लघुकथा

नुकसान भरपाई

बड़े धूमधाम से बेटे की शादी करके अपने अरमान पूरे करने के चक्कर में संपतलाल कुछ कर्जदार पहले ही हो गए थे । रही सही कसर पानी के अभाव में सुख गयी फसलों ने पूरी कर दी । बड़े अरमानों से संपतलाल ने अपने पांच एकड़ खेत में गेहूं की फसल उगाई थी । भरपूर खाद और पानी के साथ कड़ी मेहनत के बावजूद उनके नसीब ने उन्हें दगा दे दिया था । आखरी बार फसलों को दिए जानेवाले पानी का वह इंतजाम नहीं कर पाए , नतीजतन सारी फसल बरबाद हो गयी । अब वह गले तक कर्जे में डूब गए थे । कुछ दिनों के बाद एक परिचित के ट्यूबवेल से पानी की सुविधा मिलते ही बिना वक्त गंवाए संपतलाल ने अपने खेत के एक छोटे से हिस्से में टमाटर के पौधे लगा दिए । आर्थिक वजह से पूरे खेत में बुआई करने का इंतजाम नहीं कर सकते थे । लगभग चालीस दिनों में टमाटर की फसल संपतलाल के खेतों में लहलहा उठी । अब उन्हें यह फसल बेच कर अपने कर्जों में से कुछ की भरपाई हो जाने की उम्मीद जगी । कुछ टमाटर लेकर वह शहर की कृषि मंडी पहुंचे । व्यपारियों ने टमाटर उन्हें चालीस रुपये प्रति किलो का भाव देकर हाथों हाथ खरीद लिया । उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । दो दिनों बाद संपतलाल जब पुनः टमाटर लेकर मंडी पहुंचे अबकी उन्हें पचास रुपये प्रति किलो की दर से पैसे मिले । खुशी खुशी संपतलाल कुछ खरीदने के लिए अपने शहर के बाजार में घुम रहे थे कि एक सब्जी की दुकान पर उन्होंने लिखा देखा ‘ शहर में सबसे सस्ता टमाटर – सिर्फ 90 रुपये किलो ‘ ।
खुदरा बाजार में टमाटर का भाव देखने के बाद संपतलाल का मन खिन्न हो उठा । वह घर की तरफ बढ़ते हुए मन में सोच रहा था ‘ उफ्फ ! इतनी महंगाई ! बाजार में टमाटर 90 से 100 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहे हैं और हमें क्या मिल रहा है ? ‘ साथ ही पिछले फसल में हुए नुकसान का भी आकलन किये जा रहा था ‘ क्या नुकसान भरपाई होगी ? ‘

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।