बाल कहानी

मिलावटखोर को सबक (बाल कहानी)

गुटपुट खरगोश के दफ्तर में आज छुट्टी थी। वह घर में लेटा-लेटा बोर हो रहा था सो उसका मन कुछ बढ़िया खाने का हुआ। अपनी बीवी गप्पी से पूछा “अजी, खीर बना सकती हो?” गप्पी प्यार से मुस्कुरा के बोली “लो, बना क्यों नहीं सकती? बस चावल ले आओ खीर वाले, वही घर में नहीं हैं”। बस फिर क्या था, गुटपुट ने झोला उठाया और चल पड़ा। पास में ही हुलहुल तोते की पंसारी की दुकान थी, वह वहाँ पहुँचा। “भैया हुलहुल, आधे किलो चावल देना बासमती बढ़िया, खीर बनानी है”। हुलहुल चहक उठा लो भई, अभी लो। उसने तुरंत तराजू पर चावल चढ़ाये और तौल-ताल के गुटपुट को पकड़ा दिया “ये लो गुटपुट भाई अपने चावल, अस्सी रुपये किलो के हिसाब से चालीस रुपये हुए”। गुटपुट ने चावल की पोटली ली और थैली में रखने लगा कि तभी उसे चावल में कुछ मिला हुआ दिखायी दिया। उसने जब पोटली खोल कर देखा तो समझ गया कि इस हुलहुल ने बेईमानी से उसमें कंकड़-पत्थर चावल के ही मिलते-जुलते रंग से रँग कर मिलावट कर रखी हैं पैसे ज्यादा कमाने के लिए। वह सोचने लगा कि इस बदमाश को सबक कैसे सिखाया जाये। तभी उसे अपनी जेब में रखे नकली नोटों की याद आयी जो उसने अपने बेटे मटका के खेलने के लिए खरीदे थे। उसकी आँखों में चमक आ गयी। उसने तुरंत उसमें से दस का एक नकली नोट निकाला और उनके साथ असली के तीस रुपये मिलाकर हुलहुल को दे दिये। नोट हाथों में लेते ही हुलहुल पहचान गया कि एक दस का नोट नकली है क्योंकि वह एक तरफ से ही छपा था। उसने गुस्से में भर के गुटपुट को वह नोट लौटा दिया और बोला कि असली नोट दो भाई वर्ना थाने में शिकायत कर दूँगा, हाँ। गुटपुट ने तुरंत पोटली में से एक मुठ्ठी चावल निकाला और उसे दिखा के ठंढे मन से बोला “हुलहुल जी, आपने मुझे असली और नकली चावल मिला कर दिये सो मैंने भी आपको असली और नकली नोट मिला के दे दिया, हिसाब बराबर, इसमें थाने जाने की क्या जरूरत? हाँ अगर जाना ही है तो आप थाने जायें और मैं उपभोक्ता अदालत में जाता हूँ आपकी शिकायत करने” इतना सुनते ही हुलहुल की तो हालत खराब हो गयी। वह समझ गया कि बच्चों के खिलौने वाले नकली नोटों के आधार पर गुटपुट तो जेल जाने से रहा लेकिन मिलावटी अनाज बेचने के अपराध में मैं जरूर अंदर हो जाऊँगा सो हाथ-पैर जोड़ने लगा “माफ कर दो भाई, अब दुबारा ऐसा नहीं करूँगा, बस इस बार छोड़ दो”। गुटपुट बोला कि ठीक है, अगर तुम्हें अपनी गलती का भान हो गया है तो क्षमा करता हूँ, लाओ अच्छे चावल अब मुझे”। “हाँ-हाँ भाई, ये लो” कह के हुलहुल ने तुरंत साफ नये चावल उसे तौलकर दे दिये। गुटपुट ने उसे पैसे दिये और हँसता हुआ अपने घर को लौट पड़ा, ताकि जल्द-से-जल्द वह खीर का आनंद उठा सके।

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन