सामाजिक

ब्लॉग – संयोग पर संयोग-11

खुद से मुलाकात
एक बार फिर संयोग पर संयोग की बात करते हुए हम खुद से मुलाकात करने चलते हैं.

खुद से मुलाकात से पहले हमारी एक कविता ”खुद से ही मुलाकात नहीं हो पाती”
की कुछ पंक्तियां-

सुधीजनों का कहना है
सबसे बात करो
मुलाकात करो
पर कभी तो तनिक समय निकालकर
खुद से भी बात करो
मुलाकात करो.
विडंबना यह है
कि हमारी सबसे बात हो जाती है
मुलाकात हो जाती है
खुद से ही बात नहीं हो पाती
खुद से ही मुलाकात नहीं हो पाती.

सचमुच ऐसा ही होता है. हम बहिर्मुखी हो जाते हैं, अंतर्मुखी हो ही नहीं पाते, इसलिए खुद से मुलाकात हो नहीं पाती. ख़ैर हमारे सुदर्शन भाई की इच्छा थी, कि इस श्रंखला की एक कड़ी आपके नाम भी होनी चाहिए. वैसे इसकी खास जरूरत तो नहीं थी, क्योंकि हर कड़ी में हम सभी ही हैं. चलिए इसी बहाने कुछ बातें, कुछ मुलाकातें हो जाएंगी.

संयोग पर संयोग की इस श्रंखला का शुरु होना भी उसी प्रकार का एक संयोग है, जैसा कि दुनिया में आना. संयोग से ही हम नेट पर आए, आप नेट पर आए और मुलाकात होती गई, कारवां बनता गया, बढ़ता गया.

11 जुलाई, 2011 के दिन हम अपना ब्लॉग पर आए. जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं, कि इससे पहले पाठक पन्ना चलता था. 11 जुलाई, 2011 को पाठक पन्ना के सभी लेखक अपना ब्लॉग पर आ गए. इनमें प्रमुख थे-
विजय सिंघल, प्रकाश गुप्ता, डॉ. स्वास्तिक जैन, विजय बाल्यान, गीतांजलि झा, राजकुमार हैदराबादी, संजय कुमार गर्ग आदि.
विजय सिंघल और प्रकाश गुप्ता मुख्य रूप से राजनीतिक ब्लॉग्स लिखा करते थे, विजय बाल्यान साहित्य से जुड़े हुए थे, गीतांजलि झा के स्वास्थ्य और विज्ञान संबंधी ब्लॉग्स बहुत शोध के बाद लिखे जाते थे और बहुत समय तक याद रहते थे. संजय कुमार गर्ग रहस्य के ब्लॉग्स लिखते थे. राजकुमार हैदराबादी पहले सिर्फ प्रतिक्रियाएं लिखते थे. उनकी प्रतिक्रियाएं इतनी बड़ी होती थीं, कि ब्लॉग्स की सीमा भी पार कर जाती थीं. उनको लोग व्यंग्य में कहा करते थे, इतनी लंबी प्रतिक्रिया से तो ब्लॉग्स ही लिखा करो और वे सचमुच ब्लॉगर बन गए और दिन में 5-6 ब्लॉग्स लिखकर शतक-पर-शतक बनाते चले गए, जब कि तीन दिन में एक ब्लॉग लिखना होता था. ये सभी लोग हमारे ब्लॉग्स पर प्रतिक्रियाएं भी लिखते थे. डॉ. स्वास्तिक जैन योग और आयुर्वेद संबंधी ब्लॉग्स लिखते थे, वे हिंदी-संस्कृत के जाने-माने विद्वान हैं.

अत्यंत व्यस्तता के कारण डॉ. स्वास्तिक जैन आजकल ब्लॉग्स नहीं लिख पाते हैं, पर साल में दो बार 29 मई को अपने जन्मदिन पर और 29 नवंबर को अपने विवाह की सालगिरह के अवसर पर हमारे ब्लॉग्स पर अब भी आते हैं और सभी कामेंटेटर्स की प्रतिक्रियाओं पर प्रतिक्रियाएं भी लिखते हैं. यहां हम आपको बताते चलें, कि बहुत-से पाठक डॉ. स्वास्तिक जैन से अपनी स्वास्थ्य संबंधी अपनी समस्याएं हल करवाने के लिए हमसे फेसबुक मैसेंजर पर या मेल द्वारा संपर्क करते हैं, हम डॉ. स्वास्तिक जैन से उनकी समस्याएं हल करवा देते हैं और उनको फीडबैक भी देते हैं.

