संस्मरण

मेरी कहानी 190

हंपी को देखना मेरे लिए तो बहुत ही अच्छा हुआ है क्योंकि इस से मुझे एक संतुष्टि सी ही गई थी कि हमारी गोवा की हॉलिडे बहुत ही कामयाब रही थी। जसवंत तो कभी कभी आज भी वोह बातें याद करता है। कुलवंत, बेछक इतनी पढ़ी लिखी नहीं है, फिर भी उस को पुरातन चीज़ों से बहुत लगाव् है, इसी लिए वोह गर्मियों के दिनों में अपनी सखी रशपाल के साथ अपने गरुप्प की सखिओं को इतिहासक जगाएं देखने ले जाती है। शेरे पंजाब महांराज सिंह के बेटे दलीप सिंह को अँगरेज़ इंग्लैंड ले आये थे और जिस जगह समिट्री में उस की कब्र है, उस के साथ ही दलीप सिंह का स्टैचू है। कुलवंत वहां जा कर सखिओं के संग फोटो भी खिंचवा आई है लेकिन मैं अभी तक देख नहीं सका हूँ। कुलवंत ने भी हंपी बहुत पसंद किया था । दरअसल हंपी को देखने के लिए कमज़कम दो दिन चाहिए थे। बहुत कुछ देखना रह गया था। इस से अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि विजय नगर कितना बड़ा और सुन्दर शहर हुआ करता था। जो किताब मैं हंपी से लाया था, आधी तो मैंने होटल में ही पढ़ ली थी, शेष जब हम गोवा वापस आये तो पढ़ ली थी। यही कारण है कि हंपी देखने के बाद ही किताब पढ़ने से बहुत बातें अभी तक याद हैं।
रात का खाना खा कर हम सो गए। होटल का बिल रात को ही दे दिया था। सुबह बहुत जल्दी उठे। होटल में ब्रेकफास्ट तो नौ दस बजे के करीब मिलता था, इस लिए रास्ते में ही खाने का सोच कर होटल से चल पड़े। कुछ कुछ धुंद सी पड़ी हुई थी और वातावरण सुहावना और ठंडा सा महसूस हो रहा था। होटल से निकले ही थे कि चाय पानी की जगह दिखाई दी। खाने को क्या मिलता है, देखने के लिए हम उत्तर पड़े। पता चला कि चाय काफी और बिस्किट टोस्ट मिल जाते थे। मेज और बैंच बाहर ही पड़े थे, सब बैठ गए, मैं और जसवंत चाय काफी के कप्प ले आये और दो दो टोस्ट के लिए भी आर्डर कर दिया। ज़्यादा देर नहीं लगी, पंदरां बीस मिंट में लाइट ब्रेकफास्ट कर के हम चल पड़े। जब तक सड़क पे ट्रैफिक बढ़ती हम ने आधा सफर तय कर लिया था। एक दो का वक्त होगा हम उसी शहर में आ गए, यहां आते वक्त हम ने भोजन किया था। गाड़ी पार्क करके हम उसी होटल में आ गए, यहां तीन दिन पहले भोजन किया था। आज फिर हम ने पूरियों का आर्डर दे दिया। गर्म गर्म पूरियों के साथ पेट पूजा करके हम फिर चल पड़े। ड्राइवर ने पैट्रोल का टैंक भरवा लिया था, और अगला पड़ाव गोवा ही होगा, ऐसा हम ने ड्राइवर को बोल दिया। सड़क पर ट्रैफिक इतनी ज़्यादा नहीं थी, इस लिये हमें कहीं भी गाड़ी खड़ी करने की जरुरत नहीं पड़ी। कुछ ही घंटों में गोवा की पहाड़ियों में आ गए। अब यहां कभी कभी गाड़ी स्लो हो जाती क्योंकि शार्प बैंड बहुत थे। इन पहाड़ियों में एक जगह हम गाड़ी खड़ी करके बाहर आ गए। बहुत ही खूबसूरत वादी थी और हम