बाल कविता

मनोकामना

तुम बनो हिमालय सा ऊंचा
छू लो नील अकाश,
दुनिया के प्रांगण में फैले
सुख्याति का प्रकाश।
सशक्त तन में बसे
एक सुंदर, सुकोमल मन,
अनुराग सुगंध से रहे भरा
जीवन प्रांगण का उपवन।
छाये न जीवन आकाश में
दुख के काले घन,
हंसी की उजली प्रकाश से
प्रदीप्त रहे सदा मन।
जुगनू सा चमको को तुम
रात के अंधियारे में।
शीश ऊंचा रहे सदा
जीवन के गलियारे में।
उम्र की डगर लंबी हो
स्वास्थ्य- बाग रहे हरा भरा।
नई खुशियां लेकर आए
जीवन का प्रत्येक नया सवेरा।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com