इतिहास

बच्चूसिंह के जन्म दिवस (30 नवम्बर) पर विशेष

आज बच्चूसिंह के जन्म दिवस की वर्षगाँठ है। इस अवसर पर उनके बारे में जानकारी प्रस्तुत है।

गिर्राज शरण सिंह, अर्थात् बच्चूसिंह, जिन्होंने विकलांगों को प्रतिनिधित्व दिया, भरतपुर के विकलांग (CP) राजकुमार थे। उनके पिता महाराजा किशनसिंह के विश्वासपात्रों ने बचपन से ही बच्चूसिंह सर्वोच्च आयुर्वेदिक चिकित्सा व क्षत्रिय प्रशिक्षण दिलवाया जिससे वे अपनी विकलांगता के बाद भी अच्छे प्रशिक्षण के कारण बलिष्ठ हुए।

ब्रिटेन में रहते हुए वे अंडरवर्ल्ड में फैली विकलांगों के विरुद्ध घृणा से दुखी होकर बदले की आग से भर गए। जब भारत लौटे, तब कम्यूनल अवार्ड व पूना समझौते के विरुद्ध सर छोटू राम के आंदोलन से जुड़ गए। सर छोटूराम की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी बन गए।

उस समय राजपरिवार के लोगों को सेना में भेजने की परम्परा थी, किन्तु बच्चूसिंह की विकलांगता के कारण उन्हें थल सेना की जगह वायु सेना में भेजा गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बच्चूसिंह राजा महेंद्र प्रताप और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के समर्थक हो गए।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1946 मे स्वतंत्रता क्रांतिकारियों से मिलकर बच्चूसिंह ने नौ सेना विद्रोह करवाया। किन्तु राजनीतिक विरोध के कारण संचार पोत “तलवार” द्वारा हड़ताल समाप्त होने की सूचना फैलाने से सैनिकों ने हथियार डाल दिए।

दु:खी बच्चूसिंह भी ब्रिटिश सेना छोड़कर भरतपुर राज्य की सेना बनाकर उसके सेनापति बन गए। तत्कालीन वायसराय लार्ड वेवेल को भरतपुर बुलाकर बच्चूसिंह ने धमकाया, जिससे डरकर उसने भारत छोड़ने के लिए प्लान तैयार कर लिया।

तब ब्रिटिश सरकार ने माउण्टबेटन को वाइसराय बना कर भारत भेजा, जिसने जिन्ना और नेहरू से मिलकर देश का विभाजन करने और कॉमनवेल्थ के माध्यम से ब्रिटिश नियंत्रण रखने का प्लान बनाया।

विभाजन की अव्यवस्था में जब जिन्ना ने सीमा से सटी हिन्दू बहुल रियासतों से भी संधि कर ली, तो बच्चूसिंह ने पाकिस्तान समर्थकों पर हमला कर दिया जिससे राजस्थान, गुजरात के क्षेत्र भारत मे रह गए।

विभाजन से पीड़ितों की मदद हेतु सामाजिक कार्यकर्ता पण्डित दीनदयाल उपाध्याय आगे आए। इनकी मदद के लिए भरतपुर और अलवर में प्रशिक्षण करवाया गया। इससे नेहरू बच्चूसिंह और उपाध्याय के विरुद्ध हो गया।

गाँधी हत्या के बाद जब नेहरू और माउण्टबेटन ने बच्चूसिंह को गिरफ्तार करने का प्रयास किया; तब पटेल ने बच्चूसिंह के इंग्लैंड चले जाने की अफवाह उड़ा उनको बचा लिया, लेकिन आरएसएस पर प्रतिबन्ध लगाया। इस मामले में बाद में वयोवृद्ध स्वतन्त्रता संग्रामी वीर सावरकर को फंसाया गया।

जब पटेल को भारत एकीकरण करना था, तब माउंटबटन का साथी मेनन ही पटेल का सचिव बना, लेकिन गुप्त रूप से बच्चूसिंह को पटेल ने अपना सहयोगी बनाया और एकीकरण में साथ लिया।

तत्कालीन मद्रास के ब्रिटिश समर्थक ‘पेरियार’ ने भारत के स्वतंत्रता दिवस को “काला दिवस” के रूप में मनाया और भारत के अधिक विभाजन की वकालत की, जिससे एकीकरण में जुड़े बच्चूसिंह के साथियों और पेरियार के साथियों में शत्रुता हो गई।

संविधान निर्माण के समय विकलांगों, अनाथों, गरीबों आदि ज़रूरतमन्द के लिए सरंक्षण तय हुआ; लेकिन सरंक्षण की अनुसूची (Schedule) में जाति (caste) और जनजाति (tribe) ही बनाए गए, इससे अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled tribe) की सुविधाएं बन गईं, लेकिन विकलांगों, ज़रूरतमन्दों के लिए पहचान का विवरण भी नहीं दिया गया।

जब सुप्रीम कोर्ट ने जाति आरक्षण को अवैध कर दिया; तब भी पहला संविधान संशोधन करके SC ST आरक्षण को सही ठहरा दिया गया। इसके बाद बच्चूसिंह सीधी राजनीति में आए; 1952 में जहां नेहरू खुद बूथ-कैप्चरिंक करके चुनाव जीता था, वहीं बच्चूसिंह जन समर्थन से जीते।

बच्चूसिंह ने विकलांगों और अन्य जरूरतमंदों के लिए कड़ाई की, तो उनको शांत करने के लिए जरूरतमंदों के नाम पर लिए गांधीवादी “काका केलकर” का आयोग बना। लेकिन केलकर ने विकलांगों आदि की जगह जाट, राजपूत आदि जातियों और कई अपराधी समुदायों को नया पिछड़ा वर्ग बनाकर आरक्षण देना तय किया। इस पर बच्चूसिंह ने धमकाकर केलकर रिपोर्ट रद्द करा दी।

1957 के चुनावों में आरक्षण की जातियों का वोट न मिलने से बच्चूसिंह पराजित हुए; किन्तु वे डिगे नहीं। बच्चूसिंह ने सामाजिक कार्य संभाला और उनके भाई मानसिंह ने राजनीति।

1967 में हाथरस के क्रांतिकारी राजा महेंद्र प्रताप के आह्वान पर बच्चूसिंह मथुरा लोकसभा चुनाव में खड़े हुए और रिकॉर्ड मतों से विजयी हुए। उनके प्रभाव में विकलांगों और अन्य ज़रुरतमंदों की मांग फिर उठी; किन्तु 1968 में उनके सहयोगी दीनदयाल उपाध्याय की हत्या और 1969 में रहस्यमय तरीके से बच्चूसिंह की मृत्यु के बाद विकलांगों का यह महान् नेता शांत हो गया।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com