फोटोग्राफी करने लगे। कोई पंदरां मिंट हम ठहरे और फिर चल पड़े। यहां तक मुझे याद है, कोई चार बजे के करीब हम अपने होटल में आ गए थे । तरसेम के कमरे में सब बैठे थे और कुलवंत चाय बनाने लगी। ड्राइवर को हम ने बारह हज़ार रूपए देने थे लेकिन हम ने दो सौ रूपए और दे दिए, जिस से वोह भी खुश हो गया। चाय पी कर ड्राइवर तो चला गया और हम अपने अपने कमरों में आराम करने के लिए चल पड़े। बैड पे लेट कर मैं किताब ले कर हंपी का इतिहास पड़ने लगा।
हंपी कर्नाटक राज्य में है। इस्लाम का प्रभाव तो आठवीं सदी में सिंध के राजा दाहिर के हार जाने के बाद हो ही गया था और मुसलिम भारत में अछि तरह स्थापित हो गए थे। कर्नाटिक में छोटे छोटे बहुत से मुस्लिम राज्य स्थापित हो चुक्के थे। हिन्दू राजों और मुस्लिम राजों की लड़ाइयां अक्सर होती रहती थी। इसी बीच हक्का और बक्का राये दो हिन्दू भाइयों ने हंपी और इस के इर्द गिर्द अपना राज्य स्थापित कर लिया था राज्य बढ़ता बढ़ता इतना ताकतवर हो गया था कि दो सौ साल बाद राजा राम राय के ज़माने में दुनिआं का सब से अमीर राज्य बन गया था। इस किताब के हिसाब से राम राय की फ़ौज में पांच लाख सिपाही थे। पुर्तगीज़ पेज ने, जो उस वक्त घोड़ों का वियोपारी था, अपने सीनियर को एक खत लिखा था कि यह विजयनगर एक तरफ से तुंगभद्रा दरिया के साथ लगता है और तीन तरफ ऊंची ऊंची पहाड़ीयां हैं। उस ने लिखा कि उस ने पहाड़ी के ऊपर चढ़ कर देखा और यहां तक उस की नज़र गई, घर, मंदिर, सुन्दर बाग़ और महल ही दिखाई देते थे। इस शहर का कोई अंत दिखाई नहीं देता था। फिर उस ने यह भी लिखा कि विजय नगर में सारी दुनिआं से वियोपारी आते थे। वियोपारीओं के लिए ठहरने का पूरा बंदोबस्त किया हुआ था, सड़कों पर छाँव के लिए घने बृक्ष थे और लोगों के ठहरने के लिए सराए और पानी का इंतज़ाम किया गया था। पेज ने तो जो सड़क हॉस्पिट से हंपी को जाती है, उस के बारे में भी लिखा है कि इस सड़क के दोनों तरफ घने बृक्ष थे और लोगों के लिए आराम घर बने हुए थे। विजय नगर के मंदिर इतने बड़ीआ थे कि कारीगरी देख कर ही हैरानी होती थी। सोने चांदी से दुकाने भरी हुई थीं। यह बात 1540 के करीब थी और उस वक्त पुर्तगीज़ गोवा में अछि तरफ स्थापित हो चुक्के थे। पुर्तगीज़ वियोपारी विजयनगर के साथ तजारत करते रहते थे और जो हम ने वाटर सिस्टम देखा था, हमारे गाइड का कहना था कि यह पुर्तगीज़ इंजीनियरों ने बनाया था। बिदेशियों ने हंपी के बारे में बहुत कुछ लिखा है और यह भी लिखा है कि विजयनगर यानी हंपी रोम से भी बहुत ज़्यादा सुन्दर और बड़ा था।
