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हिंदी भारत के माथे की बिंदी

हिंदी भारत के माथे की बिंदी
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हिंदी वह भाषा है जो पूरे भारतदेश में ज्यादा से ज्यादा समझी जाती है और यही वजह है कि हिंदी जानने वाला बगैर किसी अत्यधिक परेशानी के भारत दर्शन कर सकता है | हिंदी शुध्द – सरल, सहज पढने – लिखने, समझने – बोलने वाली भारतवर्ष की राष्ट्रीय भाषा है | कहा जाता है कि किसी भी देश की आत्मा उसकी अपनी भाषा ही होती है | किसी से उधार ली गई या जबरन थोपी गई भाषा में न तो हृदय की विराट भावनाओं की अभिव्यक्ति संभव है और न ही सत् साहित्य की रचना |

हिंदी ने अपनी सरलता के बल बूते पर अहिंदी राज्यों में भी अपना सम्मानित स्थान बना लिया है और अब धीरे – धीरे हिंदी देश ही नहीं विदेशों में भी नित उन्नति के शिखर छू रही है | हालांकि हिंदी आज जिस मुकाम पर है, उस पर पहुंचने के लिए हिंदी ने काफी संघर्ष किया है | अब भी मैकाले के पुत्र हिंदी के पीछे हाथ धोकर पडे हैं | इनकी संख्या पूरी पचास प्रतिशत भी नहीं है और ये अच्छी तरह से इंगलिश भी नहीं जानते सिर्फ हिंगलिश ही जानते हैं और इसी हिंगलिश के बल पर अपना कचरा युक्त ज्ञान झाडते रहते हैं |

आज भारतीय महापुरुषों का तिरस्कार किया जा रहा है, जिन्होंने हिंदी की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया | उनके नाम पर स्कूल – कॉलेजों का नाम रखने पर उसे हेय दृष्टि से देखा जाता है | मैकाले के मानस पुत्र बडे शौक से सेंट मार्क्स, सेंट जेवियर, सेंट थॉमस आदि नामों से नित नये – नये स्कूल – कॉलेज खोल रहे हैं | मोटी – मोटी फीस लेकर भी ये बच्चों को शिक्षा के नाम पर सिर्फ मशीन बना रहे हैं | अब संत कबीर, संत तुलसीदास, महर्षि पाणिनी, महर्षि स्वामी दयानन्द, संत कालीदास, सूरदास आदि नाम लोगों को अटपटे लगने लगे हैं | हम भारतीय न होकर सिर्फ इंडियन बनकर रह गये हैं |

तमाम देशी – विदेशी षड्यंत्रों के महाजाल से निकलकर हिंदी ने आज अपनी एक अलग पहचान बनाली है | अलग – अलग भाषाओं के अलग – अलग शब्दों को अपने आप में मिलाकर क्षेत्रवाद का बंधन भी तोड दिया है |

अब बस एक ही कमी रह गई है राष्ट्रभाषा हिंदी को राजनैतिक सहयोग और मिल जाये फिर हिंदी बगैर किसी विरोध के भारतवर्ष की रानी बनकर राज करेगी | माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शुध्द – सरल तेज तर्रार हिंदी भाषणों से भी हिंदी को बहुत अधिक पुष्टता प्रदान की है |

” हिंदी भारत के माथे की बिंदी ”

– मुकेश कुमार ‘ऋषि वर्मा’
गॉव रिहावली, डाक तारौली गुर्जर,
फतेहाबाद-आगरा, 283111

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111