गीत/नवगीत

गीत

बेचैनी सी छायी हर दिन बिगड़ रहे हालात

समझ नहीं आता है कैसे बोलें दिल की बात…

क्षणिक देख कर मन नहीं भरता होती घुटन सहें कैसे?

कदम कदम पर जग के पहरे दिल की बात कहें कैसे?

तुम्हें देख सुध खो बैठे हैं नहीं रहा कुछ ज्ञात। समझ…

एक झलक पाकर ही जाने क्या क्या स्वप्न संजोते हैं।

नयन हमारे तुम्हें ढूँढ़ते छुपके छुपके रोते हैं।

प्रिये याद में सिसक सिसक कर रोते हैं दिन रात। समझ…

एक झलक दिखला कर क्यों आँखों से ओझल होते हो।

नयन लड़ा कर हृदय चुरा कर मन में शूल चुभोते हो।।

रही कसर पूरी कर देती है पागल बरसात। समझ…

काश तुम्हारे अधरों तक जाने का साहस दे दे रब।

पनघट पर पानी पीने से प्यास नहीं बुझती है अब।।

विरह व्यथित तन को दो गोरी आलिंगन सौगात। समझ नहीं…

उत्तम सिंह ‘व्यग्र’