कविता

परम सत्य 

सत्य आज खामोश है,
उदास है निराश है
खो बैठा विश्वास है,
मैंने पूछा क्यों-
सत्य बोला –
आजकल मेरी सुनता ही कौन है.
मैं दर दर भटक रहा हूँ
सच्चे को तलाश रहा हूँ
जहाँ भी जाता हूँ
झूठ का बोलबाला है
सच का मुंह काला है
लोग तो गीता और कुरान पर
हाथ रख कर भी
झूठ बोल जाते हैं,
इन्साफ का दामन छोड़
अन्याय का साथ देते हैं,
डॉक्टर ज़रा से संक्रमण को
कैंसर बना देते हैं ,
कई तरह के टेस्ट बता देते हैं
झूठ के आगे सच कहाँ टिकता है
जहाँ सड़को पर खून बिखरता है
वहां पानी भी बोतल में बिकता है,
वोट लेने वाला –
सेवा करने की कसम खता है
और पद पाने के बाद
वह सब भूल जाता है,
मैं सत्य को महकाने ले गया
देखा -हाथ में जाम लेकर
सब सच बोल रहें हैं,
क्योंकि इस नशे में उनका
‘शातिर’ दिमाग सो गया है
और इस ‘मदिरा‘ को पीकर –
वह सत्यवादी हो गया है..
—जय प्रकाश भाटिया  

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845