कहानी

दृढ़ता – अंतिम भाग

“दृढ़ता – अंतिम भाग”

विवेक से मिलकर सुजाता घर आ गई पर…उसके मन में कुछ बातें चुभ रही थी। “विवेक मुझसे शादी करने के लिए अपने माता पिता को मनाने का प्रयास कर रहा है”….यह बात उसे अच्छी नहीं लगी। और उसने यह भी कहा था कि पापा तो तैयार है पर…मां को अभी तैयार करना है। भला किसी की दया पर जीना वह कैसे स्वीकार कर सकती है। इतने सालों की कठोर मेहनत के पश्चात ही तो उसने सब कुछ पाया है!

वह मन ही मन सोचने लगी…”अब मैं सक्षम हूं और इसके लिए मेरे मम्मी पापा ने मेरे साथ काफी मेहनत की है! मुझे सर उठा कर आत्म सम्मान के साथ जीना सिखाया है। मेरे मम्मी पापा किसी के सामने हाथ फैलाए मेरी जिंदगी के लिए यह नहीं हो सकता!”
“सुजाता कहां हो तुम? ऑफिस के लिए देर हो रही है। जल्दी से तैयार हो जाओ नाश्ता तैयार है”… सुजाता की मम्मी ने आवाज लगाई लगाई तो सुजाता को होश आया कि ऑफिस जाना है।
“हां मम्मी, बस में तैयार होकर आती हूं”… सुजाता उठकर तैयार होने चली गई।

सुजाता को ऑफिस जाकर पता चला कि उसका प्रमोशन हो गया और तबादला हो गया मुंबई में!इस बात से खुश है कि किसी बड़े शहर में जाकर शायद जीवन में कुछ और सकारात्मक बदलाव आ जाए। पर… वह सोचने लगी…”क्या इसके लिए मम्मी पापा तैयार होंगे?…नहीं भी होंगे तो उन्हें मनाना ही पड़ेगा!! उनको विश्वास दिलाना पड़ेगा कि…वह इतनी कमजोर नहीं है, स्वयं का देखभाल वह कर सकती है उनके बिना !”

सुजाता के स्वास्थ्य में पहले से ज्यादा परिवर्तन हुआ है विवेक के देखरेख में। अब वह पहले से ज्यादा चलने फिरने में स्वयं को सक्षम पा रही है ! ऑफिस से लौटते समय व विवेक के क्लीनिक में विवेक से मिलने और तबादला की खुशियां बांटने चली गई!! उसे इस तरह अचानक देख कर विवेक आश्चर्यचकित रह गया और पूछ बैठा…”अरे… अचानक कैसे आना हुआ? आज तो चेकअप का भी दिन नहीं है! जो भी हो पहले यह बताओ तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा है? चलने फिरने में पहले से ज्यादा कंफर्टेबल फील करती हो कि नहीं?”
“मैं बिल्कुल ठीक हूं! मैं तुमसे इसलिए मिलने आई हूं क्योंकि तुम्हें एक खुशखबरी देनी है! मेरा प्रमोशन के साथ तबादला हो गया मुंबई! और मैं काफी उत्साहित हूं…नये शहर में जाकर नया ऑफिस संभालने के लिए!”… बिल्कुल एक सांस में कह गई सुजाता ! उससे खुशी संभालते नहीं बन रहा था!
विवेक के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई,, पर… फिर भी उसने हंसते हुए कहा…” अरे.. बधाई हो बधाई!! यह तो बहुत बड़ी खुश खबरी है। मुंह मीठा हो जाए इसी बहाने क्या कहती हो सुजाता!”
“मिठाई के लिए तो घर आना पड़ेगा विवेक!”… सुजाता ने प्रसन्नता से कहा।
“वह तो मैं आ जाऊंगा। पर… सुजाता तुम मुंबई में जाकर अकेली कैसे रहोगी? सब कुछ कैसे संभालोगी? मैं सोच रहा था की क्यों ना मैं भी मुंबई में कोई हॉस्पिटल जॉइन कर लूं! दोनों को एक दूसरे का साथ मिल जाएगा।”… विवेक ने चिंता जताते हुए कहा।
“नहीं नहीं विवेक तुमने यहां पर हॉस्पिटल खोला है शहर के लोगों की देखभाल के लिए, केवल मेरे लिए नहीं! तुम यह सब छोड़कर नहीं आ सकते मेरे साथ और तुम्हारे मम्मी पापा क्या सोचेंगे। उनको मैं दुखी नहीं कर सकती,, रहा सवाल मेरे अकेले रहने का तो मैं अपने आप को संभाल सकती हूं! और फिर मेरे मम्मी पापा तो है ही मेरे लिए सोचने के लिए। तुम चिंता मत करो। हमेशा मैं किसी का सहारा लेकर कब तक चलती रहूंगी! पूरी जिंदगी पड़ी है मेरे सामने और फिर मेरे मम्मी पापा हमेशा तो नहीं रहेंगे!”… सुजाता के स्वाभिमान को थोड़ी सी ठेस पहुंची थी इसलिए वह धाराप्रवाह बोलती गई।

सुजाता के मम्मी पापा प्रमोशन और तबादला की बात सुनकर पहले तो थोड़े चिंतित हुए। पर, सुजाता की आत्मविश्वास को देख कर वे लोग आश्वस्त हो गए कि सुजाता सक्षम है स्वयं को संभालने के लिए! सब लोग जाने की तैयारी में जुट गए….!

