सामाजिक

मैं वेश्या हूँ

हाँ ! तुमने ठीक कहा ! मैं वैश्या हूँ । लेकिन क्या कभी तुमने यह भी सोचा है कि हम लड़कियाँ वेश्या क्यों बनती हैं ? नहीं न ! और तुम मर्द जात ये सोचोगे भी क्यों ?
तुम लोगों को तो तब तक किसी के कटे का दुःख महसूस नहीं होता जब तक कि तुम्हारी अपनी उंगली न कट जाये ।
जब तुम्हारे घरों की बहन बेटियों को कोई हमारी ही तरह से अगवा करके उसे धंधे पर बैठा देगा और जब कोठों पर उसकी बोटी बोटी नोची जाएगी तब तुम लोग उससे भी घृणा नहीं कर पाओगे उलटे हमसे भी सहानुभूति जताओगे ।
हम लोगों को भी शुरू में अपने ऊपर ऐसे ही घिन्न आती थी लेकिन अब नहीं ! जानना चाहते हो क्यों ?
क्योंकि अब हमें अपनी अहमियत पता चल गयी है । अब हम अपने आपको पहचान गयी हैं ।
यही सोच रहे हो न कि समाज से बेदखल हम लोगों की क्या अहमियत हो सकती है ? तो अब ज्यादा मत सोचो । मैं ही बताये देती हूँ ।
शक्ल सूरत से तो तुम सब अच्छे भले घर से नजर आ रहे हो । जरुर तुम्हारा घर भी अच्छा होगा । घर की साफ़ सफाई का भी तुम लोग भरपुर ध्यान रखते होंगे । घर की स्वच्छता के लिए बाथरूम और शौचालय जरुर बनवाया होगा । इनसे सम्बंधित नालियाँ भी जरुर बनी होंगी ।
अब जरा सिर्फ सोच कर देखो कि यदि घर में तुमने ये बाथरूम और शौचालय ना बनवाया होता तो तुम्हारा घर कैसा होता ?  चलो बनवा भी लिया और अगर उसको किसी नाली द्वारा निकास का रास्ता नहीं बनवाया जाए तो क्या होगा ?
घर की साफ़ सफाई कायम नहीं रह पायेगी । बस हम समाज में  वही काम करती हैं जो तुम्हारे घरों में इन शौचालयों और बाथरूमों की नालियाँ करती हैं । घर के ये छोटे से न दिखाई देने वाले हिस्से ही पुरे घर को स्वच्छ रखकर उसकी शान बनाये रखते हैं ।
हम भी तुम्हारे इस समाज रूपी घर की वही गन्दी नालियां हैं जो खुद गन्दी रहकर भी इस समाज को साफ़ सुथरा बनाये रखने की कोशिश करती हैं । और तुम लोग अपने मन में हमारे बारे में पता नहीं कैसे बुरे बुरे विचार भरकर हमसे घृणा का ही पाठ पुरे समाज को पढ़ाते रहते हो । हमसे सहानुभूति न करो तो न सही लेकिन कम से कम हमसे घृणा तो न करो । यह न भूलो कि हम तुम्हारे समाज की इस चमकती हुयी बुलंद इमारत के नींव की पत्थर हैं ।
लेकिन नींव के पत्थर की अहमियत भी तुम लोग भला क्या जानो ? तुम्हें तो वही संगमरमर के बिछे हुए टुकडे ही पसंद आते होंगे जो सदैव ही तुम्हारे कदमों तले बिछे रहते हैं । नींव के पत्थरों से तुम्हारी मुलाकात ही कहाँ हुयी होगी । वह तो दफ़न हो गयी ख़ामोशी से तुम्हारे घर की ईमारत को बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए लेकिन वाह रे कृतघ्न समाज ! किसी के कुर्बानियों की इस समाज के ठेकेदारों के मन में कोई इज्जत नहीं है ठीक वैसे ही जैसे हमने लाखों शहीदों की कुर्बानियों को भुलाकर इस महान देश को अपने ही विशेष रंग में रंग दिया है जहां हिंसा ‘ अपराध ‘ असमानता व वैमनस्यता का राज है वहीँ लोग ‘ जाती ‘ मजहब ‘ संप्रदाय ‘ भाषा व क्षेत्र के साथ ही अब राजनीति के नाम पर भी बंटे हुए हैं ।
आज निश्चित ही स्वर्ग में उन शहीदों की आत्मा खून के आंसू रो रही होगी जिन्होंने ने इस महान देश रूपी बुलंद ईमारत की नींव रखने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी ।

