कविता : व्यथा पहाड़ की
विकास की छाती पर रख सिर रोता है पहाड़ न देखे उसकी दरकन न ही सुने दहाड़ ।। नंगी हो
Read Moreविकास की छाती पर रख सिर रोता है पहाड़ न देखे उसकी दरकन न ही सुने दहाड़ ।। नंगी हो
Read Moreकिसी रुद्र से परे नही हूं जब अपनी पर आती हूं स्वाभिमान की खातिर तो अग्नि तक से लड़ जाती
Read Moreगुरुर ब्रह्मा गुरुर देवो महेश्वरा गुरुर साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः आज यह उक्ति हमारे शैक्षिक परिवेश में शिक्षकों
Read Moreआज 5 सितंबर है । आप लोग भलीभांति इस दिन से परिचित होंगे ही । आखिर क्यों न हो ?
Read Moreमैत्री भाईचारे के प्रचार प्रसार में सोशल मीडिया कितनी सफल कितनी असफल पिछले दशकों और वर्तमान की स्थिति को देखें
Read Moreबालदर्शन मासिक कानपुर मे नवम्बर 1991 में छपा प्रथम बालगीत फूलों पर मंडराती तितली चंचल पंख हिलाती तितली डाल-डाल पर
Read Moreभारत का हर नागरिक गर्व से कहता कि कश्मीर हमारा है लेकिन फिर ऐसी क्या बात है कि आज तक
Read More“वंदगी में गंदगी” जिंदगी और वंदगी में गंदगी किसी की भी हो , कैसी भी हो, उसे स्वीकार करना उसको
Read More