उपन्यास अंश

नई चेतना भाग — १३

चौधरी रामलाल की जीप कच्ची पगडंडी से होती हुयी शहर को जानेवाली मुख्य सड़क पर पहुंचकर तूफानी गति से शहर की ओर सरपट भागी जा रही थी । अमर के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई पड़ रही थीं हालाँकि वह एक मजबूत इरादे और हौसले वाला युवक था । खुद इतना घायल होने के बावजूद उसे अपनी रत्ती भर भी फ़िक्र नहीं थी ।
थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद चौधरी साहब ने ही पहल की ” बेटा ! क्या नाम है तुम्हारा ? ”

” अमर ” अमर ने जवाब दिया ” राजापुर के नजदीक ही एक गाँव है ‘ बीरपुर ‘ वहीँ मेरा घर है । ”

” और यह लड़की ? ” रामलालजी ने धनिया के बारे में जानना चाहा ।

इसके जवाब में अमर ने रामलाल को पूरी कहानी सुना दी सिवाय इसके कि लाला धनीराम उसके पिताजी हैं ।

रामलाल पूरे मनोयोग से अमर की कहानी सुनते रहे । उनसे बात करते हुए भी अमर का पूरा ध्यान धनिया की ही तरफ था ।

जीप सरपट भागी जा रही थी । बिलास पुर के उसी चौराहे से जहां से अमर ने शिकारपुर के लिए बस पकड़ी थी जीप ने बाएं मुड़कर बिलासपुर शहर का रुख किया । लगभग दस मिनट में ही जीप शहर के बड़े सरकारी अस्पताल में खड़ी थी ।

रामलालजी का वहाँ काफी दबदबा दिखाई पड़ा । उनकी गाडी देखते ही अस्पताल का एक कर्मचारी दौड़कर गाडी के पास आया । गाडी से उतरते हुए रामलालजी ने उसे पीछे की तरफ इशारा किया और अन्दर अस्पताल में मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कक्ष की तरफ बढ़ गए ।

अन्दर झाँक कर वह अस्पताल कर्मी धनिया की हालत देखकर तुरंत ही अस्पताल में जनरल कक्ष की तरफ चला गया । कुछ ही मिनटों बाद कुछ अन्य अस्पतालकर्मियों के संग वही आदमी धनिया को स्ट्रेचर पर लादकर अस्पताल के इमरजेंसी विभाग की तरफ ले जा रहा था  । धनिया अभी भी बेसुध थी ।

अमर भागते हुए स्ट्रेचर के साथ साथ चल रहा था । सघन चिकित्सा विभाग में तुरंत ही डॉक्टर ने धनिया का प्राथमिक परिक्षण किया और आवश्यक टेस्ट के लिए लिख कर उसे अस्पताल में दाखिल कर लिया ।

डॉक्टर के निर्देशानुसार अस्पताल कर्मी धनिया को स्ट्रेचर पर डालकर पुनः विभिन्न परीक्षणों के लिए अस्पताल में ही स्थित विभिन्न कक्षों में ले गए । उनके साथ साथ रहने का प्रयास करनेवाले अमर को उन्होंने सख्ती से एक जगह बैठने के लिए कह दिया । अमर भारी मन से बाहर आकर चौधरीजी के साथ बैठ गया ।

चौधरीजी ने अमर से धनिया की हालत के बारे में पुछा । अमर ने अनभिज्ञता जताई । चौधरी ने अमर को अपने पीछे आने का निर्देश दिया और स्वयं डॉक्टर माथुर के केबिन में घुस गए । डॉक्टर माथुर यहाँ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी थे । चौधरी जी को देखते ही डॉक्टर माथुर ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया और बैठने का आग्रह किया । विनम्रता से मुस्कुराते हुए चौधरी रामलाल जी ने उनका अभिवादन स्वीकार किया और अमर के साथ सामने की कुर्सियों पर बैठ गए । चौधरी ने धनिया की हालत के बारे में पुछा । डॉक्टर ने अमर को धीरज रखने की सलाह  देते हुुए हिम्मत बंधाया ।  और रामलाल जी को बताया कि धनिया की नब्ज वगैरह तो सही चल रही है लेकिन सभी परीक्षणों के नतीजे आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है । तब तक वह कुछ नहीं कह पाएंगे । ‘

अमर के चेहरे गर्दन और अन्य जगहों पर लगे रक्त के बाबत डॉक्टर ने पुछा । उसके शरीर के अन्य हिस्सों पर भी घाव के निशान दिख रहे थे । चौधरी ने उसे मारपीट की सारी बात बताते हुए अमर की मरहम पट्टी कर दवाई देने का अनुरोध किया ।

डॉक्टर के निर्देश पर अमर की मरहम पट्टी कर दी गयी और उसे कुछ दवाई भी दी गयी । शरीर पर लगे घाव को देखते हुए डॉक्टर ने उसे भी अस्पताल में दाखिल करने की सलाह दी लेकिन अमर इसके लिए तैयार नहीं हुआ । उसने डॉक्टर को बताया धनिया की देखभाल के लिए और कोई नहीं था सो उसे ही धनिया की देखभाल करनी होगी ।

धनिया को गहन चिकित्सा कक्ष में दाखिल कर उसका इलाज शुरू कर दिया गया था । अमर की भी मरहम पट्टी कर दी गयी थी । चौधरीजी ने अमर को बता दिया था कि डॉक्टर माथुर उनके करीबी रिश्तेदार हैं और उन्हें सब बता कर धनिया का बेहतर इलाज करने का आग्रह किया है । उसे कोई भी जरूरत या कमी महसूस हो तो निस्संकोच माथुर जी से संपर्क करे ।