विजय सिंघल ब्लॉग लिखने के साथ-साथ नौकरी भी करते थे, साथ ही युवा सुघोष पत्रिका भी निकालते थे. अब उनकी बड़ी-सी वेबसाइट जय विजय हो गई है, जिसमें हजार के लगभग जाने-माने लेखक-साहित्यकार उनके साथ जुड़े हुए हैं. विजय सिंघल से हमारा संपर्क बराबर बना हुआ है. उनके स्वास्थ्य संबंधी लेख बहुत उपयोगी होते हैं. विजय भाई के साथ हम बराबर संपर्क में रहते हैं. वे भी समय निकालकर हमारी रचनाओं से जय विजय में जुड़े रहते हैं.
विजय सिंघल जय विजय की वेबसाइट है-
https://jayvijay.co/author/vijayks/

आदरणीय टीचर जी संबोधन से संबोधित करने वाले प्रकाश गुप्ता भी आजकल अपना ब्लॉग पर नहीं आ पा रहे हैं, पर हमसे बराबर संपर्क बनाए रखते हैं. अभी हाल में ही उन्होंने हमें ब्लॉग्स के लिए कुछ लिंक भी भेजे हैं. प्रकाश गुप्ता फ्रीलांसर हैं.

विजय बाल्यान भी आजकल आजकल अपना ब्लॉग पर नहीं आ पा रहे हैं, पर मेल से संपर्क में हैं. अभी हाल ही में उन्होंने संशोधन हेतु अपनी लघुकथा की पुस्तक भेजी थी, जो हमने संशोधित कर दी थी, आशा है अब छप भी गई होगी.

इसी तरह संजय कुमार गर्ग भी हमें भूले नहीं है. अभी हाल ही में उन्होंने एक वीडियो भेजा.
सम्मोहन-हिप्नोटिज्म के कुछ ज्ञात-अज्ञात रहस्य! -संजय कुमार गर्ग
उसके बाद उनकी मेल आई-
आदरणीया दीदी, सादर नमन! आशा करता हूँ, आप स्वस्थ व प्रसन्नता पूर्वक होंगी, आपका आशीर्वाद है दीदी सब अच्छा चल रहा है, दीदी आजकल मैं यू ट्यूब पर “भारतीय साहित्य एवं संस्कृति” नाम से चैनल चला रहा हूँ, कभी समय मिले तो जरूर आइये, एक वीडियो की लिंक मैंने आपको सेंड किया था, ये मेरे ही चैनल की हैं, नभाटा को काफी मिस करता हूँ, कई बार वहां पर जाने की कोशिश की, परन्तु कोई न कोई समस्या आ जाती हैं, आप तो वहां पर लिख रही होंगी?
रिप्लाई के लिए आपका बहुत-बहुत आभार!
आपका अनुज
संजय कुमार गर्ग
लिंक—–
https://www.youtube.com/channel/UCIw2Uzakp3m40hmzY4oLHrw?disable_polymer=true

हरीश चंद्र शर्मा भी हमारे लगभग हर ब्लॉग पर प्रतिक्रिया लिखते थे, उन्होंने एक नवीन प्रयोग-1 (कहानी) के अंतर्गत मेरे और गुरमैल भाई के साथ ”प्रेममय माहौल की वापिसी” कहानी भी लिखी थी.
गौरव द्विवेदी भी हमारे साथ जुड़े हैं. उन्होंने फिर सदाबहार काव्यालय-6 के रूप में सदाबहार कविता से हमें रू-ब-रू करवाया, वे भी समयाभाव के कारण ब्लॉग लेखन भी नहीं कर पा रहे, प्रतिक्रिया भी नहीं लिख पा रहे.
ब्लॉगर रूप में इंद्रेश भाई September 5, 2013 में आए. उसी समय राजीव गुप्ता और रविकांत मिश्रा भी अपना ब्लॉग पर आए. हम सबका ब्लॉग का क्षेत्र भले ही अलग-अलग था, लेकिन एक दूसरे के विचारों की हम कद्र करते थे और विनम्रतापूर्वक अपना बेबाक मत भी रख देते थे. 2015 में प्रकाश मौसम भाई आए. इसी समय नीरू शर्मा, ललित भारद्वाज, सूर्य भान भान भाई, रुचि भान, करुणा निधि ओझा भी आए. 2016 में राजकुमार कांदु आ गए, फिर जनवरी 17 में रविंदर सूदन ने भी दस्तक दी. गुरमैल भाई तो मार्च 14 से ही ब्लॉग पर आए हुए थे. फिर क्या था, ब्लॉग पर कभी काव्य की महफिल जमा करती थी, तो कभी चुटकुलों की. अब सुदर्शन खन्ना आ गए हैं. उसके बाद तो ब्लॉग पर दिलखुश जुगलबंदी की बहार आ गई है-

