लेख

अलगाववाद पे नकेल की जरूरत

पिछले गुरूवार को जम्मू-कश्मीर के नौहट्टा में मस्जिद के बाहर ड्यूटी में तैनात एक पुलिस अफसर को कुछ उपद्रवीयों की भीड़ ने पीटपीट कर मार डाला। मारे गये अफसर अयूब पंडित की गलती बस इतनी सी थी कि उन्होंने मस्जिद के बाहर खड़े होकर अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश की थी। अपनी ड्यूटी के दौरान वे किसी भी तरह के संभावित दंगे की स्थिती से निपटने के लिए पहले से ही सतर्क होना चाह रहे थे और इसी क्रम में उन्होंने मस्जिद के आस पास हो रही सभी तरह की एक्टिविटी पे अपना ध्यान केंद्रित कर दिया था। और उनकी यह सक्रियता वहां खड़ी भीड़ को नगवार गुजर रहा था। जिसके परिणामस्वरूप वहां खड़े उपद्रवीयों के झुंड ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के ही उनपे अचानक से हमला बोल दिया। हमला भी ऐसा कि पीटपीट कर उनकी जान ही ले ली गई। उनकी हत्या के दौरान हमलावरों ने उनके कपड़े तक फाड़ डाले। उन्हें तरह तरह की यातनाएं दी और फिर क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए उनकी हत्या कर दी। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि आखिर मस्जिद में उस वक्त ऐसा क्या चल रहा था जिसे लेकर डीएसपी अयूब विशेष तौर पर सतर्क हो गये थे? मस्जिद में आखिर ऐसी कौन सी योजना बनाई जा रही थी जिसका संदेह होने पर डीएसपी अयूब की इतनी बेरहमी से हत्या कर दी गई?

इस संदर्भ में अगर समाचार एजेंसीयों की मानें तो उस रात हुये इस दुखद वारदात से पहले शबे कद्र के मौके पर विशेष नमाज के पर उक्त मस्जिद में कुख्यात भारत विरोधी अलगाववादी नेता मीरवाइज पहुंचा था जो नमाज के बहाने मस्जिद में कोई संदेहास्पद योजना बना रहा था। योजना भी ऐसी जिसकी भनक ने एक पुलिस अफसर की जान तक ले ली। इतना ही नहीं बल्कि इस पूरी वारदात के दौरान भी वो वहीं मस्जिद के अंदर ही मौजूद था। मीरवाइज नामके उस अलगाववादी नेता की उपस्थिती ने वहां खड़ी भीड़ को इतना अधिक उत्साहित कर दिया था कि उन्होंने बीना किसी भूल के ही नामाजीयों की सुरक्षा के लिए तैनात एक डीएसपी की हत्या कर दी। हत्या के दौरान भीड़ ने जो बहसीपन दिखाया है उसे गौर करें तो सहज ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कहीं ना कहीं उपद्रवीयों को मीरवाइज और उसके संगठन का संरक्षण प्राप्त था। जो उन्हें कुछ भी कर गुजरने की प्रेरणा दे रहा था। अन्यथा बीना किसी राजनैतिक संरक्षण के एक ओन ड्यूटी पुलिस अफसर की हत्या का जोखिम उठाना आम लोगों के लिए भी इतना सहज नहीं होता जितना मीरवाइज के गुण्डों ने दिखाया था। फिलहाल नौहट्टा की इस घटना ने जम्मू-कश्मीर के वर्तमान परिस्थिती की ओर इशारा करते हुये हमारे हुक्मरानों को सचेत किया है कि अब वो समय आ गया है जब राजनैतिक संरक्षण प्राप्त इन अपराधीयों पर हमें सख्ती दिखानी होगी। उनपे सख्त कार्यवाई करते हुये है देश में अमन-शांति का माहौल बनाना होगा जिससे विकास की रफ्तार को गति दी जा सके।

गुरूवार को घटी इस घटना ने जहां एक ओर पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है तो वहीं प्रदेश की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस हत्याकांड के खिलाफ कड़ी कार्यवाई करने के वजाय उपद्रवीयों को हल्की चेतवानी देकर अपने कर्तव्य का इतिश्री कर लिया है। देश को हिलकार रख देने वाले इस हत्याकांड के विरूद्ध पुलिस ने मामला दर्ज तो कर लिया है पर इस हत्याकांड के असली गुनहगार को वो छू भी पाइगी इस बात पर संदेह बरकरार है। क्योंकि मीरवाइज जैसे ये अलगाववादी नेता हमारे देश के नेताओं के संरक्षण में पूरी तरह से सुरक्षित हैं। फिर पाकिस्तान से मिलनेवाला बेसुमार पैसा हमारे अपाहिज सिस्टम से उन्हें बचाने के लिए पहले से ही तैयार बैठा है।