खैर मैं कोई नेता नहीं हूँ जो देश के प्रति अपना प्रेम दिखाऊं क्योंकि देशभक्ति तो अब अपने अपने हित साधने की एक मशीन बन गयी है राजनेताओं की नजर में और बड़ा दुःख होता है जब ये राजनितिक दल अपनी अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए किसी भी मुद्दे को लपकने के लिए तैयार रहते हैं । इनका एक ही मकसद होता है जनता को यह दिखाना कि भैया हम ही हैं भारत के भाग्यविधाता ! हम हैं तो यह देश है और सब लोग हैं नहीं तो यह देश कब का विलीन हो गया होता ।
यही सन्देश देने की कोशिश करती ये राजनीतिक पार्टियाँ बहती गंगा में सीर्फ हाथ ही नहीं धोतीं बल्कि नहा धो भी लेती हैं ।
हम वेश्ताओं का भी एक स्वर्णिम इतिहास है । आम्रपाली नाम तो आपने जरुर सुना होगा । जी हाँ ! वही आम्रपाली जिनके नाम पर उनकी कहानी बताने वाली एक सुपर हिट फिल्म भी बनी थी । इतिहास के अनुसार शायद वह पहली ज्ञात वेश्या थीं लेकिन तब के लोगों की मानसिकता में काफी फरक था । उन्हें कोई वेश्या जैसे निकृष्ट संबोधन से सबोधित नहीं करता था । दरबार की राजनर्तकी होने का गौरव उन्हें प्राप्त हुआ करता था । कालांतर में नगरवधू का संबोधन भी उपयुक्त ही था । लेकिन जैसे जैसे लोगों की सोच और मानसिकता ओछी होती गयी हमारे लिए अश्लील संबोधनों की बाढ़ सी आ गयी । अब ऐसे संबोधनों के बारे में न पूछ लेना । सभी जानते हैं । अभी अभी तो तुमने हमें इसी तरह पुकारा था ।
आज हमें कई नामों से पुकारा जाता है । सोसाइटी गर्ल ‘ कॉल गर्ल से लेकर अन्य कई बदनाम नाम भी हमारे ऊपर चिपका दिए जाते हैं ।
हाँ ! नामों से ही याद आया दक्षिण भारत में देवदासी प्रथा ! इस प्रथा के बारे में तो आप जानते ही होंगे फिर भी संक्षिप्त में बता ही दूँ । परिवार द्वारा किये गए मन्नत के फलस्वरूप जब कन्या बड़ी हो जाती है तो उसकी शादी देवी येलम्मा से बड़े धूमधाम से करायी जाती है । अब आप सोच सकते हो शादी देवी से हुयी है । अर्थात अब उसे अपने घर गृहस्थी से कोई मतलब नहीं होता । लेकिन इसके बाद देवी के नाम पर रिवाज की दुहाई देकर मंदिर के पुजरियों द्वारा उसका सतीत्व हरण का घिनौना खेल खेला जाता है और यहीं से उसकी नारकीय यात्रा की शुरुआत होती है । पुजारियों के बाद समाज के संभ्रांत लोगों के हवस की शिकार देवदासी अंत में महानगरों में किसी कोठे की शोभा बनने को अंततः मजबूर हो जाती है । इस पुरे घटनाक्रम में इन तथाकथित धर्म के ठेकेदारों की भूमिका को देखो देवी को समर्पित लड़की अर्थात देवी की अमानत में भी खयानत करने से नहीं चुकते । हालाँकि सरकार अब इस प्रथा को ख़त्म करने की भरसक कोशिश कर रही है लेकिन जिस्म के मंडियों में नित नयी यौवनाओं की बढ़ती मांग असामाजिक तत्वों को यह अपराध करने को प्रेरित करती है । जब तक बाजार में तुम जैसे गरम गोश्त के खरीददार आते रहेंगे ये गुंडे मवाली और बदमाश पैसों के लालच में नित नयी लड़कियों को नए नए सब्ज बाग़ दिखाकर फंसाते रहेंगे । मेरी कहानी भी कुछ ऐसी ही है जो फिर कभी ….बाय बाय।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।