कविता

ख़ामोश फ़िज़ा और मैं

ठंडी हवाएँ थी और

खामोश सी फ़िज़ा

मै खो गयी उन की

उस ख़ामोशियों में

कोई था, वहीँ कहीं

महसूस हो रहा था

आहट ना थी कोई

मगर कोई था,

समय की परतों में दबा सा

मै परत दर परत निकालती रही

उत्सुकता का पार ना था

कौन है दिल के इतने करीब

मगर अनजान सा

सारी परतें हटी तो जो सामने था

वो कोई अनजान ना था

ये तो मै ही थी

खुद को ही भूल के यूँ जिये जा रही थी

मैंने खुद को बाँहों में भर लिया

मिली थी आज बरसों बाद

याद नहीं आया

कब मै बिछड़ गयी थी खुद से ही

मगर आज खामोश फ़िज़ा में

खुद से मिलके खो गयी थी मै खुद में….सुमन(रूहानी)

सुमन राकेश शाह 'रूहानी'

मेरा जन्मस्थान जिला पाली राजस्थान है। मेरी उम्र 45 वर्ष है। शादी के पश्चात पिछले 25 वर्षों से मैं सूरत गुजरात मे रह रही हुँ । मैंने अजमेर यूनिवर्सिटी से 1993 में m. com किया था ..2012 से यानि पिछले 6 वर्षों कविताओं और रंगों द्वारा अपने मन के विचारों को दूसरों तक पहुचने का प्रयास कर रही हुँ। पता- A29, घनश्याम बंगला, इन्द्रलोक काम्प्लेक्स, पिपलोद, सूरत 395007 मो- 9227935630