मुंबई का ऑफिस, नया पद और नई कुर्सी सुजाता को भा रही है। उसके आत्मविश्वास को दोगुना कर रही है। ऑफिस के सब लोग इतने अच्छे हैं कि सुजाता को किसी बात की कोई कठिनाई नहीं हुई और जिस घर में रहती है दो लड़कियों के साथ वे दोनों भी बहुत सहयोग कर रहीं हैं! अब सुजाता रोज सुबह उठकर दोनों रूममेट्स के साथ वाकिंग पर निकल जाती है। उसे बहुत अच्छा लगता है यह सोच कर कि मैं अब मॉर्निंग वॉक भी करने लगी हूं। उसका आत्मविश्वास दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है!

आज सुजाता बहुत उत्साहित है क्योंकि बैंक में होने वाले वार्षिक खेल प्रतियोगिता का आज उद्घाटन है। सुजाता ने पहली बार 200 मीटर दौड़ प्रतियोगिता में भाग लिया है! इसके लिए वह 1 महीने से तैयारी में जुटी हुई है। रोज सुबह जब सैर पर निकलती है तब एक मैदान में जाकर दौड़ने का अभ्यास करती रही।

प्रतियोगिता में वह कोई स्थान तो प्राप्त न कर सकी परंतु पूरा 200 मीटर दौड़ने में सफल रही। आज उसका आत्मविश्वास और बढ़ गया है। बैंक के सहयोगिओं ने उसका हौसला देखा तो सब चकित रह गए। एक सहयोगी ने उसे एक दिन एक कोच से मिलाया जो ऐसे लोगों को ट्रेनिंग दिया करता है। रोज सुबह समय निकालकर वह मैराथन की तैयारी करने जाने लगी…!
“बेटा… तुम्हारे हौसले से में स्तब्ध हूं! अगले महीने मुंबई हाफ मैराथन होने वाला है। क्या तुम उस में पार्टिसिपेट करने के लिए तैयार हो?? मैं तुम्हें तैयार करूंगा।”… कोच ने सुजाता से कहा।
“जी… मैं बिल्कुल तैयार हूं ! इसमें पूछने वाली कोई बात ही नहीं है, ऐसे ही किसी क्षण का मैं इंतजार कर रही थी। अपने आप को कमजोर समझना मेरे स्वभाव के खिलाफ है!!”… सुजाता ने चहककर कहा।
पूरी जोर-शोर से मैराथन की तैयारी चल रही है। सुजाता बहुत उत्सुक है! उसकी प्रगति को देखकर कोच भी बहुत खुश है। उसके माता-पिता को जब यह बात पता चली तो पहले तो वह घबराए फिर सुजाता के आत्मविश्वास को देख कर चुप हो गए।
ऑफिस में बैठे बैठे आज सुजाता को विवेक की याद आई। कभी-कभी दोनों बात तो कर लेते हैं पर… उसने कभी विवेक से मैराथन के बारे में नहीं बताया क्योंकि वह उसे सरप्राइस देना चाहती है! वह सोचने लगी…”मेरे स्वस्थ होने में विवेक का भी हाथ है। विवेक ने ही मेरा इलाज किया था तभी आज मैं दौड़ पा रही हूं। सचमुच विवेक बहुत अच्छा है”… और वह थोड़ी सी उदास तथा भावुक हो गई।
जल्दी से अपना काम समेट कर घर के लिए निकल पड़ी क्योंकि उसे कल मैराथन के लिए अपने आप को तैयार करना है। थोड़ी घबराहट भी हो रही है पर… दोनों रूममेट्स और कोच के उत्साह के कारण वह संभल पाई है!

“अरे.. देखो मालति.. इधर आओ देखो.. सुजाता का फोटो छपा है पेपर में। मुंबई में होने वाली हाफ मैराथन में भाग लिया था उसने। लिखा है वह पूरा मैराथन दौड़ नहीं पाई मगर उसका हौसला देखकर लोग चकित रह गए। पत्रकारों ने उसका इंटरव्यू लिया। उसके हौसले को देख कर लोगों ने काफी बधाइयां दी है! अरे लड़की हो तो ऐसी.. आत्मविश्वास से भरी हुई! कौन कहता है कि वह कमजोर है उसने सारे लोगों के विचार बदल दिए!”…मि. सिंघल बहुत उत्साहित होकर अपनी पत्नी को आवाज लगाई।
“किस का फोटो छपा है? कौन मैराथन दौड़ रहा है? क्या बोल रहे हो.. मुझे कुछ समझ में नहीं आया।”… रसोई घर से बाहर आते हुए मालति ने जवाब दिया।
“अरे.. अपनी सुजाता की बात कर रहा हूं। यह देखो फोटो छपी है!!”…मि. सिंघल ने पुनः दोहराया।
मालती सुजाता की फोटो देख कर आश्चर्यचकित नजर से अपने पति की ओर देखा और फिर फोटो की ओर देखा और कहा..”अरे.. वाह यह तो बहुत बड़ी बात हो गई!इस लड़की ने तो झंडा गाड़ दिया! हम सब को गलत साबित कर दिया! हम तो उसे कमजोर समझ रहे थे,, यह तो बिल्कुल शेरनी निकली! चलो कपूर साहब को और उनकी पत्नी को बधाई देकर आते हैं वह बधाई के पात्र हैं… जिनकी ऐसी लड़की है!”

