कविता

क्या और कैसे सहते हैं

देखो दुनिया वालों हम, क्या और कैसे सहते हैं।
हमारे भारत में, ऐसे भी लोग रहते हैं,
करते हैं चोरी हमसे, और हमसे ऊंचे रहते हैं।
रूख हवा जिधर का हो,ये उधर ही बहते रहते हैं
देखो दुनिया वालों हम, क्या और कैसे सहते हैं।

कभी जी हजूरी हमसे, कभी तो ये अकड़ते है,
दुश्मन से बढ़कर है ये, पर कभी ना झगड़ते हैं।
है तो बहुत ही तीखे, पर शहद से मीठे बोलते हैं,
स्नेह भाव रिश्तों को भी लाभ तराजू से तौलते है,
देखो दुनिया वालों हम, क्या और कैसे सहते हैं।

कहने को तो अपनों में, सबसे प्यारे हैं ये,
पर इनसे जो भी मिले, उनके दुखों के कारण है ये।
सोचा था सिर्फ मैं ही हूं, इनका भूक्तभोगी,
सुन इनके दंश की गाथा, बन गया स्वस्थ से रोगी,
देखो दुनिया वालों हम, क्या और कैसे सहते हैं।
संजय सिंह राजपूत
8125313307
8919231773

संजय सिंह राजपूत

ग्राम : दादर, थाना : सिकंदरपुर जिला : बलिया, उत्तर प्रदेश संपर्क: 8125313307, 8919231773 Email- sanjubagi5@gmail.com