उनके रसूख की वजह से ही माथुर ने पुलिस को खबर नहीं की थी और इलाज शुरू कर दिया था । ऐसे मामलों में कोई भी डॉक्टर पुलिस को सूचित किये बिना इलाज शुरू नहीं करता यह बात अमर भी भली भाँति जानता था । वह अस्पताल में दाखिल होने के समय से ही चौधरीजी के रसूख को महसूस कर रहा था । चौधरी उसे फिर आने का आश्वासन देकर और सब समझाकर वापस अपने गाँव जा चुके थे
गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर बैठा अमर अपने पिछले चौबीस घंटे के बारे में सोचने लगा । कल इस समय वह अपनी फैक्ट्री में धनिया की फिकर में गमगीन बैठा हुआ था और आज यहाँ धनिया मिली भी तो किस  हाल में ! वह धनिया के बारे में सोच सोच कर परेशान हुए जा रहा था ।

अमर को अब माँ की भी चिंता हो आई थी । जोश में वह घर तो छोड़ आया था लेकिन उसे माँ से विशेष लगाव था । माँ भी तो उसके ऊपर जान छिड़कती थी । उसने बाबूजी को मनाने की भरपूर कोशिश भी की थी । अब कैसी होगी ? अमर के मन में ऐसेही विचारों के अंधड़ चलते रहे । इस तरह के अनेकों विचार उसके मन में उमड़ते घुमड़ते रहे लेकिन इसके बावजूद अमर एक पल के लिए भी धनिया की तरफ से लापरवाह नहीं हुआ था ।

उधर बीरपुर में लाला धनीराम की मनोदशा भी कुछ कम गमगीन नहीं थी । दोपहर को अमर के घर छोड़ कर जाने से पहले ही उन्होंने भोजन किया था । उसके जाने के बाद से ही उनकी भूख प्यास सब ख़तम हो गयी थी । ऊपर से तो वह अपनेआपको सहज दिखाने की हरसंभव कोशिश कर रहे थे लेकिन सभी जानते हैं कि चेहरा दिल के हाल की चुगली कर ही देता है ।

दिल में उठ रहे तूफान के गुबार चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे जाते हैं और उनकी यह हालत सुशीलादेवी से छिपी नहीं थी । वह खुद भी तो अमर के फिकर में रात भर सो नहीं पाई थी । खाना और पीना तो दूर की बात थी । कहाँ गया होगा ? कैसा होगा ? उसके पास पैसे थे कि नहीं यह भी तो नहीं पता था । बचपन से अब तक कोई भी तकलीफ न देखने वाला अमर अब क्या करेगा ? और फिर माँ की ममता उसे सही सलामत होने के ढेरों आशीर्वाद देते हुए उसके सही सलामत वापस लौट आने की उम्मीद करने लगती ।

उसे क्या हमारी याद नहीं आती होगी ? हम कोई उसके दुश्मन तो नहीं थे फिर ऐसे कैसे वह घर छोड़कर चला गया ?

उस दिन अमर के जाने के बाद कृष्णा बड़ी देर तक उसकी राह देखता रहा था लेकिन जब वह नहीं आया तब अपने समय पर मजदूरों की छुट्टी करके कृष्णा ने फैक्ट्री का दरवाजा बंद करके चाबी अमर के घर पर उनकी माताजी को दे दिया था ।

दुसरे दिन सुबह कृष्णा सीधे फैक्ट्री पर ही पहुंचा था लेकिन मुख्य दरवाजा बंद देखकर तुरंत लालाजी के घर पहुंचा । लालाजी ने उसे चाबी देते हुए फैक्ट्री की देखभाल करने व जैसे चलता था वैसेही चलाने की गुजारिश की ।

कृष्णा को लालाजी का व्यवहार बहुत बदला बदला सा लग रहा था लेकिन उसकी कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं थी । अमर की अचानक गैरमौजूदगी भी उसे खल रही थी और उसे अमर की चिंता हो रही थी । अमर उसे अपने बडे भाई जैसा मानता था । उसे पूरा यकीन था कि अमर उसे बताये बगैर और कारोबार के बारे में विचार विमर्श किये बिना कहीं बाहर नहीं जाएगा फिर अचानक बिना कोई खबर दिए ही कहाँ चल गया ?

सुबह चाबी लेते हुए कृष्णा का जी चाह रहा था कि वह बड़े मालिक से अमर के बारे में पूछे ‘ छोटे मालिक कहीं बीमार तो नहीं हैं दिख नहीं रहे ‘ लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुयी थी ।

और वहाँ से लगभग तीन सौ किलोमीटर दूर अमर विलासपुर के अस्पताल में गहन चिकित्सा कक्ष के सामने चिंतित सा बैठा हुआ था । भोजन का समय बितने जा रहा था लेकिन उसे भूख बिलकुल भी नहीं लगी थी ।

डॉक्टर की तरफ से कोई खबर नहीं दी गयी थी धनिया की सेहत के बारे में । जैसे जैसे समय बितता जा रहा था उसकी चिन्ता बढती जा रही थी । रात भर ट्रेन में भी जागते ही बिती थी लिहाजा अब उसकी पलकें भारी हो रही थीं । काफी प्रयास के बावजूद उसकी आँखें कभी कभी स्वतः ही बंद हो जातीं और फिर कब उसकी आँख लग गई वह समझ ही नहीं सका ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।