सुबह सुबह मोबाइल बज उठा तो सुजाता ने देखा विवेक का फोन है उसने फोन रिसीव कर कहा..” हेलो.. कैसे हो विवेक आज मेरी याद कैसे आई?? कितने दिन हो गए तुमने मुझे कॉल नहीं किया। क्या मुझसे कोई गलती हो गई है या मुझसे नाराज हो??”
“नाराज तो हूं क्योंकि तुम इतना बड़ा काम करने जा रही थी और मुझे बताया तक नहीं! मैं बिल्कुल अनभिज्ञ हूं!तुमने मुझे इस लायक समझा ही नहीं!!”… विवेक ने शिकायत करते हुए कहा।
“नहीं विवेक…मुझे गलत मत समझो! मैं तुम्हें सरप्राइस देना चाहती थी इसलिए तुम्हें कुछ नहीं बताया!”… सुजाता की आवाज में नरमी थी और प्यार भी था।
“कोई बात नहीं तुम बधाई के पात्र हो। तुमने जो कर दिखाया वह सबके बस की बात नहीं! आज तुम सबके लिए एक प्रेरणा बन चूकी हो!”… विवेक ने गर्वित होते हुए कहा।
“थैंक यू विवेक… मैं अकेली यह सब नहीं कर सकती थी। इसमें तुम्हारा भी हाथ है…तुमने मेरा इलाज नहीं किया होता तो मैं यह सब करने के लिए सक्षम नहीं होती। और फिर वह कोच अंकल जिसने मुझे हौसला दिया!”… कहते कहते सुजाता भावुक हो गई और उसकी आंखें नम हो गई।
“तुम घर कब आ रही हो? तुमसे मिलने की बड़ी इच्छा है। मिलकर बधाई देने की इच्छा है… बहुत दिन हो गए तुमसे मिले हुए!”… विवेक की आवाज भारी सी हो गई।
“बस…अगले संडे को ही आ रही हूं! मुझे भी उत्सुकता है सब से मिलने की!”… सुजाता ने उत्साहित होते हुए कहा।

“विवेक तुझे पता है सुजाता की फोटो छपी है पेपर में है। उसने मुंबई हाफ मैराथन में भाग लिया था,, कितनी हिम्मत वाली है वह! वह दूसरी लड़कियों की जैसी नहीं है कि जरा सी बात में हार मान जाए और चुपचाप बैठ जाए! बड़ी अच्छी लड़की है!”… मालती खुश होते हुए अपने बेटे को सारी बातें बता रही थी जैसे बेटे को कुछ पता ही नहीं।
“किसने कहा वह हिम्मतवाली है? और बड़ी अच्छी लड़की है?यह आप कह रही है मां! आपने तो पहले कहा था वह लड़की कमजोर है, हाथ पैर से मजबूर है, उससे शादी करने से मेरी जिंदगी खराब हो जाएगी फिर एकदम से कैसे अपने विचार बदल दिए आपने?”… विवेक को मन ही मन अपने मां पर गुस्सा आ रहा था।
जब विवेक ने अपने मां से सुजाता से शादी करने की बात कही थी…तो मां ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया था….” ऐसी लड़की से तेरी शादी नहीं हो सकती। तू शादी करेगा तो तेरी शादी में मैं शामिल नहीं होऊंगी।” बहुत दिनों तक सुजाता से बात करने की हिम्मत नहीं हो जुटा पाया था विवेक। सुजाता सारी बातें समझ गई थी फिर उसने कभी इस बारे में कोई बात नहीं छेड़ी। आज मां को ऐसा कहते हुए सुनकर उसका गुस्सा होना स्वाभाविक था!
“मैं समझ नहीं पाई थी कि यह लड़की इतनी सशक्त है! इतनी हिम्मत वाली है! इतनी स्वाभिमानी है! आज मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा है कि मैंने मना करके बहुत बड़ी गलती की है। तुम दोनों का ही दिल दुखाया मैंने।तू मुझे अब माफ कर दे बेटा और… मैं सुजाता से भी माफी मांग लूंगी बेटा!हम सब चल कर सुजाता को शादी के लिए मनाते हैं!”… मालती के स्वर में पछतावा था और आंखों में अफसोस स्पष्ट झलक रहा था….!

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

 

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com