दिल की आवाज़ शब्दों में निखर आई है
इसीलिए तो ख़िजां पर भी बहार छाई है.

इस बहार ने मौसम पर जादू कर दिया,
बला की सर्दी में भी गर्मी का अहसास भर दिया.

यह तो हो गई उस समय और अब के ब्लॉगर्स की बात, अब हम कुछ पाठक-कामेंटेटर्स से आपको मिलवा रहे हैं. सबसे पहले हमसे जुड़ीं चीन की मोनिका शर्मा. मोनिका शर्मा चीन में हिंदी के फ़ॉन्ट्स डाउनलोड करने की अनुमति न होने के कारण हिंदी भी इंग्लिश में लिखती थीं, पर कमाल की अभिव्यक्ति करती थीं. फिर सम्भवतः अपना ब्लॉग चीन जाना बंद हो गया और मोनिका शर्मा की ई.मेल भी शायद बदल गई, इसलिए उनसे संपर्क समाप्त हो गया. वह मेरे को मां-दीदी-सखी सब कुछ समझती थी और चीन और भारत का समय भिन्न होने के बावजूद काफी समय तक मेल और ब्लॉग पर चैट करती थी.

मोनिका शर्मा के साथ ही अशोक ओझा भी आ गए. वे भले ही भारत में रहें या अमेरिका में, व्यस्त रहने के कारण प्रतिक्रिया नहीं लिख पाते, पर आज तक नियमित रूप से ब्लॉग्स पढ़ते आ रहे हैं. वे फेसबुक से उपयोगी नुस्खे भी भेजते रहते हैं. एक बार उन्होंने बहाना विषय देकर एक ब्लॉग भी लिखवाया था- ”बहाना चाहिए”. उस पर बहुत मजेदार प्रतिक्रियाएं आई थीं-

Dilmani Ram Sharma
—बस इन ही बहानों के मायाजाल में फंसा जीव काल के प्रवाह में बहा जा रहा है..

monika
pranam Leela ji,very nice ..!

RAJ MISHRA
बहन जी नमस्ते आपने तो मानव मन सार्वभौमिकता को बड़े ही मौलिक और सहज ही शब्दों की मणिका मय मोतियों से पिरो दिया है ,,,,,,, हर चीज का बहाना का नायाब नजरिया बयां कर दिया है ,,,, बहुत बढ़िया कविता ,,,,, के लिये आभार.

Prakash Gupta
आदरणीय टीचर जी, अब टिप्पणी न करने का कोई बहाना नहीं हें हमारे पास. सामान्य से शब्दों में भी आप जान डाल देती हें. बहुत सुन्दर ब्लॉग

sanjay kumar garg
आदरणीया दीदी, सादर नमन! वास्तव में हर किसी को, कुछ न कुछ करने के लिये बहाना तो चाहिये ही, किसी को आलोचना करने का बहाना चाहिये, किसी को लिखने का बहाना चाहिये और तो और किसी को न लिखने का बहाना चाहिये! धन्यवाद!

Raj Kumar
जिनको आलोचना करनी हो उन हम जैसों को आलोचना करने का भी बहाना चाहिये! बहुत खूब ! आपने “बहाने” पर बहुत अच्छी बातें प्रस्तुत की है इसलिये आपको कोटिश: धन्यवाद!

मोनिका शर्मा अभी प्रतिक्रिया लिख ही रही थीं, कि इंग्लैड से गुरमैल भाई आ गए और हमारे ब्लॉग पर अपनी बेमिसाल प्रतिक्रियाओं के साथ ही अपना ब्लॉग जगत पर छा गए. उनके साथ ही मनजीत कौर भी आ गईं. अब इन दोनों के पास अपना ब्लॉग नहीं जा रहा, इसलिए हम इनके लिए रचनाएं जय विजय पर भी पब्लिश करते हैं और मेल से भी भेजते हैं.