विजय नगर, राम राय के समय में बहुत उनत हुआ था। इर्द गिर्द बीजा पुर, गोलकंडा, अहमद नगर, बिदर और बरार, सब मुस्लिम राज्य थे लेकिन हिन्दू राज्य इतना ताकतवर था कि सभी राम राय से खौफ खाते थे। हिन्दू राज्य में सभी धर्मों को समानता मिलती थी। राम राय की फ़ौज में जैनी और मुसलमान भी थे और ऊंचे ऊंचे पदों पर थे लेकिन कुछ मुस्लिम सिपाहसलारों ने बहुत धोखा दिया। यह लोग बीजा पुर और गोलकंडा के सुल्तानों से मिले हुए थे और सारे भेद उन को बताते रहते थे। क्योंकि सबी मुस्लिम सुलतान, राम राय से खौफ खाते थे, इस लिए बीजा पुर, गोलकंडा, अहमद नगर, बिदर और बरार के सुल्तानों ने अलाएंस बना लिया और विजय नगर पर हमला करने की तैयारी कर ली। पाँचों सुल्तानों की फ़ौज ने विजयनगर पर हमला कर दिया। राम राय से टक्कर लेना इतना आसान नहीं था लेकिन “घर का भेदी लंका ढाये “, राम राय के मुसलमान जैनरल सुल्तानों से मिले हुए थे। घमसान की लड़ाई हुई लेकिन सुल्तानों की फ़ौज शहर के अंदर आ गई। बहुत से सिपाही महलों के अंदर आ गए और 70 साल के बूढ़े राम राय का उन्होंने सर काट दिया। सारी हिन्दू फ़ौज भाग गई, जो उस समय होता था कि राजे के हारने के बाद फ़ौज भाग जाती थी।
राजे के मरने के बाद विजय नगर को ग्रहण लग गया। अब सारी मुसलमान फ़ौज शहर में आ गई थी और जनता का कत्लेआम शुरू हो गया। इतना कत्लेआम हुआ कि इस्लामी फ़ौज 50,000 हिंदुओं को मार कर जश्न मनाती थी। जो लड़कियों का हाल हुआ, उस को दर्शाना ही मुश्किल है। शहर में कोई नहीं बच पाया, जो भाग गए वोह बच गए। इस के बाद लूट मार शुरू हो गई। मंदिरों की इतनी तोड़ फोड़ हुई कि वीरूपक्ष मंदिर के सिवा कुछ नहीं बचा। यह लूट मार और तोड़ फोड़ दो महीने तक चलती रही। पेज ने लिखा है कि शहर में कोई इंसान नहीं बचा था, सिर्फ कुत्ते ही जगह जगह घूम रहे थे और लाशों को खा रहे थे। इस हमले के बाद विजय नगर का इतिहास ख़तम हो गया। इतनी तोड़ फोड़ हुई कि सब कुछ पत्थरों के नीचे दब गया। दो सौ साल के बाद, भला हो अंग्रेजों का कि कॉलिन मेकैंज़ी ने फिर से इस को दुनिआं के नक़्शे पर ला खड़ा किया। अब यह यूनैस्को की वर्ल्ड हैरिटेज की सूची में है। दुनिआं भर से लोग इसे देखने आ रहे हैं। हंपी और हॉस्पिट में बड़े बड़े होटल बन गए हैं। भारत सरकार का आर्किओलॉजी डिपार्टमेंट भी अब इस की खुदाई में जुटा है। इस इलाके में मैंगनीज़ और कच्चे लोहे के भंडार हैं और इस की खाणें हैं। कुछ इतिहासकार आवाज़ उठा रहे हैं कि इन खाणों से हंपी के खंडरात को नुक्सान पहुँच सकता है। इतिहास का शौक रखने वालों को मैं हंपी देखने की सफारश करूँगा।
