कविता

दिवाली पर घर आ जाओ

मेरे प्यारे बेटे राजा
जल्दी से घर आ जाओ।
दिवाली पर राह तके माँ,
कुछ दीप तुम भी जला जाओ,
आज बनाई घर मे गुजिया मीठी,
मावे की जगह प्यार भरा है इस मे और
बनाई मठरी ,लड्डू ,सकलपारे भी
थोड़ा सा तुम खा जाओ,
मेरे प्यारे बेटे राजा।
दूर बहुत भेजा है घर से ,
तुम को पढ़ने की खातिर
हर रात तुम्हारी चिंता में,
 नींद मुझे नही आती है।
जानती हूँ तुम्हे पसंद है,
गर्मा गर्म रोटी ,मेरे हाथ की।
घी के बिन नही,दाल तुझे है भाती।
पर होस्टल में कहाँ मिलता है घी का खाना।
कुछ रोज छुटियों में ही घर पर  आ जाना।
तेरे पसंद की खीर बनी है,
मालपुआ भी खा जाना।
जल्दी से खत्म कर के पढ़ाई,
इंजीनियर बन जाना।
जानती हूँ इंजीनियर बन के भी
कहाँ, साथ हम रह पायेगे।
तुम कहि विदेश चले जाओगे,
फिर वही घर अपना बसाओगे।
जब तक बूढ़ी नही हुई तेरी माँ,
माँ के हाथ का बना खाना खाने आ जाओ।
दूर बहुत सपनो की नगरी,
फिर भी थोड़ा प्यार जता जाना।
इस दीवाली पर मिलने आ जाना।
भेंट में बस प्यार है माँ-पापा का।
थोड़ा उसे सहेज लेना और दुआओ की
पोटली को साथ मे अपने ले जाओ।
माँ पापा का आशीष छत्र समझ कर रख लेना।
जब भी हो जरूरत,हिम्मत और विश्वास की।
थोड़ी सी गर्मी उस से ले लेना।
बस दूर नही अब डगर,
हौसलों की उड़ान में।
कदम चूमेंगी मंजिल तेरी,
हवाई उड़ान भरने में।।
मेरे प्यारे बेटे राजा
जल्दी से अब आ जाओ।।
— संध्या चतुर्वेदी
अहमदाबाद, गुजरात

संध्या चतुर्वेदी

काव्य संध्या मथुरा (उ.प्र.) ईमेल sandhyachaturvedi76@gmail.com