह सब घटनाक्रम बड़ी तेजी से घटित हो गया था । रामलालजी का ध्यान अभी अमर और धनिया की तरफ नहीं गया था । अचानक भोला की निगाह नीचे खून से सने धनिया पर पड़ी और वह चीख उठा । ” काका ! वो देखो ! वह लड़की ! इसकी हालत तो गंभीर लग रही है । ”

रामलालजी ने भी तुरंत ही उठकर अमर की गोद में बेसुध पड़ी धनिया की तरफ देखा । उसकी कलाई पकड़ कर नब्ज देखी फिर उल्टी हथेली उसके नथुने के सामने रखकर सांस चालू होने का अंदाजा लगते ही उनके चेहरे पर चमक आ गयी ।
सीधा होते हुए रामलालजी ने भोला से मशविरा किया ” भोला ! लड़की जिन्दा है लेकिन इसकी हालत नाजुक है और बेहोश है । हमें जल्द से जल्द इसे अस्पताल पहुँचाना होगा । जल्दी से इसे इसी खटिया पर डालकर हमारी गाड़ी तक पहुँचाओ । वहाँ से हम इसे अपनी गाडी में लेकर शहर के अस्पताल जायेंगे । जल्दी करो ! ”

चौधरी जी के आदेश का तुरंत पालन हुआ । धनिया को चारपाई पर डालकर चार युवकों ने चारों सीरे से चारपाई को उठाकर उसे कंधे पर डालकर तेजी से गाँव में चौधरी के घर की तरफ चल पड़े ।

उनके जाते ही चौधरी ने कहर भरी नजर से पंचम और सरजू की ओर देखते हुए बोला ” देख पंचम ! भगवान से मना कि वो इस लड़की को सही सलामत रक्खें । अगर इसे कुछ भी हुआ तो तुम बाप बेटे समझ लेना तुम्हारी क्या गत होगी । ” कहते हुए एक झटके से मुड़े चौधरीजी और तेज कदमों से अपने घर की तरफ चल दिए ।
अमर को सहारा दिए दो युवक भी अमर को साथ लिए भीड़ केे पीछे पीछे चल दिए । हालांकि अमर अब ठीकठाक था । थोड़ी कमजोरी ही महसूस हो रही थी और पूरा बदन पके फोड़े के समान लग रहा था फिर भी उसे चलने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी । भीड़ के लोग कुछ आगे
बढ़ गए थे जबकि अमर धीरे धीरे चलता हुआ कुछ पीछे रह गया था ।

जब तक अमर चौधरी के घर पहुंचता धनिया को चौधरी के जीप में पिछली सिट पर डालकर चौधरी गाड़ी में बैठ चुके थे । ड्राईवर अपनी सिट पर बैठा चौधरीजी के आदेश का इंतजार कर रहा था । दोनों युवकों ने सहारा देकर अमर को भी जीप की पिछली सिट पर ही बैठा दिया । अमर ने जीप में बैठ कर धनिया का सर अपनी गोद में रख लिया और हौले हौले उसके बालों में उंगलियाँ घुमाने लगा ।
चौधरी का इशारा मिलते ही ड्राईवर ने एक झटके से गाड़ी कच्ची पगडण्डी नुमा सड़क पर बढा दी थी ।

लोगों की भीड़ पीछे रह गयी थी । आपस में खुसर पुसर करते थोड़ी ही देर में लोग अपने अपने घर को चले गए ।

इधर सरजू के घर पर पंचम और सरजू अपना सर पिटते हुए अपने दरवाजे पर ही आकर बैठ गए थे कि तभी पंचम को दूर नीम के पेड के पीछे छिपा कोई नजर आया । पंचम उठकर नीम की तरफ दौड़ पड़ा और वहाँ बाबु को छिपा देखकर हैरान रह गया ।
बाबु ने बताया भारी शोरगुल के बाद लोगों की भीड़ और सरजू को मार खाते देखकर वह डर गया था और भाग कर आकर एक घर के पिछवाड़े छिप गया था । पता नहीं गुस्से में चौधरीजी क्या सलूक करते ?
बाबु अपनी बेबसी पर रो रहा था । उसकी लाडली बेटी जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है और वह स्वयं खुद को बचाने के चक्कर में यहाँ छिपा बैठा है ।
चौधरीजी ने भी उसे ढूँढने की कोशिश नहीं की थी क्योंकि बाबु के होने का उन्हें इल्म भी नहीं था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।