लघुकथा

ये जो मन की इच्छाएं किसी रफ़्तार में रेल हो जाना चाहती है

…………….,,,……….

ये जो मन की इच्छाएं किसी रफ़्तार में
रेल हो जाना चाहती है
कि अचानक उम्मीदों की कुछ बोगी
पटरी से उतर जाती है
ऐसी यात्राएं सारी हरी झंडी पार नहीं कर पाती
बीच में ही कहीं नीले डिब्बे लाल हो जाते हैं
यात्राएं स्थगित न होकर
दुर्घटनाग्रस्त हो जाती हैं
और यात्री जख़्मी होकर स्थगित यात्राओं पर
अपनी अगली यात्रा जारी रखता है
जैसे जारी रहता है श्वास का चलना
मन के स्थगित होने पर भी
ये इच्छाओं की यात्रा पर
मन का मुआवजा होता है ।

-राज सिंह

राज सिंह रघुवंशी

बक्सर, बिहार से कवि-लेखक पिन-802101 raajsingh1996@gmail.com