इसके अतिरिक्त जयपुर से रोमा चांदवानी, विदेश से किरण तिवानी और दयाराम तिवानी भी नियमित रूप से ब्लॉग्स पढ़ते हैं. दिल्ली की पार्वती गोयल को ब्लॉग्स का क ख ग भी नहीं पता था. मुझे देखकर उन्होंने ब्लॉग्स पढ़ने और उन पर प्रतिक्रिया लिखना भी शुरु किया. पड़ोसिनों ने व्यंग्य किया-
”बूढ़ी घोड़ी, लाल लगाम!”
पार्वती गोयल, जो हमारे ब्लॉग्स की खिलंदड़ी मैडम हैं, ने तुरंत हंसते हुए दिलेरी से जवाब दिया- ”जब लीला लिख सकती है, तो मैं पढ़ क्यों नहीं सकती?” जब तक उनके पास मोबाइल की सुविधा थी, वे बराबर ब्लॉग्स पढ़ती रहीं, प्रतिक्रिया लिखती रहीं, शाम को पार्क में मिलने पर वह याद किया पूरा ब्लॉग मुझे सुनाती रहीं. उनकी पुत्रवधू विधिता गोयल भी ब्लॉग्स पढ़ती थीं, उन्होंने हमारे साथ एक नवीन प्रयोग- कहानी के दो एपिसोड भी लिखे.
आज की यशोदा मां और उमेश का आइटम
कुछ समय से अर्पिता दास भी हमारे साथ बराबर जुड़ी हुई हैं? अभी-अभी उन पर आपने संयोग पर संयोग-10 की पूरी कड़ी पढ़ी है.
इसके अतिरिक्त अन्य अनेक ब्लॉगर्स तथा अन्य पाठक-कामेंटेटर्स भी हमारे ब्लॉग्स पर आते रहते हैं, सबको हार्दिक शुक्रिया और धन्यवाद. शुक्रिया और धन्यवाद से याद आया, कि अनेक पाठक पूछते हैं, कि ”शुक्रिया और धन्यवाद का अर्थ तो समान होता है, आप दोनों क्यों लिखती हैं?” हमारा उत्तर होता है-

”आप लोग प्रतिक्रियाएं इतनी शानदार-जानदार लिखते हैं, कि एक शब्द हमें कम लगता है, इसलिए हम शुक्रिया और धन्यवाद दोनों ही शब्द लिखते हैं.”

शानदार-जानदार प्रतिक्रियाओं से याद आया, बहुत-से पाठक कामेंट्स में ही लिख चुके हैं, कि आपके ब्लॉग्स पर प्रतिक्रियाएं इतनी लाजवाब होती हैं, कि हम बार-बार प्रतिक्रियाएं पढ़ने के लिए भी आते हैं. यह सब आप लोगों की प्रतिक्रियाओं का ही कमाल है.

कुछ पाठकों का विशेष उल्लेख करना भी अनिवार्य है. गुरमैल भाई का तो जवाब नहीं, उनके पास अपना ब्लॉग नहीं पहुंच पा रहा, तो भी वे येन-केन-प्रकारेण अपनी प्रतिक्रिया हम तक पहुंचा ही देते हैं. इंग्लैंड से मनजीत कौर 4 साल से नियमित रूप से हर रोज एक या अधिक अनमोल वचन भेज रही हैं. रविंदर भाई और सुदर्शन भाई भी नियमित रूप से अनेक अनमोल वचन भेज रहे हैं. ब्लॉग्स के बीच में नए कामेंट्स का पता नहीं चलता, इसलिए रविंदर भाई और सुदर्शन भाई अपने नए कामेंट्स फेसबुक या मेल से भी भेज देते हैं. रविंदर भाई और सुदर्शन भाई सहित अनेक पाठक कामेंट्स या मेल के जरिए, हमें किस्से कमाल के भेजते रहते हैं. रविंदर भाई और सुदर्शन भाई के ब्लॉग पर कोई नया पाठक-कामेंटटर आ जाए तो वे अपनी खुशी में हमें भी शामिल कर लेते हैं. इस तरह हमारी खुशियां अगणित हो जाती हैं.

