प्रेम…
तुम्हारे मेरे बीच उठती
अहसासों की सुगन्ध
आहिस्ता-आहिस्ता
देर रात की जलती….
मद्धिम रौशनी की भाँति
दिल के मध्य, धुरी के इर्द-गिर्द
सूक्ष्मता से सदृश्यता की ओर
बढ़ती जा रही….
और, ले रही, एक अदृश्य-सा
“प्रेम” आकार का रूप
तन-मन सब सम्बद्ध हुआ तुममें
महोगनी और महुआ की तरह
प्रेम की संतृप्तता,
सुकून के अहसासों को
मेरी आँखों में सजाकर
पलकों का श्रृंगार कर रही
हृदय आनन्दित हो उठा
रोम-रोम में सिहरन सी
होने लगी….
और मैं अपनी सम्पूर्णता
तलाशती हुई निरन्तर….
तुममें विलीन हो रही।