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अच्छा इंसान

एक दिन मुझे एक स्कूल में जाने का अवसर मिला। नवीं-दसवीं कक्षा के कुछ विद्यार्थी ब्रेक में बैठे हुए थे। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। मैंने बच्चों को बातचीत में शामिल करने के लिए पहले उनसे उनका नाम, किस कक्षा में पढ़ते हो इत्यादि पूछकर उनकी हिचकिचाहट दूर की। धीरे-धीरे मैंने अपनत्व बढ़ाते हुए पूछा कि, आप क्या बनना चाहते हैं? किसी ने कहा, कि वो डॉक्टर बनना चाहता है, किसी ने कहा इंजीनियर, किसी ने बिजनेसमैन, किसी ने सेना में जाने की बात कही।

किसी ने आईएएस-आईपीएस बनने की अपनी इच्छा जताई। मैंने कहा- ”बच्चो बहुत अच्छी बात है, कि आप कुछ-न-कुछ बनना चाहते हैं। आप जानते हैं, कि यह बनने के लिए आपको बहुत मेहनत करनी होगी। पैसा भी काफी खर्च होगा। मैं अब आपको बताता हूं, कि आप यह तो बनें, परंतु इसके साथ आप वह भी बन सकते हैं, जिसमें आपका कोई पैसा भी खर्च नहीं होगा और आप एक योग्य सफल व्यक्ति भी बन सकेंगे।

बिना खर्च के सफलता की बात कहकर बच्चों के मन को टटोलने के लिए मैंने पूछा- ”कितने विद्यार्थी यह बात सुनने के लिए उत्सुक हैं?” लगभग सभी ने हाथ उठा दिया। मैंने कहना शुरु किया- ”बच्चो, इंजीनियर, डॉक्टर, वकील आदि तो व्यवसाय है। किसी की असली पहचान तो उसके अपने गुण हैं। हम जब किसी के लिए कहते हैं, कि वह आदमी ईमानदार है, तो ईमानदारी उस व्यक्ति की असली पहचान है। जब एक आईपीएस अपना काम निडरता से करता है, तो हम कहते हैं, कि यह बहुत ही निडर अफसर है, तो निडरता उसकी पहचान होती है। जब कोई इंसान नम्र व्यवहार करता है, गरीबों की मदद करता है, जरूरत मंदों की सेवा करता है, तो हम कहते हैं, यह एक नेकदिल इंसान है। आदमी का चरित्र उसकी पहचान होता है।”

बच्चों की आंखों में एक अनोखी चमक आ चुकी थी। मैंने बच्चों से पूछा- ”बच्चों, अब बताओ कि क्या आप एक अच्छा इंसान बनना चाहते हो?” बच्चों में एक उत्साह सा भर गया था। ”जो बच्चे तैयार हों, उन्हें मैं कुछ बातें बताऊंगा। जीवन में यदि वे इन छोटी-छोटी बातों पर अमल करेंगें, तो उनका जीवन तराशे हुए हीरे जैसा हो जाएगा।” एक-दो को छोड़कर अधिकांश विद्यार्थियों ने मेरी बात बहुत ध्यान से सुनी।
मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा- ”आप स्कूल आने के लिए घर से चलते हैं, रास्ते में कोई आवारा कुत्ता सोया है या बैठा हुआ है तो क्या आप उसे पत्थर से मारते हैं या लात मारते हैं? सब बच्चे खामोश थे। मैंने कहा कि यदि आप आज तक यह करते थे, तो आज से यह व्यवहार बदल दीजिएगा। आप इंजीनियर-डॉक्टर-वकील जरूर बनना, पर जब यह बन जाओ तो मन में ठान लेना, कि यदि कोई गरीब मेरे दरवाजे पर आकर कहेगा, कि मेरे पास पैसे नहीं हैं, कृपया मेरी मदद कर दें, उस समय चंद पैसों के लिए इंकार मत कर दीजिएगा। चंद सिक्कों के लिए किसी से बेईमानी मत करना, किसी का दिल मत दुखाना। तुम्हारे पास दुनिया की वह दौलत होगी, जो बड़े-से बड़े-रईसों के पास नहीं होगी।” मेरी बात सुनकर कुछ विद्यार्थियों की तो आंखों से आंसू बहने लगे। मैंने अपनी बात खत्म करते हुए बच्चों से पूछा-” बच्चो, आप क्या बनना चाहते हो? सबने एक स्वर से कहा- ”अच्छा इंसान”।
रविंदर सूदन

अभी आपने रविंदर भाई की एक रचना पढ़ी. रविंदर सूदन भाई का यह प्रथम सृजन है. रविंदर भाई से हमारी मुलाकात हमारे ब्लॉग पर ही हुई है. रविंदर भाई के कामेंट्स से हमें लगा, कि ये कुछ क्या, बहुत कुछ लिख सकते हैं. इनके कामेंट्स बोलते हैं-

1.ये जिज्ञासु प्रवृत्ति के हैं.
2. इन में ज्ञान को सही जगह पर उद्धरित करने का हुनर है.
3.ये बहुत अच्छा लिख सकते हैं.
4.ये ज्ञान को बराबर वर्द्धित करने और बांटने में विश्वास रखते हैं.
5.इनके विचार सुलझे हुए और परिपक्व हैं.
6.इनके पास नए आइडियाज़ हैं

इस बारे में हमने रविंदर भाई को बस एक मेल लिखी, जवाब आया-
”लीजिये मैंने भी ठान लिया की थोड़ा बहुत लिखूं. शीघ्र ही आपको कुछ लिख कर भेजूंगा.”

थोड़ी देर बाद ही इनकी रचना भी आ गई, जिसका भावपक्ष तो बहुत सबल है ही, विषय के अनुरूप इन्होंने अपनी भाषा को सरल रखा है. आशा है, आप इनके प्रथम प्रयत्न का आनंद लेकर इनका मार्गदर्शन करेंगे और प्रोत्साहित करेंगे. रविंदर भाई हमारी ओर से आपको कोटिशः शुभकामनाएं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244