अपने सुपुत्र राजेंद्र तिवानी को भला हम कैसे भूल सकते हैं, जिनके आग्रह के कारण हम नेट पर आए. अब भी हम उन्हीं के दिग्दर्शन से सब काम कर पा रहे हैं. राजेंद्र हमारे ब्लॉग के सबसे पहले पाठक होते हैं. हिंदी-इंग्लिश-सिंधी के कवि-लेखक-साहित्यकार-वैज्ञानिक-तकनीकी ज्ञान से लबरेज राजेंद्र की हिंदी वर्तनी भी एकदम शुद्ध होती है. तथ्यों के जानकार तो वे हैं ही. जैसे ही मैं ब्लॉग फेसबुक पर शेयर या पोस्ट करती हूं, कोई वर्तनी या तथ्य संबंधी त्रुटि रह जाए, राजेंद्र देश-विदेश में जहां भी होते हैं, तुरंत फेसबुक मैनेजर पर मैसेज कर मेरी वह त्रुटि ठीक करवा देते हैं. मैं तकनीक में जीरो हूं, इसलिए वे हमारे तकनीकी कंसलटैंट भी हैं. गुरमैल भाई पर ब्लॉग्स की भरमार हो गई, तो हमने राजेंद्र से उसकी ई.बुक बनाने के लिए कहा, राजेंद्र ने तुरंत बनाकर भेज दी. एक-एक कर गुरमैल भाई की 11 ई.बुक्स बन गईं. विजय सिंघल भाई को ई.बुक का आइडिया बहुत पसंद आया. हमने उनको कहा- ”आप मैटर भेज दीजिए, हम बनवा देंगे.”
तुरंत विजय भाई का मैसेज आया- ”मैं सीखना चाहता हूं.” हमने राजेंद्र को वह ई.मेल ही फॉरवर्ड कर दी, उसी समय विजय भाई ने ई.बुक बनानी सीख ली. गुरमैल भाई की ई.बुक्स के साथ ही हमारी भी बहुत-सी ई.बुक्स बन गईं, जो आप समय-समय पर पढ़ते रहते हैं. आज भी हम जब भी किसी तकनीकी पाइंट पर अटक जाते हैं, राजेंद्र तुरंत हाजिर हो जाते हैं. राजेंद्र ने हमें प्रोत्साहित किया, हम भी यही करने की कोशिश कर रहे हैं. हमारी पुत्रवधू शिप्रा भी तकनीकी विशेषज्ञ है. शिप्रा और राजेंद्र ने मिलकर हमारे जन्मदिवस पर एक app cum website डिजिटल उपहार के रूप में दिया था. अनेक विशेषताओं से लबरेज़ इस सदाबहार app cum website ने मेरी अनेक समस्याएं हल कर दी हैं. आप खुद भी इसका जायज़ा ले सकते हैं-
http://www.sadabaharcalendar.com/

संयोग पर संयोग की 11वीं और फिलहाल इस अंतिम कड़ी में हम बहुत कुछ लिखना चाहते हैं, पर ब्लॉग बहुत बड़ा हो जाने की आशंका से सिर्फ़ नामों का ही उल्लेख कर पाए हैं, इसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं. चलते-चलते हम आप लोगों के सहयोग के बहुत आभारी हैं. हम जो भी श्रंखला शुरु करते हैं, आप लोग उसमें बढ़-चढ़कर हमारा सहयोग करते हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “ब्लॉग – संयोग पर संयोग-11

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , संयोग पर संयोग 11 में बहुत नाम ऐसे आयें जिन से मैं भी परिचत हूँ . परकाश गुप्ता जी, स्वास्तिक जैन जी और रवेंदर सूदन और राजकुमार भाई तो हैं ही लेकिन एक दिन मोनिका की याद भी आई और आज आप ने उन की प्राब्लम भी बता दीं . विजय सिंघल जी का तो काम ही महान था और अभ भी है जो नए लेखकों को भी प्रोह्त्सान देते हैं . राजेंदर जी का तो बहुत बड़ा योगदान है जो इतनी बढ़िया तकनीक का इस्तेमाल करके ईबुक्स बना लेते हैं . संयोग पर संयोग श्रंखला भी बहुत अछि रही

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको संयोग पर संयोग की श्रंखला बहुत अच्छी लगी. इसमें आपका सहयोग बहुत सराहनीय रही. श्रंखला से जुड़े रहने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    सब पर लिखना जितना आसान है, खुद पर लिखना उतना ही बहुत कठिन है. हमने थोड़ी-सी कोशिश की है, फिर भी सब कुछ नहीं ही लिख पाए हैं. परख का यह काम आप जौहरियों का है.

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