ये हमारे देश का दुर्भाग्य ही है जो संसार के सबसे बड़े बेईमानों ने इसी धरा पर जन्म लिया है और वे अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। और सायद यही वजह है कि इस देश को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने वाले मीरवाइज, सैयद अली शाह गिलानी,यासीन मलिक जैसे गद्दार बेरोकटोक पाकिस्तान से हर तरह की मदद लेकर घाटी को अशांत करने की कोशिश करते रहें हैं। और अपने इसी षडयंत्र के तहत वे हमारे जवानों पे हमले का प्रयास करते आयें हैं। ये वही नेता हैं जिन्होंने धरती का स्वर्ग कहे जानेवाले जम्मू-कश्मीर को मौत का समंदर बना दिया है। जहां आये दिन अक्सर सेना और पुलिस के जवानों पर जानलेवा हमले की कोशिश की जाती है और इन हमलों में शहीद होनेवाले जवानों के मृत शरीर के साथ अमानवीय बर्ताव किये जाते हैं। पर इतना सबकुछ होने बाद भी ये सभी कुसूरवार हमारे नेताओं के संरक्षण के कारण सुरक्षाबलों के हाथों से बच निकलते हैं और समय समय पस अपने मंसूबों को अंजाम देते हुये घाटी को अशांत कर रहें हैं। वे अपनी इन कायराना हरकतों से लोगों के दिलों में खौफ पैदा करना चाहते हैं ताकी घाटी में उनकी हुकूमत चलती रहे। ये अलगाववादी जान बूझकर हमारी सेना को निशाना बनाते हैं ताकी आम लोगों को अंधेरे में रखा जा सके और घाटी पर उनकी बादशाहत कायम रहे। मगर इतना सबकुछ होने के बावजूद हमारी सरकारें इनके खिलाफ सख्त नहीं होती और नाही इनके खिलाफ कोई कार्रवाई करती है। बल्कि इन सबसे उलट हमारे कुछ नेता इन अलगाववादीयों की जी हुजूरी करते हुये नजर आते हैं। इनकी चापलुसी तक करते हैं। और यही वजह है कि जिस सेना को ये एहसान फरामोश गालियां बकते हैं उसी सेना के जवानों को उनकी सुरक्षा में तैनात कर दिया जाता है। इस तरह का खुशामद पाकर इनका हौसला और अधिक बढ़ जाता है और फिर ये दोगले अलगाववादी नेता हमारे देश को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से अधिक सक्रिय हो जाते हैं। क्योंकि उन्हें ये बात स्पष्ट पता होता है कि जब तक उनके पास पैसे की ताकत है तब तक इस देश का लचर कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। और वे इस देश में बिल्कुल सुरक्षित हैं।

वैसे समय के हिसाब से हमें अब यह सोचना होगा कि आखिर हमारे देश में ऐसी लचर कानून व्यवस्था क्यों बनाई गई है जो देश को इस हद तक नुकसान पहुंचा रहा है? समय के साथ हमें यह विष्लेशन करना होगी कि आखिर बोलने की आजादी के कानून के नाम पर देश के विरूद्ध बोलने वालों को कब तक बचाया जायेगा? वैसे अब तक जो भी हुआ हो उसे जाने दीजिये। पर अब तो देश के अस्तित्व की रक्षा के लिए हमें अपने संविधान और कानून में बदलाव की जरूरत है। अब दरकार है देश के गद्दारों पे कसकर नकेल कसने की। अब समय आ गया है जब अलगाववाद की कमर तोड़कर उन्हें ऐसी स्थिती में पहुंचा दिया जाये जहां से वे फिर कभी इस देश को नुकसान पहुंचाने के बारे में सोच न सके। अब जरूरत है तो खुदको सजग और सक्षम बनाने की जिससे इस देश में फिर कभी कोई और मीरवाइज या यासीन भटकल जैसे लोग ही पैदा न हों जिनसे इस देश को खतरा है या जो इस देश को नर्क के राह पर ढकेलते हैं। अब आवश्यकता है तो हमारी सरकारों और सभी दलों को एकत्रित होकर एक ऐसी व्यवस्था बनाने की जिसके बारे में सोचने भर से भारत विरोधी ताकतों की हालत पतली हो जाये। हमें जरूरत है आपस में मिलकर आतंकवाद और अलगाववाद का संपूर्ण अंत करने की ताकी हमारे इस देश में शांति और सुकून का फूल खिलाकर इस देश को विकास की बुलंदियों के शिखर पर स्थापित किया जा सके ताकी संसार में शांति-समृद्धी के अगुवा रूप में भारत पूरे विश्व का नेतृत्व कर सके।

मुकेश सिंह
राष्ट्रवादी स्तंभकार

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl