लघुकथा

“चौपाली चर्चा में विकास और प्रकाश”

वसुधैव कटुम्बकम के आग्रही, नेक नियति के पथ पर चलने वाले झिनकू भैया न जाने कहाँ कहाँ भटकते रहते हैं और किसके कब कहाँ और कैसे मिलते रहते हैं ये तो वहीं जाने पर आजकल वे किसी विकास और प्रकाश नामक नए परिचित पर फ़िदा हो गए हैं। जब देखों विकास को मंच पर बैठा देते हैं और चौपाल बुला लेते हैं। माटी की दीवार से लेकर संगमरमर से बने ताजमहल तक की चर्चा शुरू हो जाती है और बात फिर वहीं आकर रुक जाती है कि यह क्या है वह क्या है, किसने बनवाया किसने गिरवाया और महंगाई पर नकेल कसने वाली सभा, भौजी के झुँझलाहट से डर कर चाय की चुस्की चुप्पी में विसर्जित हो जाती है। अजी सुनते हो अपने आकाश को देखों दसवीं में फेल हो गया और तुम दिन रात विकास और प्रकाश में उलझे हुए हो। कुछ तो शरम करो मेरे पंडित स्वामी, घर की चाय पत्ती चीनी और गैस सिलिंडर आखिरी दिन गिन रहे है। चिंता न करो भागवान कल सातवें वेतन पंच की बढ़ी हुई पेंसन मिलने वाली है, पौने दो साल से इसी का तो इंतजार था।अब दिन बदल जाएंगे, वगैरा वगैरा।

सुबह नहा धोकर झिनकू भैया ललक में बैंक पहले ही पहुँच गए और दुकान पर समाचार पत्र हथिया कर बाँकडे पर काबिज हो गए। पन्ना उलट ही रहे थे कि उनके नए मित्र प्रकाश का फोटो दिख गया जो अब देवी देवताओं के शरण में पहुँचकर नई ऊँचाइयों को छूने के लिए दर दर माथा पटक रहा है। उधर दूसरे पन्ने पर विकास के उत्साहित मन की नई नई योजनाएं चमक रहीं हैं जो अब फलिभूत होने की झलक भी कहीं कहीं देने लगी हैं। इधर पन्ना पूरा हुआ नहीं कि बैंक का दरवाजा खुला और झिनकू भैया अपना पासबुक लेकर बैंक में समा गए, जब निकले तो दो हजारी नोट का रंग उनके चेहरे से साफ झलक रहा था।

दूसरे दिन शानदार चौपाल जमी और चर्चा में सारे मुद्दे अपनी अपनी टाँग फसाने लगे, जी. एस.टी. से लेकर कालाधन और तमाम पाखंडी बाबाओं की पगड़ी उछल कर जमीन पर आ गई। देश-विदेश की धरती पर जय हिंद, जय विकास पर तालियों की गड़गड़ाहट से झिनकू भैया का ओसारा गूंज उठा और तय हुआ कि विकास अति जरूरी जो अपनी निश्छल गति से खूब आगे बढ़ रहा है और प्रकाश का होना भी बहुत जरूरी है रात उसकी है तो दिन विकास का, अब यह अलग बात है कि रात में प्रकाश हो तो वह भी दिन जैसी ही फलदाई लगती है। झिनकू भैया अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहे कि प्रकृति अपना संतुलन बना कर चलती है तो मनुष्य को भी संतुलन बनाकर चलना चाहिए और जनता को खुश रखना चाहिए। आज भौजी बहुत खुश हैं, तस्तरी में सलीके से सजे हुए चाय-नमकीन और बिस्किट तो कुछ ऐसे ही संदेश दे रहे हैं। जय हो झिनकु भैया के मित्र विकास और प्रकाश की।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