लघुकथा

असली मुस्कुराहट

सूरत और सीरत से सुंदर और खूबसूरत सुलेखा हर समय हंसती-मुस्कुराती रहती थी. वह एक स्कूल की कैंटीन चलाती थी. बच्चों से बहुत प्यार से बोलने और व्यवहार करने के कारण शीघ्र ही सबकी चहेती बन गई थी. एक छात्रा संगीता रोज़ कैंटीन में कुछ खरीदकर खाने और सुलेखा की मुस्कुराहट देखने ज़रूर आती थी. आज भी आई थी. आज सुलेखा की मुस्कुराहट के पीछे उसकी उदासी भी झलक रही थी. संगीता ने उससे पूछ ही तो लिया. सुलेखा 500-1000 के कई नोट दिखाती हुई बोली- ” कहने को तो मेरे पास इतने सारे 500-1000 के नोट हैं, पर प्रतिबंधित हो जाने के कारण आज मेरे लिए बेकार हैं. इनसे मैं अपने बेटे के लिए 10 रुपए का गुब्बारा तक नहीं खरीद पाऊंगी.” तभी संगीता ने अपनी जेब से एक पर्स निकाला. उसके पर्स में बहुत समय से एक पॉलीथिन में जतन से रखा हुआ दस रुपए का फटा-पुराना नोट पड़ा था. वही निकालकर उसने सुलेखा को देते हुए कहा- ”आंटी, प्लीज़ मना मत करिएगा. इस नोट से आपके बेटे के लिए गुब्बारा आ जाएगा.” सुलेखा ने सकुचाते हुए नोट ले लिया और शीघ्र ही वापिस करने की बात कहते हुए उसे धन्यवाद दिया. अब संगीता को उसके चेहरे पर असली मुस्कुराहट नज़र आई.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244