लघुकथा

“यादें”

आज मित्र दिन है, यादों की फहरिस्त चलचित्र बन प्रतिपल सामने आ जा रही है। झलकियाँ झकझोर रहीं हैं, बचपन के घरौंदे, कंचे और गुल्लियां उछल रही हैं। हर मोड़ पर मिले मित्रों के मुलायम हाथ खूब सहला रहें हैं, मानों बिना मौसम की बहार आ गई है सब अपने अपने हवाओं के साथ उड़ रहें हैं और यादें एक दूसरे को खोजकर पकड़ रहीं हैं। मीलों की दूरी तो है पर मन की छलांग उन्हें दबोच रही है।कितना भागोगे कहाँ भागोगे उस पल को लेकर जो हमारे और तुम्हारे मिलन के साक्षी हैं। याद करो उन लम्हों को जो भूले नही हैं बिसर गए हैं अपने अपने जंजाल में, आज उनसे कुछ समय उधार ले लो और मिल लो अपने हम उम्र को, ख्यालों में ही सही, निभा लो रिश्ता मिताई का……..मंच के सभी मित्रों का तहेदिल से शुक्रिया जिन्होंने बिना परिचय भी अगाध प्रेम दिया , दुलार और मित्र बनाकर सम्मान दिया। सभी मित्रों को मित्र दिवस पर हार्दिक बधाई, कल राखी हैं बहनों को सादर शुभकामना, आशीष दें, प्रणाम……

आज मित्र दिन है आप कहीं नही जा सकते…..

मीलों की दूरी है तो क्या, नजदीकी मन मित्र हूँ

खोलों तो एलबम अपना, देखो तो चित चित्र हूँ

गले लगाकर झूम रहे तुम मानों तरुवर बाग के

चहक रही मालती झूमकर पुष्पित खुश्बू इत्र हूँ।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