गीत/नवगीत

प्रेम गीत

तेरे नयनों की भाषा ने,मुझको जीवन दान दिया !
सिसक-सिसक कर जीता था मैं,जीने का अरमान दिया !!

मौसम अब रंगीन हुए हैं,
दिशा आज मतवाली है
उपवन महक रहा है देखो,
खुशियों में तो माली है

रूखे-सूखे अधरों को प्रिय,तूने मंगल गान दिया !
सिसक-सिसक कर जीता था मैं,जीने का अरमान दिया !!

उड़ते पंछी भाते मन को,
हवा सुहानी लगती
समझ में आया,कैसे इक पल,
में तक़दीर है जगती

गहन तिमिर में भटक रहा था,मुझको नवल विहान दिया !
सिसक-सिसक कर जीता था मैं,जीने का अरमान दिया !!

आशाओं के पात हरे हैं,
खुशियां नित हरसातीं
पर्वत के भी संयम डोले,
दरियायें हरसातीं !!

नाम नहीं,पहचान नहीं थी,मुझको तो उत्थान दिया !
सिसक-सिसक कर जीता था मैं,जीने का अरमान दिया !!

प्रो.शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com