कविता

नट

वो
हम जैसा दिखता है
पर
हम जैसा है नहीं
हम चलते हैं ज़मीन पर
और
बात करते हैं आसमान की
वो चलता है रस्सी पर
और
बात करता है सिर्फ पेट की
दिखाता है करतब
अजब
अनोखे
अनूठे
और
एक पहिये की साइकिल
रस्सी पर चलाते हुए
अपने आस पास जुट आई भीड़ से
पूछता है
एक ही सवाल
मुक़ाबला करोगे ?
मेरे बैलेंस का ?
अपने बैंक बैलेंस से ?
मेरा बैलेंस
मेरा जीवन है
मेरी रोज़ी – रोटी है
और तुम्हारा बैलेंस
तुम्हारा स्टेटस सिम्बल !!
— नमिता राकेश
( 2000 में प्रकाशित मेरी किताब तुम ही कोई नाम दो से )