राजनीति

सिर्फ प्रधान मंत्री से ईमानदारी की उम्मीद क्यूँ?

9/11/2016 को प्रधान मंत्री ने नोटबंदी का ऐलान किया तो पेट्रोल पम्प मालिकों ने उस दिन अपनी सेल दोगुनी की उपभोगता को 100 रूपये के पेट्रोल की ज़रूरत थी परन्तु मज़बूरी में 500 का ही डलवाना पड़ा क्योंकि उसको उतना पेट्रोल डलवाने को मजबूर किया गया। नोट बदलवाने की सीमा 4000 निर्धारित की गयी जिसमे 2-4 दिन का घर खर्च आराम से चल जाता है और ज्यादातर का तो महीना भर भी निकल जाता है। लोगो ने तिगड़म बाजी से तीन गुना नोट बदलवाये। बैंक कर्मियों ने भी खूब भाई भतीजावाद निभाया। जिसका परिणाम नोटों की कमी दिखने लगी जबकि ईमानदारी से सभी अपना कर्तव्य निभाएं तो नोटों की कमी नहीं है। जिसका मौका लगा उसी ने ही पग पग पर बेईमानी की। घर में भी ३ सदस्य बेईमान और एक ईमानदार हो तो वो घर परिवार कैसे चल सकता है? ईमानदार प्रधान मंत्री के लिए जनता को भी ईमानदारी निभानी होगी। नहीं तो जनता छाती पिटेगी और नेता ढोल।

1978 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई थे जिन्होंने देश हित में बहुत बड़ा फैसला लिया और बहुराष्ट्रीय कंपनी कोका कोला को भारत में बैन कर दिया था। उन्होंने ही उस समय मुद्रा में प्रचलित सबसे बड़ा नोट भी बंद कर दिया था। उनके इन फैसलों से उस समय महंगाई पर लगाम लग गयी थी। परन्तु  चंद बेईमान नेताओं के बहकावे में आकर, जिस जनता ने उन्हें पूर्ण समर्थन दिया था वो ही उनके  खिलाफ हो गयी जिसका परिणाम रहा श्री देसाई को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।

वर्तमान में कांग्रेस के भ्रस्टाचार से तंग जनता ने नरेंद्र मोदी को अपना पूर्ण समर्थन दिया (याद रहे ये समर्थन भा.ज.पा. को नहीं दिया)। 9/11 को मोदी जी ने एक कठोर कदम उठाया जाली (नकली) नोटों को ख़त्म करने के लिए। ऐसा करने से जनता को थोड़ी बहुत परेशानी तो होनी लाज़मी है। जिस जनता ने काम करने के लिए इतना बड़ा जनसमर्थन दिया हो तो उसके लिए परेशानी उठाना भी जनता का फर्ज है।

आज यदि जनता ने प्रधान मंत्री जी का पूर्ण समर्थन नहीं किया तो बेईमान नेता (जो सभी दलों में हैं) प्रधान मंत्री को उखाड़ फैंकेगे (जैसे मोरारजी देसाई जी को ख़त्म कर दिया था) फिर भविष्य में कोई प्रधानमंत्री इतना कड़ा कदम नहीं उठाएगा।

हमारा (जनता) नैतिक फ़र्ज़ बनता है कि, यदि ऐसा कुछ बेईमान नेता कदम उठाते हैं जिससे मोदी जी के इस फैसले पर आंच आये तो, कम से काम इस समय इस कड़े फैसले पर प्रधान मंत्री जी का समर्थन करना होगा, क्योंकि जनता ने उन्हें भ्रस्टाचार, आतंकवाद, कालाबाजारी ख़त्म करने के लिए समर्थन दिया है, वो इसी तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। हाँ जनता द्वारा विरोध भी दर्ज करवाना जरुरी है, ताकि वो बेलगाम न हो जाएं।

किसी भी ईमानदार कौशिश के पीछे सबसे पहले उसका काला पक्ष खोजने में अपनी शक्ति लगायी जाती है और उस कौशिश को साम दाम दंड भेद की नीति के तहत फेल करके ही दम लिया जाता है। ताकि वह ईमानदार कौशिश बदमान (क्यूंकि ईमानदारी बदमान तो हो सकती है परंतु बदनाम नहीं होती) हो जाए। ये कौशिश सिर्फ और सिर्फ इसलिए की जाती है ताकि अपनी खामियां उजाग़र न होने पाए।

विजय बाल्याण ‘विभोर’
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विजय 'विभोर'

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