सारी किताब मैंने पढ़ ली थी। यह किताब बहुत साल मेरे पास रही। कोई दोस्त मुझ से मांग कर ले गया लेकिन अभी तक किताब मुझे वापस नहीं की। खैर हंपी तो मेरे दिमाग में प्रिंट हो गया है। शाम को हम बाहर चल पड़े। होटल से बाहर ही कुछ औरतें हरा छोलिया बेच रही थीं। क्योंकि अब हमारे पास एक ही दिन बचा था, इस लिए दो किलो छोलिया ले के दौड़ के अपने कमरे में रख आये और खाने के लिए चल पड़े। एक चाइनीज़ होटल में बैठ गए और कल की शॉपिंग के बारे में बातें करने लगे। जसवंत बोला ” मामा ! गोवा में विस्की ब्रांडी इंग्लैंड से आधी कीमत पर मिलती है और गोवा की काजुओं से बनी फेनी शराब भी सस्ती है, क्यों ना यहां खरीद लें, क्योंकि क्रिसमस को भी कुछ दिन बचे हैं “, मैंने हाँ कर दी कि जितनी ले जाने की इजाजत थी, उतनी ले लेंगे। खाना खा कर हम स्विमिंग पूल के नज़दीक बैठ गए। देर रात तक बातें करते रहे और फिर अपने अपने कमरों में जा कर सो गए। दूसरे दिन सुबह देर से उठे और तैयार हो कर नीचे आ गए। ब्रेकफास्ट लिया और शॉपिंग के लिए चल पड़े। जिस दिन से गोवा आये थे, किसी वाइन की दूकान में गए नहीं थे। आज यह ही काम करना था। क्रिसमस के वक्त जो ड्रिंक्स हम इंग्लैंड के स्टोरों से लेते हैं, यहां ही लेने का विचार कर लिया। यह देख कर हम हैरान हो गए कि जो विस्की ब्रांडी और लिक्कर की बोतलें हम इंग्लैंड के स्टोरों से खरीदते थे, यहां आधी कीमत पर मिल रही थी। ज़्यादा हम खरीद नहीं सकते थे क्योंकि इंग्लैंड की एअरपोर्ट पर कस्टम ड्यूटी लगती थी। फिर भी हम ने काफी बोतलें खरीद लीं और दो दो फेनी की बोतलें भी ले लीं। काफी भार हो गया, इस लिए मैं और जसवंत दौड़ कर पहले इस को होटल में रख आए।
अब और शौपिंग शुरू हो गई। कुछ कपडे जिन में एक समर निक्कर अभी भी मेरे पास है जो गर्मिओं में पहनता हूँ। सारा दिन ऐसे ही बीत गिया। सुबह को हम ने कैंडोलिम एअरपोर्ट पर जाना था और आज शाम को स्विमिंग पूल के पास ही बैठ गए। कैंटीन की एक लड़की जो हमेशा हमें सर्व करती थी, कुलवंत को उस के साथ सनेह हो गिया था। वोह विचारी गरीब थी और उस की तम्खुआह भी इतनी नहीं थी और वोह इस होटल के एक कोने में ही एक छोटे से कमरे में अपनी माँ के साथ रहती थी। इस लड़की को हम अक्सर बालकोनी से देखते रहते थे। कुलवंत ने उस को पुछा कि अगर वोह चाहे तो कुलवंत उस को अपने कुछ कपडे दे सकती थी क्योंकि कुलवंत और उस लड़की का शरीर एक जैसा ही था। वोह तो खुश हो गई और कुलवंत के साथ हमारे कमरे में दोनों चली गईं और कुलवंत ने उस को तीन शलवार सूट दे दिए। सूट एक दो दफा ही पहने हुए थे और नए जैसे थे। कुलवंत ने बाद में बताया कि वोह लड़की तो उस के गले लग गई थी। कुछ देर बाद अपने कमरों में आ कर सामान पैक अप्प किया और सो गए। सुबह को हॉलिडे वालों की बस होटल के बाहर आ गई थी और सभी लोग अपने अपने पासपोर्ट और टिकट बगैरा सेफ में से ले आये थे। अब अपना सामान ले कर बाहर सड़क पर आ गए। दो कुली सूटकेस बस के ऊपर रखने लगे। जब सभी बैठ गए तो कैंडोलिम एअरपोर्ट की ओर चल पड़े और दो तीन घंटे बाद ऐरोप्लेन में बैठ कर हम अपनी मुंह बोली मात्र भूमि की ओर बादलों के ऊपर उड़ रहे थे। चलता. . . . . . .