राजनीति

हकिकत

आज रविवार है । 500 और 1000 के नोट बंद होने की घोषणा हुए आज पांचवां दिन है ।
हमारे शहर में सभी व्यावसायिक गतिविधियाँ लगभग ठप्प हो गयी हैं ।
सभी छोटे मोटे दुकानदार रेहड़ीवाले सब्जी वाले सर पर हाथ रखे ग्राहकों के इंतजार में मक्खियाँ उडा रहे हैं । ये वही दुकानदार हैं जिन्हें ग्राहकों से सीधे बात करने की फुर्सत नहीं होती थी ।

किराना सामान ‘ कपड़ा बेचनेवाले और नुकसान न होनेवाली वस्तुओं के दुकानदार तो खैर ठीक हैं उनका भले ही धंदा चौपट हो जाये ज्यादा कुछ नुकसान नहीं होगा । लेकिन कुछ दिनों के इंतजार के बाद सब्जी वालों और मिठाईवालों को अपनी कुछ सब्जियां और मिठाइयाँ फेंकनी पड़ रही हैं ।

दूसरी तरफ आश्चर्यजनक रूप से सडकों से नदारद जनता बैंकों की कतार में सुबह चार पांच बजे से ही लगी हुयी है । हमारे पड़ोस की एक लड़की सुबह साढ़े छह बजे से कतार में खड़ी है और उसने अभी अभी अपनी मम्मी को फोन किया है ‘ मम्मी दोपहर का मेरा डब्बा कतार में ही पहुंचवा देना । ‘
यह वस्तुस्थिति है ।
आज उस लड़की की मज़बूरी है कि वह यह परेशानी झेले । वजह साफ़ है । यह निम्न मध्यम वर्गीय लड़की नजदीक ही छोटी फैक्ट्री में काम करती है । पांच तारीख कोे पांच सौ के नोटों की शकल में मीले तनख्वाह को वह बैंक में जमा नहीं करा सकी थी और स्थिति सामान्य होने के इंतजार में उसने उपलब्ध पैसों से कंजूसी से घर का खर्च चलाया । अब आज उसके पास खर्च के लिए पैसे नहीं हैं सिवाय उन पांच सौ के नोटों के ।

लगभग ऐसी ही कहानी हमारे आस पास रहनेवाले सभी लोगों की है । हमारे आसपास ही नहीं यह तस्वीर पुरे देश की है ।

नालासोपारा में पाटनकर क्षेत्र में छोटे बड़े दसियों बैंक हैं । आज आलम ये है कि किसी बैंक की कतार 100 मीटर से कम दुरी की नहीं है और यह लिखे जाने तक अधिकांश बैंकों में काम काज शुरू नहीं हुआ था ।
कुछ बैंकों की कतारें 200 मीटर की सीमा भी पार कर रही हैं । यह देखकर अंदाजा लगता है कि सभी बैंक फिजूल ही अपने विज्ञापनों पर इतना खर्च करते हैं । आज उन्हें अपने ग्राहकों के संख्या का अनुमान लग रहा होगा ।

इसी बीच इस नोटबंदी प्रकरण में घटी कई दुर्घटनाएं काफी दुखद हैं ।

सबसे दुखद घटना है उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले की । इस जीले की कप्तानगंज में सेंट्रल बैंक की शाखा में नोट बदलवाने के लिए गयी वृद्ध महिला को किसीने बता दिया कि उसके नोट अब रद्दी हो चुके हैं । हालाँकि बैंक बंद थे लेकिन इस गलत सूचना को वह गरीब महिला बर्दाश्त नहीं कर सकी । उसे लगा उसकी जीवन भर की जमा पूंजी जो मात्र हजार हजार के दो नोट थे लुट चुकी है वहीँ सदमे से उसकी साँसों ने उसका साथ छोड़ दिया ।

निस्संदेह इसका जिम्मेदार वह शख्स है जिसने उसे गलत जानकारी दी और वह महिला स्वयं भी जिसे पूरी जानकारी नहीं थी ।
लेकिन क्या आज भी हम यह उम्मीद करते हैं कि अधिकांश ग्रामीणों को सभी बातों की जानकारी होनी चाहिए ? हकीकत यही है कि आज भी आधे से अधिक लोग इन सभी सूचनाओं से नावाकिफ हैं ।
इन्ही सबके बीच राजनीती भी चरम पर है ।

परसों राहुल गाँधी तो कल ममता जी बैंकों की कतार में खड़े होकर फोटो खिंचवाने का अपना कोटा पूरा कर चुके हैं । आखिर मीले हुए अवसर को नहीं भुनाया गया तो फिर काहे के राजनीतिग्य ।

केजरीवालजी किसीसे कम थोड़े ही हैं । उन्हें जब सपने भी मोदीजी के आते हों तो फिर भला मोदी सरकार की इतनी बड़ी चुक को वो कैसे बर्दाश्त कर लेते ? उन्हें तो सवाल उठाना ही था ।

लेकिन यहाँ गौर करनेवाली बात है कि इस बार उनके द्वारा उठाये गए मुद्दे हवाहवाई नहीं हैं । नए नोटों की मुंहदेखाई 2 नवम्बर को ही हो गयी थी । लगभग सभी भद्रजनों के व्हाट्सअप पर उसका प्रतिबिम्ब अंकित हो गया था । इतनी गोपनीयता बरतनेवाली सरकार के दावे का पोल यहीं खुल जाता है ।

थोड़ी मोहलत और पूरी तैयारी के बीना योजना को कार्यान्वित करने का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है । अगर कुछ घंटों की मोहलत से सरकार को आशंका थी कि काला धनवालों को मौका मील जायेगा तो 50 दिनों की मोहलत तो उनके लिए भी है । अब सरकार क्या करेगी ?
पूर्व में क्या यह सम्भव था कि करोड़ों अरबों का काला धन बैंकों में जमा कराया जा सकता था ? फिर इतनी गोपनीयता का क्या फायदा जिसमें लोग सडकों पर उतरने को मजबूर हो जाएँ । अराजकता फ़ैल जाये ।
अभी अभी मीले समाचार ने भी सरकार की पूरी कार्यवाही पर सवालिया निशान लगा दिया है । एक तमिल अखबार के मुताबिक़ एक शराब के ठेके पर किसी ग्राहक ने एक दो हजार का नकली नोट दिया जिसकी जानकारी उसे बैंक में जमा करते हुए हुयी ।
घोर आश्चर्य है अगर यह खबर सत्य है क्यूंकि अभी तो आम लोगों में बहुतों को असली दो हजार के नोट के दर्शन भी नहीं हुए और अखबार में नकली दो हजार के नोट की तस्वीर आ गयी । चिंताजनक है ।

कुल मिलाकर हकीकत में आम लोग उम्मीद से बहुत ज्यादा परेशान हैं । आधी अधूरी तैयारी की वजह से मोदीजी के इतने साहसिक और बेहतरीन निर्णय से भी अब लोग शुरुआती सहमति के बाद अब आलोचना करने को बाध्य हो रहे हैं ।

सरकार को आम लोगों की दिक्कतों के बारे में पूरी तरह सोच समझकर पूरी तैयारी के साथ ही इस योजना को लागु करना चाहिए था ।

हो सकता है कुछ काले धनवाले उसका फायदा उठा भी लेते लेकिन जनता को इतनी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।