लघुकथा

चहुँमुखी

कोई नियम बन जाय कुछ नहीं बदल सकता है
जब तक मन नहीं बदलता काट मौजूद रहता है

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घर घर घूम कर हज्जाम न्योता दे रहा था कि आज साहूकार की बहु का जन्मदिन है …. सभी घरनियों का बुलावा है , बहु ! गांव के पुरुषों के सामने आ नहीं सकती है , इसलिए पुरुषों का आना जरूरी नहीं है । जो कोई आये भी तो वो ड्योढ़ी पर ही रुके ।
गांव के सभी लोग अचंभित भी हो रहे थे और दबी जुबान में कानाफूसी भी कर रहे थे कि जो जोंक आज तक हमारे खून पर जी रहा था वो हमारे घरनियों को जीमने बुला रहा है । किसी में बोलने की ना तो हिम्मत थी या ना कुछ पूछने की ।
शाम हुई सभी महिलायें साहूकार के घर उनके बहु के जन्मदिन में शामिल हुईं । देर रात तक आयोजन चलता रहा …. नाच गाना और खाना खाने के बाद महिलाएं लौटीं तो घर के पुरुष सो चुके थे ।
दूसरे दिन बैंक के सामने उन्हीं महिलाओं की लम्बी पंक्ति रुपया जमा कराने और रुपया बदलने की लगी हुई थी । सबके पास 500-1000 की थैली थी । किसी का 2 लाख 8 हजार का , किसी का २ लाख 10 हजार का , किसी का २ लाख 15 हजार का , किसी का 2 लाख 20 हजार का ….. गृहणियों को ढाई लाख तक की आयकर छूट मिली हुई है …. साहूकार के कुछ आदमी बैंक के आस पास उनके सुरक्षा के लिए खड़े थे ।

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