कविता

प्रेम…

तुम्हारे मेरे बीच उठती
अहसासों की सुगन्ध

आहिस्ता-आहिस्ता
देर रात की जलती….
मद्धिम रौशनी की भाँति

दिल के मध्य, धुरी के इर्द-गिर्द
सूक्ष्मता से सदृश्यता की ओर
बढ़ती जा रही….

और, ले रही, एक अदृश्य-सा
“प्रेम” आकार का रूप

तन-मन सब सम्बद्ध हुआ तुममें
महोगनी और महुआ की तरह

प्रेम की संतृप्तता,
सुकून के अहसासों को

मेरी आँखों में सजाकर
पलकों का श्रृंगार कर रही

हृदय आनन्दित हो उठा
रोम-रोम में सिहरन सी
होने लगी….

और मैं अपनी सम्पूर्णता
तलाशती हुई निरन्तर….
तुममें विलीन हो रही।

*बबली सिन्हा

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